सरकार ने जीएसटी नेटवर्क तैयार करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया, जिसके चलते इसे लागू करने में तमाम तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। जीएसटीएन सीईओ प्रकाश कुमार ने कहा कि अगर 8-9 सितंबर के बाद इसे लागू करते तो अव्यवस्था फैल जाती क्योंकि सरकार उस स्थिति में टैक्स वसूलने की स्थिति में नहीं रह जाती।
प्रकाश कुमार ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस को दिए इंटरव्यू में कहा कि जीएसटी नेटवर्क का पूरा सिस्टम कानून के मसौदे के आधार पर तैयार किया गया था। लेकिन पिछले साल मार्च में कानून में बदलाव कर दिए गए। उन्होंने कहा कि, "इस प्रकार, हमारे पास कानून मार्च में बनकर आया। नियमों पर अंतिम फैसला अप्रैल और मई में हुआ। और हमारे पास अधिकांश फॉर्म जून और जुलाई में आए।“
कुमार ने कहा कि समय निकलता जा रहा था, सरकार के लिए भी समयसीमा थी, क्योंकि नई कर व्यवस्था लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करने के लिए सिर्फ एक साल का समय था।
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उन्होंने कहा, “आठ या नौ सितंबर के बाद देश भर में अव्यवस्था फैल जाती, क्योंकि अगर संविधान संशोधन को समयसीमा में लागू नहीं किया जाता तो केंद्र या राज्य सरकारें किसी से कोई भी टैक्स लेने का कानूनी अधिकार खो देतीं। अगर आप टैक्स नहीं लगाएंगे और वसूलेंगे तो फिर सरकार कैसे चलेगी?”
उन्होंने बताया कि सरकार ने नई टैक्स व्यवस्था जीएसटी को लागू करने के लिए नेटवर्क को तैयार करने का पर्याप्त समय ही नहीं दिया था, इसके चलते शुरुआती महीनों में जबरदस्त दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा, "हालांकि, सिस्टम अब ठीक काम कर रहा है और सरकार ने भी माना है कि आगे अगर किसी किस्म का बदलाव करना होगा तो इसके लिए नेटवर्क की आईटी टीम को पर्याप्त समय देना होगा।"
गौरतलब है कि पिछले साल एक जुलाई को जीएसटी लागू होने के बाद पहले ही दिन से सिस्टम में खामियां पैदा होने लगीं और शुरुआत में पैदा हुईं समस्याएं एक फरवरी को ई-वे बिल लागू होने के बाद और बढ़ गईं। प्रकाश कुमार ने कहा कि ई-वे बिल लागू करने की तारीख पहले एक अप्रैल तय थी, लेकिन इसे फरवरी में ही लागू कर दिया गया, जो एक बड़ी भूल थी। कुमार ने कहा कि, "अगर एक अप्रैल की तारीख तय की गई थी तो हमें उसी का पालन करना चाहिए था। जरूरी समय नहीं दिया गया और इस बात को सरकार में हर कोई जानता था।"
उन्होंने कहा, "आईटी को लेकर गठित मंत्री समूह ने भी इसकी जांच की थी और कहा था कि इसे समय से पहले लागू नहीं किया जाना चाहिए। यही नहीं, मंत्री समूह के अध्यक्ष सुशील मोदी ने कहा था कि इसे क्रमबद्ध तरीके से लागू किया जाना चाहिए। सिस्टम और यूजर दोनों को समय दिया जाना चाहिए।" ई-वे बिल लागू होने से पहले भी सिस्टम में खराबी थी, जिसके बारे में कुमार ने कहा कि ऐसा सब समय न मिलने के कारण हुआ।
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उन्होंने दावा किया कि, “समय कम था और इस बात पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है। खामियां थीं और मॉड्यूल का क्रमबद्ध ढंग से संचालन नहीं हो पा रहा था। इसकी वजह यह थी कि कानून का मसौदा तैयार कर जिस तरीके से इसे पेश किया गया और नियमों और रिटर्न फॉर्म का प्रावधान किया गया, वैसे में समय की मजबूरी थी।”
उन्होंने कहा, "अब हमारा ध्यान इस बात पर नहीं होना चाहिए कि पीछे क्या हुआ, बल्कि इस बात पर होना चाहिए कि इसमें आगे कैसे सुधार किया जाए कि यह उपयोगकर्ताओं के लिए सुविधाजनक हो।" कुमार ने बताया कि इन्हीं सब समस्याओं के चलते ही जीएसटी परिषद ने 21 जुलाई की बैठक में रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया में पूरा बदलाव लाने का फैसला किया और परिषद ने आईटी सिस्टम को इसे तैयार करने के लिए छह महीने का समय दिया।
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