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हरियाणाः अवैध खनन से 20 साल में सूखी बड़खल झील, सरकार की लापरवाही ने पानी को तरसाया

बड़खल झील का निर्माण 1947 में स्वतंत्रता के तुरंत बाद किया गया था, ताकि आसपास के खेतों को सिंचाई के लिए पानी मिल सके। बाद में एनसीआर में आवास निर्माण गतिविधियों में आई तेजी के बाद झील के आसपास बड़े पैमाने पर खनन किया जाने लगा, जिसकी वजह से झील सूख गई।

फोटोः आईएएनएस
फोटोः आईएएनएस 

फरीदाबाद में बड़खल झील कभी राष्ट्रीय राजधानी (एनसीआर) के लोगों के लिए पर्यटन स्थल थी, लेकिन अवैध खनन की वजह से पिछले 20 सालों से यह सूख कर बंजर हो चुकी है। सरकार के स्तर पर इस झील को दोबारा पुराने स्वरूप में लाने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने सहित कई उपायों पर विचार किया जाता रहा है, लेकिन नष्ट हो चुके जलदायी स्तर, गिरते भूजल स्तर और जलागम क्षेत्र में खड़े हो चुके अवरोध इसमें प्रमुख समस्याएं हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले वर्षो के दौरान खत्म हो चुके वन क्षेत्र को फिर से वनीकरण के जरिये पिछले स्वरूप में लाने से बड़खल झील को पुनर्जीवित किया जा सकता है। मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह का मानना है कि प्राकृतिक तरीके से ही झील का कायाकल्प किया जा सकता है। जल पुरुष के नाम से विख्यात राजेंद्र सिंह कहते हैं, "झील के लिए पानी का स्रोत जंगल है, जो कि खात्मे के कगार पर है। इसलिए जलागम क्षेत्र में वनीकरण की जरूरत है, जिससे जल का प्रवाह बना रहे।"

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बड़खल झील का निर्माण 1947 में स्वतंत्रता के तुरंत बाद किया गया था, ताकि आसपास के खेतों को सिंचाई के लिए पानी मिल सके। 1972 में हरियाणा सरकार ने झील के बगल में एक रिसार्ट का निर्माण किया। इसके बाद 1970 से 90 तक यह एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल रहा।

पर्यावरणविद चेतन अग्रवाल बताते हैं कि बाद में एनसीआर में आवास निर्माण गतिविधियों में आई तेजी के बाद झील के आसपास बड़े पैमाने पर खनन किया जाने लगा। अवैध खनन और उत्खनन की गतिविधि बढ़ने से झील में पानी का बहाव ही बाधित नहीं हुआ, बल्कि जलदायी स्तर को भी काफी नुकसान पहुंचा। इसके साथ ही शहरीकरण की वजह से इलाके में जंगलों की कटाई और जहां-तहां बोरबेल से पानी निकालने की वजह से स्थिति बद से बदतर हो गई और झील सूख गई।

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चेतन अग्रवाल ने कहा, "अवैध खनन और उत्खनन की वजह से जलदायी स्तर के साथ ही जल का प्रवाह भी प्रभावित हुआ। बड़खल झील के आसपास भूजल स्तर 150 से 200 फुट नीचे चला गया है। यही वजह है कि पानी जमीन में काफी तेजी से रिस जाता है। पेड़ों की कटाई और जंगलों का खत्म होना भी चिंता का एक कारण है।"

अरावली पर्वत श्रंखला में स्थित बड़खल झील के आसपास के क्षेत्र में जंगलों की कटाई से वनस्पति और जीवों को काफी नुकसान पहुंचा है। असोला वन्यजीव अभयारण्य भी यहां से काफी नजदीक है, जहां उत्खनन की गतिविधियां चरम पर हैं। बड़खल झील से 20 किलोमीटर दूर दमदमा झील है और उसकी भी हालत बड़खल झील की तरह ही हो गई है।

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अग्रवाल ने कहा कि अवैध खनन की वजह से पेड़ों की काफी कटाई हुई और बड़े पैमाने पर पक्षियों की आबादी कम हुई है। इलाके के एक युवा अशरफ खान ने कहा कि उसने बड़खल झील में कभी पानी नहीं देखा। उसने कहा, "मेरे माता-पिता बताते हैं कि पहले इसमें पानी था और गर्मी में लोग नौका विहार करते थे। लेकिन बारिश के मौसम को छोड़कर मैंने कभी झील को पानी से भरा नहीं देखा।"

हरियाणा सरकार के एक अधिकारी ने कहा, "दो दशक पहले तक बड़खल झील पानी से भरी रहती थी और पर्यटक गर्मियों में बड़ी तादाद में यहां आते थे। अब पर्यटक यहां नहीं के बराबर आते हैं।" हरियाणा सरकार संचालित 30 रूम वाले रिसार्ट में 20 साल पहले फुल बुकिंग रहती थी, लेकिन अब औसतन तीन-चार रूम की ही बुकिंग हो पाती है।

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आईआईटी-रूड़की को पिछले साल बड़खल झील की जियो-टेक्निलक रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। अब उसने रिपोर्ट हरियाणा सरकार को सौंप दी है। सरकार सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाना चाहती है और इसके लिए निविदा की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। हालांकि विशेषज्ञ इस योजना से सहमत नहीं हैं। सिंह का कहना है कि सरकार की योजना पुनर्जीवित करने की जगह मरम्मत करने की है।

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