धनराज वंजारी 2008 में कफ परेड पुलिस थाने के इचार्ज थे। कफ परेड मुंबई के दक्षिणी छोर पर स्थित है। तभी उन्हें लगा था कि मुंबई पर अगला आतंकी हमला शायद समुद्र के रास्ते आए आतंकियों द्वारा होगा।
कफ परेड के ससून डॉक पर मुंबई का सबसे बड़ी फिशिंग पोर्ट है और मछुआरों के साथ धनराज की बातचीत के दौरान उन्हें पता चला था कि बहुत कुछ अटपटा सा देखा जा रहा है और कई बार तो अनजान बोट (नाव) भी नजर आती हैं, जो निश्चित रूप से फिशिंग ट्रॉलर्स तो नहीं थीं और उन पर सवार लोग भी कुछ अनजाने से ही दिखते थे, जो शायद लैंडिंग की कोई सही जगह तलाश रहे थे। जब भी उत्सुक मछुआरे उन्हें देखते तो वे तुरत-फुरत वापस लौट जाते थे।
वंजारी को ये सब अजीब लगा और उनका माथा ठनका था। उन्हें पक्की आशंका हो गई थी मुंबई पर संभावित हमले की टोह लेने के लिए ही ऐसा सब कुछ हो रहा है। लेकिन हमला कितना बड़ा होगा, इसका अनुमान उन्हें नहीं था और उन्होंने सोचा कि यह छोटा-मोटा हमला होगा।
उन्होंने वेस्टर्न नेवल कमांड र कोस्ट गार्ड अथॉरिटीज को पत्र लिखा और चेतावनी दी कि समुद्र के एकदम नजदीक खड़ी वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की ट्विन टॉवर पर आतंकी हमले की संभावना है। इस पर कोई कार्यवाही होगी या नहीं, उन्होंने ऐसा सोचा ही नहीं। उधर नौसेना और कोस्ट गार्ड अधिकारियों ने सोचा कि एक मामूली सा पुलिस इंस्पेक्टर आखिर उन्हें कैसे सीधे पत्र लिख सकता है। उन्हें तो पुलिस कमिश्नर या डीजीपी जैसे उनके समकक्ष अधिकारी का पत्र आना चाहिए था।
क्रॉफोर्ड मार्केट स्थित पुलिस मुख्यालय की प्रतिक्रिया भी कुछ-कुछ ऐसी ही थी। मुंबई के आला पुलिस अधिकारी वंजारी से इस बात पर बेहद खफा हुए और उन्हें निलंबित कर दिया गया। एक सप्ताह से भी कम समय हुआ होगा जब मुंबई पर 26/11 का हमला हुआ। पुलिस और अन्य विभागों ने इस बात को छिपाने की कोशिश की, लेकिन यह बात और वंजारी का पत्र किसी तरह मीडिया के हाथ लग गया। जाहिर है इस मामले में कोई इंटेलीजेंस फेल्योर यानी खुफिया तंत्र की नाकामी नहीं थी। लेकिन अधिकारियों ने इस जानकारी को एक ऐसी जानकारी के तौर पर पेश किया जिस पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती थी। लेकिन यह सत्य नहीं है।
पुलिस विभाग के नियमों के मुताबिक फर्जी कॉल तक को गंभीरता से लिया जाता है और जांच-पड़ताल होती है। एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी का कहना है कि, “कितने ऐसे मौके आते हैं जब कोई कहीं बम रखे होने की झूठी खबर देता है, कई बार अपनी फ्लाइट या ट्रेन के लिए लेट होने पर ऐसे फोन कॉल किए जाते रहे हैं। कॉल से ही समझ आ जाता है कि कॉल फर्जी है, लेकिन जांच पड़ताल जरूर होती है। क्योंकि, कोई एक कॉल सही भी हो सकती है और हम जोखिम नही उठा सकते।“ उन्होंने आगे कहा कि, “हमें बाद में पता चलता है कि यह कॉल फर्जी थी और हम उस शख्स को हिरासत में लेते हैं। ऐसे में उन्हें करना सिर्फ इतना था कि समुद्र की चौकसी बढ़ा देते और हो सकता है कि पाकिस्तान से आए आंतकी वहीं दबोच लिए जाते।”
वंजारी उस समय भी पुलिस अफसर थे जब वे मुंबई हमलों की जांच कर रही समिति के सामने पेश हुए। इस समिति के अध्यक्ष पूर्व कैबिनेट सचिव आर डी प्रधान थे। ऐसे में वह समिति के सामने खुलकर अपनी बात नहीं रख पा रहे थे। प्रधान ने वंजारी की इस हिचकिचाहट को समझ लिया और जब उन्होंने अपनी जांच के नतीजों को एक किताब की शक्ल देना शुरु किया तो उन्होंने मुंबई पुलिस से वंजारी के बारे में पूछा कि आखिर वह इन दिनों कहां है।
प्रधान को पता चला कि वंजारी गायब है और शायद विदेश जाकर किसी और देश की नागरिकता ले चुका है और उसका अब प्रत्यार्पण नहीं हो सकता। लेकिन असलियत यह है कि वंजारी एक रिटायर्ड पुलिस वाले के तौर पर अपनी खुद की जांच एजेंसी चलाते हैं और अकसर टीवी पर सुरक्षा के मामलों पर विशेषज्ञ के तौर पर दिखते हैं।
आखिर एक दिन एक टीवी शो के दौरान ही प्रधान और वंजारी का आमना-सामना हो गया। तब उन्हें एहसास हुआ कि इस बार फर्जी कॉल तो मुंबई पुलिस ने उनके साथ ही कर दी, और शायद देश के साथ भी...
तो यह थी 26/11 की उस त्रासदी की कहानी...
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