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हरियाणाः बरोदा में किसानों-बेरोजगारों का गुस्सा बीजेपी को पड़ा भारी, जनता ने खट्टर सरकार को नकारा

बरोदा में चुनाव के ही दिन संकेत मिल गए थे कि बीजेपी के लिए यह चुनाव जीतना बेहद मुश्किल है। यहां 68.94 फीसदी मतदान हुआ था। कोरोना काल में इतने लोगों का मत डालना अपने आप में ही संकेत दे रहा था। माना जा रहा था कि यह सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी का नतीजा है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

हरियाणा में सरकार के एक साल पूरे होने का जश्न मना रही बीजेपी को आज बड़ा झटका लगा है। सोनीपत जिले की बरोदा विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस के इंदुराज नरवाल ने बीजेपी के योगेश्वार दत्त को 10,566 मतों से पटखनी दे दी है। ओलंपिक पदक विजेता पहलवान योगेश्व दत्त की यह लगातार दूसरी हार है।

इस नतीजे के साथ ही बरोदा विधानसभा की जनता ने उपचुनाव में बीजेपी सरकार को पूरी तरह से नकार दिया है। क्योंकि यह उपचुनाव एक विधानसभा का न होकर मुख्यामंत्री मनोहर लाल की सरकार पर रेफरेंडम माना जा रहा था। मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सड़क पर संघर्ष कर रहे किसानों, भयंकर बेरोजगारी के शिकार युवाओं और कोरोना की तबाही से जूझ रही हरियाणा की जनता के प्रतिनिधि के तौर पर बरोदा के लोगों ने आत्ममुग्ध खट्टर सरकार पर बैलेट के जरिये एक गहरी चोट मारी है।

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बरोदा की हार बीजेपी के लिए एक बड़ी हार है। इसे इस तरह समझा जा सकता है कि चुनाव प्रचार के दौरान हरियाणा की पूरी सरकार वहां बैठी हुई थी। महज 54 गांवों वाले ग्रामीण आबादी आधारित इस सीट पर मंत्रियों और विधायकों की पूरी फौज तैनात की गई थी। जाति के आधार पर हर गांव की गली-गली में मंत्री और विधायक घूम रहे थे। यहां तक कि खुद मुख्यरमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में तकरीबन दर्जन भर गांवों में जनसभाएं कीं।

अपने छह साल के कार्यकाल में कभी बरोदा की तरफ झांकने की जहमत भी नहीं उठाने वाली खट्टर सरकार ने जीतने के लिए चुनाव से ऐन पहले कई बड़े ऐलान कर डाले। सरकार ने कॉलेज, यूनिवर्सिटी और आइएमटी (इंडस्ट्रियल मॉडल टाउनशिप) तक यहां बनाने की घोषणा कर दी। खट्टर ने चुनाव प्रचार खत्म होने के ठीक पहले बरौदा की जनता से भावनात्मक कार्ड भी खेल दिया और कहा कि- मैं भी रोहतक के महम चौबीसी के निंदाना में जन्मा हूं और आपका गुहांडी (पड़ोसी) हूं। आप मेरे हो मैं मान चुका, मैं थारा हूं यह तुम्हें सोचना है।’’

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चुनाव जीतने के लिए बीजेपी पर दूसरे हथकंडे भी अपनाने के आरोप लगे। बीजेपी कार्यकर्ताओं के पास हैकिंग मशीन होने के आरोप लगे और खूब हंगामा हुआ। इस पर भाजपाइयों ने सफाई दी कि यह स्लिप निकालने की मशीन है। बाहर के होने के बावजूद बीजेपी के पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर पर हिस्ट्रीशीटर रमेश लोहार के साथ गांव मदीना के 176 नंबर बूथ में अवैध तौर पर दाखिल होने और मतदान को प्रभावित करने के आरोप लगे, जिसकी शिकायत कांग्रेस ने चुनाव आयोग से भी की। इन दोनों पर लोकसभा चुनाव 2019 में भी बूथ कैप्चरिंग के आरोप लगे थे।

चुनाव में बीजेपी की ओर से मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए कई जगह सिलेंडर, शराब और रुपये बांटने की भी खबरें आईं। बावजूद इसके आखिर बीजेपी को यहां से कामयाबी नहीं नसीब हुई। बरोदा में मतदान के दिन ही इस बात के संकेत मिल गए थे कि बीजेपी के लिए यहां चुनाव जीतना बेहद मुश्किल है। यहां बनाए गए कुल 280 बूथों पर 68.94 प्रतिशत मतदान हुआ था। कोरोना काल में इतने लोगों का मत डालने के लिए निकलना अपने आप में ही संकेत दे रहा था। यह माना जा रहा था कि यह सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी का नतीजा है।

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प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने बरौदा में कांग्रेस की जीत को हरियाणा की जनता की जीत बताया है। उन्होंने कहा है कि यह किसानों के खिलाफ बनाए गए काले कानूनों के खिलाफ हरियाणा की जनता का फैसला है। चुनाव जीतने के तमाम अनुचित हथकंडे आजमाने के बावजूद हरियाणा की ठगबंधन की सरकार को यहां हार का मुंह देखना पड़ा। यह साफ संदेश है कि जनता ने इन्हें नकार दिया है। वहीं, राज्य के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कांग्रेस के इंदुराज को बधाई देते हुए कहा है कि हार-जीत तो जीवन और राजनीति का हिस्सा है।

बीजेपी के लिए बंजर ही रह गई बरोदा की भूमि

कांग्रेस के इंदूराज नरवाल के 10,566 मतों से बीजेपी प्रत्याशी पहलवान योगेश्वर दत्त को पटखनी देने के साथ ही एक बार फिर बीजेपी के लिए सोनीपत के बरोदा की भूमि में कमल खिलाने का सपना धरा रह गया। कांग्रेस प्रत्यानशी इंदुराज नरवाल को 60636 मत मिले, जबकि बीजेपी के योगेश्वर दत्त को 50,070 वोट मिले हैं। वहीं, इनेलो के जोगिंदर सिंह मलिक को महज 4984 मत ही मिले। कुल पड़े 1,22,504 मतों में से कांग्रेस प्रत्याशी ने 49.28 प्रतिशत मत हासिल कर विजय पाई है, जबकि बीजेपी उम्मीेदवार को 40.7 फीसदी मत मिले।

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हरियाणा के गठन के बाद से अब तक बरोदा से 13 विधायक चुने गए हैं। सात बार देवीलाल की पार्टी ने, जबकि कांग्रेस ने 5 बार यहां से जीत दर्ज की है। बीजेपी कभी यहां से चुनाव नहीं जीती है। साल 2009, 2014 और 2019 के लगातार तीन चुनाव में कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा ने यहां से जीत दर्ज की थी। बीते विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के उम्मीदवार योगेश्वर दत्त दूसरे स्थान पर रहे थे। उन्हें 37,726 मत मिले थे, जबकि स्वर्गीय श्रीकृष्ण हुड्डा कांग्रेस के टिकट पर यहां से 42566 वोट हासिल कर विधायक बने थे।

आश्चर्य की बात यह है कि जेजेपी के उम्मीदवार भूपेंद्र मलिक ने पिछले चुनाव में यहां से 32,480 वोट हासिल किए थे। इस बार जेजेपी का भी समर्थन यहां बीजेपी के साथ था। इसके बावजूद बीजेपी को जीत नसीब नहीं हुई। बरोदा विधानसभा जाटलैंड मानी जाती है। इस विधानसभा में कुल 1 लाख 80 हजार 506 मतदाता हैं, जिनमें 90 से 95 हजार जाट मतदाता हैं, जबकि ब्राह्मण 20 हजार, ओबीसी 30 हजार, एससी-एसटी 18 हजार और अन्य 10 हजार हैं।

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मंत्रियों की फौज भी नहीं दिला पाई कामयाबी

चुनाव प्रचार के अंतिम समय में दो दिन यहां मुख्यमंत्री मनोहर लाल और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने भी ताबड़तोड़ 10 गांवों का दौरा किया था। इसके साथ ही कैबिनेट मंत्री अनिल विज, कंवर पाल गुर्जर, जेपी दलाल, रणजीत चौटाला, मूलचंद शर्मा, बनवारी लाल, कमलेश ढांडा, संदीप सिंह, अनूप धानक के अलावा सांसद रमेश कौशिक, अरविंद शर्मा और संजय भाटिया भी बरोदा में डेरा डाले थे। प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ा ने भी पूरा जोर लगाया हुआ था।

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जीत होती तो बैसाखी सरकार का गणित बदल जाता

यह चुनाव बीजेपी के लिए कितना अहम था, इसको सरकार के संख्या गणित के नजरिये से भी समझा जा सकता है। अभी 90 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी के महज 40 विधायक हैं। 10 जेजेपी के और 8 निर्दलीय विधायकों के सहारे यह सरकार चल रही है। कांग्रेस के 30 विधायक हैं, जो पहले 31 थे। कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा के निधन से ही यह सीट खाली हुई थी। अब कांग्रेस के फिर 31 विधायक हो गए हैं। बीजेपी यदि यह सीट जीत जाती तो उसके 41 विधायक हो जाते। 90 सदस्यीय सदन में बहुमत के लिए 46 विधायकों की दरकार है, जिससे बीजेपी महज 5 सीट दूर रह जाती और निर्दलीयों और जेजेपी का दबाव सरकार पर कम होता।

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