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उचाना कलां से ग्राउंड रिपोर्टः दुष्यंत की जमानत बचेगी या जब्त होगी? यही जानने में है पूरे हरियाणा की दिलचस्पी

बांगर का गढ़ कहे जाने वाले उचाना कलां में मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी और चौधरी बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह, जेजेपी के दुष्यंत चौटाला और बीजेपी के देवेंद्र अत्री के बीच ही है। लेकिन हवा और सारे समीकरण बीरेंद्र सिंह परिवार के पक्ष में ही दिख रहे हैं।

उचाना कलां में दुष्यंत की जमानत बचेगी या जब्त होगी? यही जानने में है पूरे हरियाणा की दिलचस्पी
उचाना कलां में दुष्यंत की जमानत बचेगी या जब्त होगी? यही जानने में है पूरे हरियाणा की दिलचस्पी फोटोः धीरेंद्र अवस्थी

“उचाना अगर किसी को आसमान की ऊंचाई दे सकता है तो जमीन पर पटकने में देर नहीं लगाता, दुष्यंत चौटाला ने यदि किसानों के समर्थन में इस्तीफा दिया होता तो आज हरियाणा की सियासत के सितारे होते।” यह हम नहीं कह रहे बल्कि उचाना कलां के मतदाता कह रहे हैं। जींद जिले का उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र हरियाणा का एक ऐसा चुनावी बैटल फील्ड बन गया है, जिसमें हर किसी की दिलचस्पी सिर्फ यह जानने की है कि दुष्यंत चौटाला की जमानत बचेगी या जब्त होगी। राज्य की सत्ता में साढ़े चार साल तक बीजेपी के साथ भागीदार रहे दुष्यंत चौटाला की 5 साल के अंदर इस हालत की कल्पना किसी ने नहीं की थी।

साल 2018 में इनेलो (इंडियन नेशनल लोकदल) के विभाजन से बनी जन नायक जनता पार्टी (जेजेपी) को 2019 के विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व सफलता मिली थी। अभूतपूर्व इसलिए कि नई नवेली बनी पार्टी ने उम्मीद के विपरीत 90 सदस्यीय विधानसभा में 10 सीटें जीतकर सभी को चकित कर दिया था। उस वक्त दुष्यंत चौटाला राज्य की सियासत में एक उभरते सितारे की तरह थे। उनके सौभाग्य से बहुमत के लिए जरूरी 46 विधायकों से बीजेपी दूर रहते हुए महज 40 की संख्या पर अटक गई थी। लिहाजा, जेजेपी का बीजेपी के साथ सरकार चलाने के लिए गठबंधन हो गया और पार्टी के सबसे बड़े चेहरे दुष्यंत चौटाला सरकार में उप-मुख्यमंत्री बनाए गए।

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चौधरी बीरेंद्र सिंह का गांव डूमरखां कलां

भविष्य में हरियाणा के मुख्यमंत्री के तौर पर देखे जा रहे दुष्यंत की किसान आंदोलन के दौरान एक के बाद एक गलतियां उन्हें अपने कोर वोटर से दूर ले गईं। आज हालत यहां तक पहुंच गई है कि जींद जिले के जिस उचाना कलां हलके के मतदाताओं ने उन्हें 5 साल पहले सियासत का चमकता सितारा बनाया था वही मतदाता आज दुष्यंत के लिए अपनी जमानत को बचाना भी चुनौती मान रहे हैं।

उचाना में प्रवेश करते ही मिले राकेश कहते हैं कि यदि दुष्यंत ने किसान आंदोलन के समय इस्तीफा दे दिया होता तो आज वह हरियाणा में मुख्यमंत्री पद के दावेदार होते। यह बात उचाना में कोई एक व्यक्ति नहीं कह रहा है। सवाल पूछते ही हर किसी की जुबां से यही बात निकल रही है। उचाना मंडी में मिले भूपेंद्र, सत्यवान, प्रदीप और नरेंद्र भी यही बात दोहराते हैं। चारों लोग कहते हैं कि दुष्यंत चौटाला तो जमानत बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। हिसार लोकसभा के तहत आते उचाना में लोकसभा चुनाव में जेजेपी को 4200 वोट मिले थे। वह कहते हैं कि हो सकता लोकसभा चुनाव से कुछ अधिक वोट मिल जाएं। लोकसभा चुनाव में हिसार से दुष्यंत की मां नैना चौटाला जेजेपी से प्रत्याशी थीं।

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उचाना मंडी

किसान आंदोलन के साथ फैमिली आईडी और बेरोजगारी जैसे सवाल भी उचाना में हैं। उचाना में बीज भंडार चला रहे ब्राम्हण भाईचारे से आते राकेश शर्मा भी कहते हैं कि दुष्यंत के लिए जमानत बचाना चुनौती है। लोकसभा चुनाव में मिले मतों के आसपास ही जेजेपी की स्थिति विधानसभा चुनाव में रह सकती है। वह कहते हैं कि निर्दलीय उम्मीदवार यहां समीकरण बिगाड़ रहे हैं। निर्दलीयों को जितने वोट मिलेंगे वह पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह के बेटे और हिसार से पूर्व सांसद कांग्रेस प्रत्याशी बृजेंद्र सिंह का नुकसान करेंगे। सभी निर्दलीय प्रत्याशी जाट हैं। केवल बीजेपी ने गैर जाट कार्ड खेलते हुए ब्राम्हण देवेंद्र अत्री को उतारा है। इससे उसको फायदा मिल सकता है। इसके चलते निर्दलीय वीरेंद्र घोघड़ियां और विकास काला पर सभी की नजरें हैं। सबसे ज्यादा चर्चा वीरेंद्र घोघड़ियां की है।

दुष्यंत चौटाला को लेकर गांव करसिन्धू के अनूप की राय भी मिलती जुलती थी। वह अपने गांव में करीब 6000 वोट बताते हैं, जिसमें वह कहते हैं कि बड़ा हिस्सा विकास काला को जो सकता है। 2014 में दुष्यंत के गोद लिए गांव मखण्ड के अमित कहते हैं कि अग्निवीर, बेरोजगारी और किसान आंदोलन चुनाव के बड़े मुद्दे हैं। बीजेपी सरकार के बिना पर्ची-खर्ची के नौकरी देने के दावे का मखौल उड़ाते हुए वह कहते हैं कि हमारे गांव के कम से कम 10 लड़के 10 से 20 लाख की रिश्वत देकर नौकरी में लगे हैं। सरकार की एमएसपी से कम दरों पर फसलें बिकने को भी वह मुद्दा मानते हैं। भावांतर भरपाई न मिलने के सवाल पर वह कहते हैं कि सरकार के पोर्टल चलते नहीं तो भावांतर भरपाई कैसे हो पाएगी।

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खड़कबूरा गांव के गुरमेल सिंह किसान आंदोलन को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा मानते हैं। चौधरी बीरेंद्र सिंह के गांव डूमरखां कलां में मिले ब्राम्हण भाईचारे से आते सुरेश कहते हैं कि जिंदगी में कभी चौधरी बीरेंद्र सिंह परिवार के अलावा किसी को वोट नहीं दिया। वह कहते हैं कि डूमरखां कलां और डूमरखां खुर्द मिलाकर करीब 7500 वोट हैं। इसमें अधिकतर बृजेंद्र सिंह को मिलने वाले हैं। चौधरी बीरेंद्र सिंह गांव से ही चुनाव की कैंपेनिंग कर रहे हैं। वहीं मिले शमशेर श्योकंद का भी कहना था कि यहां तो बृजेंद्र का ही पलड़ा भारी है। तिलक राज कहते हैं कि बीजेपी ने भी कुछ काम अच्छे किए हैं, लेकिन वोट चौधरी बीरेंद्र सिंह के परिवार को ही जाएगा। दलित भाईचारे से चमार बिरादरी के हवा सिंह चौधरी बीरेंद्र सिंह से नाराज दिखे, लेकिन कहने लगे कि वोट उनको ही देंगे। दावा भी किया कि उनकी बिरादरी के वोट कांग्रेस को ही जाएंगे।             

साढे़ चार दशक से चौधरी बीरेंद्र सिंह का गढ़ है उचाना

किसानों के मसीहा कहे जाने वाले सर छोटू राम के नाती पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह का साढे़ चार दशक से उचाना गढ़ है। बांगर के गढ़ उचाना कलां में अब तक हुए हर चुनाव में चौधरी बीरेंद्र सिंह के ईद-गिर्द ही सियासी समीकरण बनते-बिगड़ते रहे हैं। इस बार भी हालात इसी तरह के हैं। हालांकि, किसान आंदोलन के बाद उपजी नाराजगी से नकारात्मक कारणों से चर्चा दुष्यंत चौटाला की ज्यादा हो रही है। 1977 में जनता पार्टी की आंधी में हरियाणा में कांग्रेस सिर्फ 3 विधानसभा सीटें जीत पाई थी, जिसमें एक चौधरी बीरेंद्र सिंह की उचाना कलां भी थी।

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उचाना में पिछले 15 साल से चौटाला परिवार और बीरेंद्र सिंह परिवार के बीच ही मुकाबला होता रहा है। दो बार चौटाला परिवार और एक बार बीरेंद्र सिंह का परिवार यहां से चुनाव जीता है। चौटाला परिवार के यहां आने से पहले बीरेंद्र सिंह यहां से पांच बार विधायक रहे हैं। 2009 में बीरेंद्र सिंह ओमप्रकाश चौटाला से केवल 621 वोट से चुनाव हार गए थे। उचाना के इतिहास में ये सबसे छोटी हार है। इसके बाद बीरेंद्र सिंह ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा और अपनी पत्नी प्रेमलता को मैदान में उतारा। 2014 में बीरेंद्र सिंह का परिवार बीजेपी में शामिल हो गया। प्रेमलता 2014 में बीजेपी के टिकट पर यहां से विधायक चुनी गईं। 2019 में जेजेपी के दुष्यंत चौटाला ने प्रेमलता को 47452 वोटों से हराकर सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड बनाया। उचाना कलां विधानसभा सीट साल 1977 में अस्तित्व में आई थी। पहले ही चुनाव में चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।

उचाना कलां के समीकरण

दुष्यंत चौटाला ने यह कह कर शायद अंतिम दांव चल दिया है कि उनकी लाश उचाना कलां से ही उठेगी। लेकिन बांगर का गढ़ कहे जाने वाले उचाना कलां में मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी चौधरी बीरेंद्र सिंह के बेटे पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह और बीजेपी के देवेंद्र अत्री के बीच ही है। आम आदमी पार्टी ने पवन फौजी और इनेलो-बीएसपी ने विनोद पाल सिंह को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस के बागी वीरेंद्र घोघड़ियां और नगर पालिका के चेयरमैन विकास काला निर्दलीय मैदान में हैं।

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इस विधानसभा सीट पर करीब 2.17 लाख वोटर हैं। यहां सबसे ज्यादा 1.7 लाख जाट वोटर हैं। ब्राह्मण वोटर 28 हजार, ओबीसी 23 हजार, अनुसूचित जाति के 26 हजार और वैश्य वोटर करीब 7 हजार हैं। जाट समाज के 1.07 लाख वोट अगर दुष्यंत, बृजेंद्र, वीरेंद्र और निर्दलीय विकास काला में बंटे तो इससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। अगर जाट वोट एकतरफा कांग्रेस को गए तो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। उचाना सीट पर करीब 1.25 लाख वोट किसान परिवार से संबंध रखते हैं। इस चुनाव में किसानों के अधिकतर वोट कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो सकते हैं। कांग्रेस प्रत्याशी बृजेंद्र सिंह आईएएस अधिकारी रहे हैं। 2019 में वह स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आए थे। 2019 लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के टिकट पर हिसार से लोकसभा चुनाव लड़ा और दुष्यंत चौटाला को हराया था।

बीजेपी ने देवेंद्र अत्री के तौर पर यहां भी गैर जाट कार्ड चला है। गैर जाट कार्ड ही बीजेपी का अंतिम हथियार है। इस हथियार का इस्तेमाल बीजेपी ने किस तरह किया है इसे ऐसे समझा जा सकता है कि जाट डॉमिनेटेड पूरे जींद जिले के किसी भी विस क्षेत्र में बीजेपी ने जाट को उम्मीदवार नहीं बनाया है। उसकी सारी रणनीति जाट मतों के बंटवारे पर टिकी है।

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उचाना ब्लॉक समिति के पूर्व चेयरमैन बलबीर सिंह यहां का चुनावी गणित समझाते हैं। वह मानते हैं पूरा गणित बृजेंद्र सिंह के पक्ष में है। वह कहते हैं कि 20 गांव यहां दड़ान खाप के हैं। इन गावों में करीब 40-45 हजार वोट हैं। इसमें से 80 प्रतिशत वोट बृजेंद्र को मिलने वाला है। इसके अलावा छात्र और अड़ेवा गांव में 10-10 हजार वोट हैं। इनमें बृजेंद्र के कम से कम 60 प्रतिशत वोट हैं। दलित भाईचारे में उचाना में चमार बिरादरी के 18000 वोट हैं। मुसलमानों के भी उचाना में 8000 वोट हैं। इनमें से वह बहुतायत में वोट बृजेंद्र सिंह को जाता हुआ देखते हैं।

बलबीर सिंह कहते हैं कि कम से कम 25000 वोट यहां चौधरी बीरेंद्र सिंह के व्यक्तिगत हैं। यह कभी भी बीरेंद्र सिंह का साथ छोड़कर नहीं गए। वह कहते हैं कि उचाना में हर गांव में कांग्रेस का वोट है। चौधरी बीरेंद्र सिंह और बृजेंद्र की ईमानदार छवि को भी वह उनके पक्ष में देखते हैं। वह यह भी मानते हैं कि बीजेपी का भी हर गांव में वोट है, लेकिन कम तादाद में है। यहां तीसरे कोण के तौर पर कांग्रेस के बागी वीरेंद्र घोघड़ियां की काफी चर्चा है। वीरेंद्र अपने कार्यक्रमों में खुद को असली कांग्रेसी होने का दावा कर रहे हैं।

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वीरेंद्र घोघड़ियां के चुनाव कार्यालय में व्यवस्था देख रहे राकेश खटकड़ समीकरण समझाते हैं। वह कहते हैं कि 60 प्रतिशत जाटों का समर्थन उन्हें है। वह यह भी दावा करते हैं कि दुष्यंत चौटाला ने अपने समर्थकों को घोघड़ियां को वोट देने का इशारा कर दिया है। वह कहते हैं कि खेड़ा खाप और खटकड़ गोत्र के 12 गांव हैं। इनमें करीब 60,000 वोट हैं, जिनमें अधिकतर घोघड़ियां को मिलेंगे। वह दावा करते हैं कि नॉन जाट मतों में भी कम से कम 5000 वोट घोघड़ियां को मिलेंगे। यह तय है कि जितने वोट घोघड़ियां को मिलेंगे वह उतना ही बृजेंद्र सिंह का नुकसान करेंगे। बलबीर सिंह इसको लेकर कहते हैं कि निर्दलीय को वोट देकर कोई अपना मत खराब करने वाला नहीं है। वोटिंग के एक दिन पहले तक चुनाव सेटल हो जाएगा। वैसे पूरे हरियाणा की तरह यहां भी बदलाव की हवा है, जिसका फायदा कांग्रेस के उम्मीदवार को मिलता दिख रहा है।

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