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हरियाणा के निंदाना से ग्राउंड रिपोर्ट: खट्टर से इतनी नफरत क्यों करते हैं उनके गांव निंदाना के लोग?

गांव के लोग कहते हैं कि साढ़े नौ साल राज्य के मुखिया रहे, लेकिन गांव में एक ईंट नहीं लगवाई। इतने लंबे कार्यकाल में सिर्फ 2 बार गांव आए हैं। गांव वाले इतने नाराज हैं कि कह रहे हैं कि हिम्मत है तो चुनाव प्रचार के लिए एक बार गांव आकर दिखा दें।

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फोटो: Getty Images Hindustan Times

हरियाणा के साढ़े नौ साल मुख्यमंत्री रहे और वर्तमान में केंद्र में कैबिनेट मंत्री मनोहर लाल खट्टर से रोहतक जिले में स्थित उनके गांव निंदाना के लोग आखिर इतनी नफरत क्यों करते हैं। वह भी इस हद तक कि उनकी सूरत तक नहीं देखना चाहते। सामान्यतया यह बात थोड़ी अजीब लगती है, लेकिन सच है। गांव के लोग कहते हैं कि साढ़े नौ साल राज्य के मुखिया रहे, लेकिन गांव में एक ईंट नहीं लगवाई। इतने लंबे कार्यकाल में सिर्फ 2 बार गांव आए हैं। गांव वाले इतने नाराज हैं कि कह रहे हैं कि हिम्मत है तो चुनाव प्रचार के लिए एक बार गांव आकर दिखा दें।

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रोहतक जिले में स्थित गांव निंदाना राज्य के बड़े गांवों में से एक है। 10-12 हजार वोट वाले इस गांव में ही पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर का जन्म हुआ था। अब इस गांव में खट्टर के परिवार की कोई संपत्ति शेष नहीं है। पूरी संपत्ति परिवार बेच चुका है, लेकिन यादें तो शेष हैं। गांव में पैदा हुआ बच्चा जब राज्य के सर्वोच्च पद पर पहुंचता है तो किसी भी गांव के लिए यह फक्र की बात होती है। पर फक्र तो दूर की बात है यहां बात नफरत तक चली गई है। बात सिर्फ यहां तक होती तो ठीक थी कि गांव में कोई कार्य कारवाने के नाम पर खट्टर के खाते में शून्य है। वादा कर गांव की गलियां तक उखड़वा दीं, लेकिन फिर बनवाना भूल गए। गांववालों को जमीनों की किलेबंदी के जाल में ऐसा फंसाया है कि शायद कई पीढ़यां लड़ते हुए गुजार देंगी।

गांव के लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि अपनी जमीनों का बहीखाता ठीक करवाने के लिए उनके तकरीबन 15-20 करोड़ अब तक रिश्वत में जा चुके होंगे। यहां तक कि पटवारी रिश्वत लेते-लेते थक गया है। अब वह पैसे नहीं ले रहा है और हाथ जोड़ लिए हैं। हमारी मुलाकात गांव के शुरुआत में ही स्थित अपने घर के दरवाजे पर बैठे बुजुर्ग राजबीर से होती है। बात की शुरुआत इससे होती है कि पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर को गांव के लोग कैसे याद करते हैं। यह राजबीर की दुखती नस छेड़ने जैसा था। पहले तो उनके चेहरे में कुछ उत्तेजना जैसी आती है। फिर वह बोलना शुरू करते हैं। वह कहते हैं कि साढ़े नौ साल राज्य के सीएम रहे खट्टर ने गांव में एक ईंट तक नहीं लगवाई। साढ़े नौ साल में वह सिर्फ 2 बार गांव आए हैं। फिर वह असल मुख्य मुद्दे पर आते हैं।

राजबीर कहते हैं कि गांववालों ने सरकार से जमीनों की किलेबंदी का निवेदन किया था। इस पर सरकार ने एक टीम बैठा दी। फिर किलेबंदी का काम भी शुरू हो गया। यह काम 2015 में शुरू हुआ था, लेकिन ऐसी किलेबंदी हुई कि सभी को बुरी तरह फंसा दिया। जमीनों की गलत किलेबंदी कर दी गई। सभी की जमीनें इधर-उधर कर दीं। इसे ठीक करवाने के लिए अब तक गांव के लोगों के तकरीबन 20 करोड़ रुपये रिश्वत की भेंट चढ़ चुके होंगे।

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आखिर 15 जनवरी 2022 को गांववालों ने धरना शुरू कर दिया। रोज 1 हजार लोग धरने पर बैठते थे। इस गलत किलेबंदी को ठीक करवाने के लिए कम से कम 20 बार 50-50 लोग गांव के सीएम से चंडीगढ़ और रोहतक में जाकर मिले। हर बार ठीक करवाने का आश्वासन तो मिला, लेकिन हुआ कुछ नहीं। राजबीर कहते हैं कि आखिर में 2024 में फसल कटने के समय कुछ असामाजिक तत्वों ने छप्पर और टेंट से मिलाकर बने धरना स्थल को ही आग के हवाले कर दिया। उनका आरोप है कि सरकार की सह पर इसे अंजाम दिया गया। इसके बाद गांव में पुलिस आने लगी। जमींदारों को पुलिस धमकाने लगी। पुलिस कहती थी कि किलेबंदी के बाद मिली जमीन पर कब्जा करो और पुरानी छोड़ो, लेकिन गांव के लोग संतुष्ट न होने के चलते इसके लिए तैयार नहीं थे। 30 जुलाई 2024 तक यह सिलसिला चलता रहा।

राजबीर कहते हैं कि आज तक स्थिति है कि महज 20-25 प्रतिशत लोगों ने ही जमीनों पर कब्जा किया है। करीब 75 प्रतिशत लोगों ने जमीनों पर कब्जा ही नहीं लिया। हालांकि, वहीं आए नरेश ने इससे असहमति जताई, लेकिन 3 कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर 1 साल तक बैठे रहे किसानों को स्वार्थी तत्व समेत न जाने क्या-क्या कहने पर नरेश की मंशा समझ में आ गई। इसी बीच वहीं आ गए नरेश पंडित ने राजबीर की बातों से सहमति जताई।

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नरेश पंडित पुरोहित का काम करते हैं। नरेश पंडित कहते हैं कि खट्टर के जन्मदिन पर हमने ही धरनास्थल पर हवन करवाया था। सभी ने मिलकर खट्टर का जन्मदिन मनाया, लेकिन खट्टर ने गांव के साथ ठीक नहीं किया। गांव के बीच में मिले संजय राठी कहते हैं कि हमने कम से कम 50 दरखास्त निंदाना की तहसील लाखनमाजरा से महम करने के लिए दीं, लेकिन सरकार ने नहीं सुनी। दिल्ली से लेकर चंडीगढ़ तक सीएम से मिलने के लिए गए, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। संजय राठी कहते हैं कि साढ़े नौ साल में गांव का एक काम नहीं किया। गांववाले खट्टर की सूरत भी नहीं देखना चाहते। खट्टर के सीएम बनने के बाद गांव 10 साल पीछे चला गया। महम से बीजेपी प्रत्याशी दीपक हुड्डा के प्रचार के लिए निंदाना आने के लिए वह तैयार नहीं हैं। हिम्मत है तो वह निंदाना प्रचार के लिए आकर दिखाएं।

संजय राठी कहते हैं कि वह खट्टर के सीएम बनने के कारण बीजेपी से जुड़े थे, लेकिन अब छोड़ दी। गांव का सीवर व गलियां बनवाने का खट्टर ने वादा किया था। गलियां उखड़वा भी दीं, लेकिन बनवाई नहीं। वहीं, प्रजापति बिरादरी से आते सत्यवान कहते हैं कि खट्टर के सीएम बनने के बाद बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन सारी उम्मीदें धरी रह गईं। सत्यवान कहते हैं कि खट्टर जब यहां आए थे तो गांव में बिताए बचपन की यादें ताजा की थीं, लेकिन किया कुछ नहीं। गांव के ही कुलदीप कहते हैं कि खट्टर के सीएम बनने के बाद बड़ी खुशी हुई थी। लेकिन जब किया कुछ नहीं तो ऐसे सीएम का क्या करें। इसके बाद राजबीर मास्टर ने फिर तारीखों के साथ पूरा घटनाक्रम बताया। वह कहते हैं कि गांव के लोग किलेबंदी इसलिए चाहते थे कि निकलने के लिए रास्तों की जरूरत थी। कुछ और आवश्यकताएं थीं। गलत किलेबंदी के सबूत भी सीएम को दिए। सरकार ने जांच भी करवाई। सीएम ने किलेबंदी में भ्रष्टाचार होने की बात भी मानी। किलेबंदी को रद्द करने और 2015 का रिकॉर्ड वापस करने के लिए भी कह दिया।

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राजबीर मास्टर कहते हैं कि गांव के 1167 लोगों के हस्ताक्षरयुक्त आवेदन सरकार को दिया। कैंसिलेशन लेटर लेने के लिए भी कह दिया गया, लेकिन बाद में बताया गया कि सीएम ने मना कर दिया है। आज तक किलेबंदी कैंसिल नहीं हुई। राजबीर मास्टर कहते हैं कि हालत यह है कि पटवारी रिश्वत ले-ले कर थक गया है। अब उसने रिश्वत लेने से भी मना कर दिया है। वह कहते हैं कि आज तक धरना जारी है। आग की भेंट चढ़ने के बाद अब टीन शेड डाल कर धरना स्थल बनाया गया है। गांव के लोग कहते हैं खट्टर ऐसी जड़ डाल कर गए हैं कि गांव की कई पुश्तें उसमें उलझी रहेंगी।

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