हरियाणा में किसान बिक्री के लिए अपनी फसल लेकर मंडियों में तो पहुंच गए हैं लेकिन रबी फसलों की खरीद को लेकर सरकार की कागजी व्यवस्था ध्वस्त होती दिख रही है। वजह साफ है, आढ़ती हड़ताल पर हैं। मजदूर हैं नहीं, जो हैं उनमें से भी कई जगह वह हड़ताली आढ़तियों के साथ खड़े हैं। इसके अलावा बारदाना भी नाकाफी है।
ऐसे में किसी खरीद केंद्र में दोपहर तो किसी में शाम को खरीद शुरू हो पा रही है। सरकार का किसानों के मोबाइल पर मैसेज भेजने का सिस्टम अराजक साबित हो चुका है। हालत यह है कि उम्मीद से दोगुणा किसान गेहूं लेकर आने पर सरकारी अमले के हाथ-पैर फूल गए हैं। प्रदेश में गेहूं की अनुमानित 115 लाख टन पैदावार में से 95 लाख टन की संभावित खरीद का आगाज तो कुछ ऐसा ही है।
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हरियाणा में 15 अप्रैल से सरसों और 20 अप्रैल से गेहूं की खरीद शुरू हुई है। सरकार के दावे पर यकीन करें तो दो दिन में यानी 21 अप्रैल तक 25,559 किसानों से 2,83,888.97 मीट्रिक टन गेहूँ की खरीद की गई है। वहीं सात दिन में 55,391 किसानों से कुल 1,49,975.55 मीट्रिक टन सरसों की खरीद की गई है।
कृषि एवं किसान कल्याण और सहकारिता विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजीव कौशल ने इन आंकड़ों की तस्दीक की है। लेकिन आंकड़े पूरी कहानी का एक छोटा पक्ष होते हैं। हरियाणा में इस बार तकरीबन 25 लाख हेक्टेयर में बोई गई गेहूं की फसल ही वह उम्मीद है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को खाद-पानी देने की ताकत रखती है। कोरोना संकट के बीच गेहूं खरीद को लेकर राज्य सरकार की बनाई गई व्यवस्था अपर्याप्त साबित हो चुकी है।
हालत ऐसी है कि गेहूं खरीद की पूरी व्यवस्था में धुरी का काम करने वाले आढ़ती हड़ताल पर हैं। वह ऑनलाइन गेहूं खरीद प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं। आढ़ती चाहते हैं कि पुराने पारंपरिक तरीके से खरीद हो। नतीजा यह है कि 21 अप्रैल को रोहतक शहर की मंडी में खरीद ही नहीं हो पाई। झज्जर की बेरी मंडी में सुबह खरीद नहीं हो सकी। झज्जर की कई मंडियों में बारदाना न पहुंचने के कारण शाम को खरीद हो सकी। फतेहाबाद में आढ़तियों के साथ मजदूर भी हड़ताल में साथ खड़े हो गए। कलायत में आढ़तियों ने प्रदर्शन किया। कुरुक्षेत्र, सोनीपत की मंडियों में भी शेड्यूल के तहत खरीद नहीं हो सकी। सिरसा, हिसार, भिवानी, चरखीदादरी समेत कहीं भी शेड्यूल के मुताबिक खरीद प्रक्रिया नहीं हो पा रही है। राज्य की मंडियों में जितने किसानों को बुलाया जा रहा है, उससे दोगुणा किसानों के पहुंच जाने से प्रशासन की सांसें फूल रही हैं।
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प्रदेश व्यापार मंडल का कहना है कि खरीद के पुख्ता प्रबंध न होने, फसल ऑनलाइन खरीदने और फसल का भुगतान पहले की तरह न करने के कारण अनाज खरीद में भारी दिक्कतें आ रही हैं। इसके चलते प्रदेश के आढ़तियों और किसानों में सरकार के प्रति भारी रोष है। इस तरह के हालात कभी पैदा नहीं हुए। व्यापार मंडल का कहना है कि प्रदेश का किसान घरों में ना रह कर सरसों व गेहूं की रखवाली करते हुए खेत, मंडियों व गेहूं खरीद सेंटर में रात-दिन पहरा दे रहा है। उसे चिंता है कि उसका पीला सोना गेहूं व काला सोना सरसों खराब ना हो जाए। मगर, सरकार है कि छोटी-मोटी आढ़तियों की समस्या का समाधान करने के बजाए कुंभकर्ण की नींद सो रही है।
सदियों से अनाज की खरीद सुचारू रूप से आढ़तियों के माध्यम से प्रदेश में हो रही है। ऐसा क्या हो गया कि इस कोरोना महामारी में पुरानी व्यवस्था को सरकार बदलने में लगी हुई है। किसान को किसी प्रकार की आपत्ति नहीं है तो सरकार अपनी शर्तें लागू करने के लिए आढ़तियों पर क्यों बार-बार दबाव बना रही है। आढ़ती व किसानों की समस्या को समझते हुए गेहूं व सरसों की खरीद और भुगतान पहले की तरह करना चाहिए। व्यापार मंडल के प्रदेश अध्यक्ष बजरंग गर्ग का कहना है कि सरकार को फसल की खरीद, बारदाना, सिलाई, अनाज उठान व फसल के भुगतान के अलावा हर प्रकार के पुख्ता प्रबंध करने चाहिए, ताकि हमारे दुखी अन्नदाता को राहत मिल सके
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वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा का कहना है कि बीजेपी-जेजेपी सरकार के जनविरोधी फैसलों के कारण आढ़ती हड़ताल पर हैं, जिससे अपनी फसल बेचने की बाट जोह रहे किसानों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है। आज महामारी के ऐसे वक्त में तो सरकार को चाहिए था कि प्रदेश के किसान और आढ़तियों को कुछ राहत देती। मगर, सरकार लगातार नए-नए फैसले लेकर किसान व आढ़तियों को राहत देने की बजाए उन्हें उजाड़ने में लगी हुई है।
सैलजा का कहना है कि सदियों से किसानों की फसल की खरीद व भुगतान आढ़तियों के माध्यम से होता आ रहा है। फसल मंडियों में खुले भाव में बिकती आ रही थी। प्रदेश के किसानों और आढ़तियों के बीच हमेशा से ही मधुर संबंध रहे हैं। जब भी किसान को पैसे से लेकर अन्य तरह की सहायता की जरूरत होती है तो आढ़ती उन्हें हरसंभव मदद मुहैया कराता है। मगर, सरकार आढ़ती व किसान के बीच इस भाईचारे को खराब करने के लिए अनाज की खरीद खुली बोली की बजाए ऑनलाइन करने जा रही है।
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सरकार की लचर नीतियों के कारण आढ़तियों के साथ-साथ किसानों की मुसीबतें भी बढ़ गई हैं। पहले ही फसल खरीद में हो रही देरी के कारण किसानों के लिए भंडारण की समस्या खड़ी हो गई है, मौसम बार बार बदल रहा है और उनकी फसल खुले में पड़ी है। जिन किसानों ने कर्ज लिया हुआ है, उन्हें फसल का भुगतान देरी से मिलने के कारण नुकसान उठाना पड़ रहा है। किसानों की अगली बुवाई भी प्रभावित हो रही है। सरकार उन किसानों की ही फसल खरीद रही है, जिन्होंने अपनी फसल का रजिस्ट्रेशन कराया है। किसानों के लिए एक बार में फसल खरीद की सीमा भी सरकार ने तय कर दी है।
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