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कैथल से ग्राउंड रिपोर्टः महाभारत कालीन शहर से सौतेला व्यवहार BJP पर भारी, मैदान में सुरजेवाला परिवार की तीसरी पीढ़ी

तकरीबन 1 साल पहले सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा को लेकर गुर्जर और राजपूतों के बीच संघर्ष का गवाह भी यह शहर बना था। राजपूतों ने इसके बाद जिले के 22 राजपूतों के गांवों में बीजेपी नेताओं की एंट्री बैन कर दी थी। आज भी यह सवाल जिंदा है।

महाभारत कालीन शहर से सौतेला व्यवहार BJP पर भारी, मैदान में सुरजेवाला परिवार की तीसरी पीढ़ी
महाभारत कालीन शहर से सौतेला व्यवहार BJP पर भारी, मैदान में सुरजेवाला परिवार की तीसरी पीढ़ी फोटोः धीरेंद्र अवस्थी

हरियाणा के महाभारत कालीन शहर कैथल में चुनावी महाभारत के फैसले पर पूरे राज्य की निगाहें हैं। सुरजेवाला परिवार की तीसरी पीढ़ी इस बार यहां से मैदान में है। इस शहर में जातीय समीकरण के साथ विकास का सवाल सबसे बड़ा प्रश्न बनकर उभरा है। बीजेपी की पिछले दस साल की सत्ता में शहर के लोगों को एक ईंट भी ऐसी नहीं नजर आई, जो विकास के नाम पर रखी गई हो। 10 साल पहले जो प्रोजेक्ट जहां था, आज भी वहीं खड़ा है। तकरीबन 1 साल पहले सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा को लेकर गुर्जर और राजपूतों के बीच संघर्ष का गवाह भी यह शहर बना था। राजपूतों ने इसके बाद जिले के 22 राजपूतों के गांवों में बीजेपी नेताओं की एंट्री बैन कर दी थी। आज भी यह सवाल जिंदा है।

इतिहासकार कहते हैं कि राजा युधिष्ठिर ने महाभारत युग के दौरान कैथल की स्थापना की थी। कपिस्थल से कैथल बना है। कपिस्थल का अर्थ बंदरों की जगह बताया जाता है। कैथल में बदलाव की आहट है, लेकिन बड़ी तादाद में लोग जातीय आधार पर मुकाबले को कड़ा मान रहे हैं। कैथल शहर का तकरीबन हर व्यक्ति इस बात की तस्दीक कर रहा है कि शहर में विकास के नाम पर जो भी नजर आता है, वह सुरजेवाला परिवार की देन है। पिछले 10 साल की बीजेपी सरकार में इस शहर में विकास के नाम पर एक ईंट नहीं रखी गई। 10 साल पहले शहर में जो प्रोजेक्ट आरंभ किए गए थे, वह वहीं खड़े हैं। विकास के मामले में शहर 10 साल पीछे चला गया है।

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शहर के लोग उस वक्त को भी याद कर रहे हैं जब रणदीप सुरजेवाला स्वयं टहलते हुए शहर की स्ट्रीट लाइट तक का जायजा लिया करते थे। हरियाणा राईस मिल एसोसिएशन के प्रेसिडेंट अमरजीत छाबड़ा बताते हैं कि शहर की सौंदर्यीकरण योजना के तहत सिटी स्क्वॉयर प्रोजेक्ट लाया गया था। यह हरियाणा के किसी भी शहर का इस तरह का पहला प्रोजेक्ट था। 5 एकड़ जमीन भी इसके लिए एक्वॉयर कर ली गई थी। बाउंड्री वाल तक बन गई थी। इसमें एक बैंक स्क्वॉयर बनना था, जिसमें सभी बैंक एक जगह आने थे। शहर को पार्किंग की समस्या से निजात दिलाने के लिए मल्टी स्टोरी पार्किंग का प्रोजेक्ट था। 10 साल में यह सभी प्रोजेक्ट एक कदम आगे नहीं बढ़े। छाबड़ा बताते हैं कि व्यापारियों से रंगदारी मांगने की कॉल कैथल में भी आ रही हैं। व्यापारी डर कर पुलिस के पास नहीं जा रहे हैं। प्रापर्टी आईडी और फैमिली आईडी भी एक बड़ा मुद्दा है।

कैथल में 5000 मुस्लिम वोट भी हैं। हिंदू-मुस्लिम करने की यहां भी कोशिश की गई, लेकिन सफल नहीं हुई। कैथल से बीजेपी के सिटिंग विधायक लीला राम गुर्जर पूरे 5 साल बोलते रहे कि सरकार में तो हमारी चलती नहीं। आढ़तियों के बड़े मुद्दे भी यहां हैं। अमरजीत छाबड़ा बताते हैं कि पहले लाइसेंस रिन्यूवल 2-3 साल में आढ़ती करवा लेते थे। अब हर साल अनिवार्य कर दिया गया। लाइसेंस फीस भी बढ़ाकर 60 रुपये से 600 रुपये कर दी। आढ़तियों का कमीशन पहले ढाई प्रतिशत प्रति सैकड़ा या 56 रुपये प्रति क्विंटल था। बीजेपी सरकार ने इसे 45 रुपये फिक्स कर दिया। घटती के नाम 2600 रुपये प्रति क्विंटल आढ़तियों के कमीशन से काट लिया, जिससे कमीशन ही खत्म हो गया।

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फोटोः धीरेंद्र अवस्थी

कैथल के पेहोवा चौक पर जूस की दुकान चला रहे राजेश कुमार कहते हैं कि आसपास जो भी काम देख रहे हैं, वह सभी सुरजेवाला के समय हुआ। आधुनिकता के पैमाने पर यह शहर तो एक तरह से सुरजेवाला का ही बनाया हुआ है। पिछले 5 साल से लीला राम गुर्जर बीजेपी के विधायक हैं। वह न तो किसी से मिलते-जुलते थे और न किसी का कोई काम करवाया, लेकिन मुकाबला अभी कांग्रेस-बीजेपी के बीच बराबर है। नई अनाज मंडी में आढ़ती नीरज कहते हैं कि इस सरकार में तो कोई सुनवाई ही नहीं है। धरना देते रहो, लेकिन सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता।

चुड़माजरा गांव के युवा रवि दहिया कहते हैं कि बेरोजगारी, महंगाई, पेट्रोल-गैस के दाम इस चुनाव में बड़ा मुद्दा हैं। रवि कहते हैं कि नौकरी न होने से उनके गांव के युवा 40-50 लाख देकर विदेश जा रहे हैं। गांव के करीब 50 बच्चे विदेश जा चुके हैं। पेहोवा चौक पर टी स्टाल चला रहे जोगिंदर कहते हैं कि बीजेपी विधायक कहता रहा कि सरकार में तो हमारी चलती नहीं। जब चलती ही नहीं तो फिर विधायक क्यों बनना चाहते हो। यह शहर तो सुरजेवाला का चमकाया हुआ है। वह दिखाते हैं कि एसपी, डीसी और लघु सचिवालय होने के बावजूद देखो रोड पर अंधेरा पसरा हुआ है। शहर में स्ट्रीट लाइट सुरजेवाला के वक्त लगाई गई थीं, लेकिन आज हालत यह है कि अधिकांश स्ट्रीट लाइट खराब पड़ी हैं। इस सरकार से यह भी नहीं करवाया गया। अस्पताल में डॉक्टर नहीं हैं। वह कहते हैं कि शहर में माहौल सुरजेवाला के पक्ष में है।

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जयकिशन मान कहते हैं कि दो ड्राइविंग कॉलेज हरियाणा में ऐसे आए, जिनका दिया लाइसेंस विदेशों में भी मान्य होता है। तमाम विभागों के आफिस पहले कुरुक्षेत्र और करनाल में होते थे। अब ये कैथल में भी हैं। ये सब सुरजेवाला के वक्त हुआ। ठांड रोड पर मिले सुनील और धर्मेंद्र कहते हैं कि मुकाबला बराबर है। ठांड चौक पर गन्ने का जूस बेच रहे बिट्टू कहते हैं कि फाइट कांग्रेस-बीजेपी के बीच में ही है। ठांड चौक पर ही लगी सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा पर गुर्जर लिखा होने से राजपूतों और गुर्जरों के बीच लंबे वक्त तक विवाद की स्थिति रही। इसका असर आज भी है। राजनीति के जानकारों ने बताया कि समस्याग्रस्त कैथल शहर के बाहरी क्षेत्रों और गावों में कांग्रेस की स्थिति ठीक मानी जा रही है। शहर के भीतरी क्षेत्र और गुर्जर बहुल गांवों में बीजेपी को फायदा मिल सकता है।

कैथल के समीकरण

यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला के बेटे आदित्य सुरजेवाला और बीजेपी के लीलाराम गुर्जर के बीच है। जाट समाज से चार तो गुर्जर समाज से दो उम्मीदवार यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। हरियाणा के पहले कृषि और सहकारिता मंत्री रहे शमशेर सिंह सुरजेवाला के परिवार का यहां वर्चस्व रहा है। अबकी सुरजेवाला परिवार फिर से चुनावी समर में है। पूर्व मंत्री स्व. शमशेर सुरजेवाला 1967 में पहली बार विधायक बने थे। इसके बाद 1977, 1982, 1991 और 2005 में विधायक और 1993 में सांसद बने।

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इसके बाद रणदीप सुरजेवाला ने अपने पिता की सियासी विरासत संभाली और 1993 उपचुनाव में विधायक बने। रणदीप सुरजेवाला ने 1996, 2000, 2005, 2009, 2014 और 2019 में छह चुनाव लड़े, जिसमें 1996 और 2005 में पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाला को हराकर उन्होंने ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। साल 2005 और 2009 में हुड्डा सरकार में वह मंत्री रहे, लेकिन 2019 में वह चुनाव हार गए। 2019 के चुनाव में वह बीजेपी के लीला राम गुर्जर से महज 1246 वोटों से हार गए थे। लीला राम पहली बार 2000 में इनेलो से विधायक बने थे। इसके बाद 2019 में बीजेपी से विधायक बने। अब वे तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। उनका दूसरी बार सामना सुरजेवाला परिवार से हो रहा है।

कैथल विधानसभा क्षेत्र में दो लाख 20 हजार 459 मतदाता हैं। इनमें से एक लाख 15 हजार 566 पुरुष और एक लाख चार हजार 892 महिला मतदाता हैं। कैथल विधानसभा सीट पर पंजाबी और वैश्य और जाट व गुर्जर समाज के लगभग बराबर वोट हैं। इसमें जाट व गुर्जर समाज के करीब 35-35 हजार वोट हैं। जबकि पंजाबी और वैश्य समाज के करीब 25-25 हजार वोट हैं। वहीं, एससी और बीसी के करीब 70 हजार और 30 हजार के आसपास अन्य वर्ग के वोट हैं।

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वर्ष 2009 के चुनाव में रणदीप सुरजेवाला ने इनेलो प्रत्याशी कैलाश भगत को मात दी थी। सुरजेवाला ने 58889 वोट हासिल किए थे। 22 हजार 502 मतों से उन्हें हराया था। वर्ष 2014 में भी रणदीप सुरजेवाला ने इनेलो प्रत्याशी कैलाश भगत को हराया था। बीजेपी के राव सुरेंद्र तीसरे नंबर पर रहे थे। सुरजेवाला को उस चुनाव में 65 हजार 524 वोट मिल थे। जीत का अंतर 23 हजार से अधिक वोटों का था।

राजपूतों के 22 गांवों में एक साल पहले बैन हुए थे बीजेपी नेता

करीब एक वर्ष पहले कैथल के ढांड चौक में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के नाम पट्ट पर गुर्जर शब्द लिखने से राजपूत समाज नाराज हो गया था। स्थानीय बीजेपी विधायक लीला राम गुर्जर की वजह से इस पूरे मामले में सरकार की भूमिका बेहद ढीली-ढाली थी। राजपूतों ने कैथल के राजपूत बहुल 22 गांवों में बीजेपी के नेताओं की एंट्री बैन करने का ऐलान कर दिया था। बीजेपी से जुड़े राजपूत समाज के तकरीबन तीन दर्जन नेताओं के इस्तीफे भी हुए थे। इसमें प्रदेश स्तर के नेता भी शामिल थे। इसके बाद प्रतिमा में लिखे गुर्जर शब्द को ढंक दिया गया था, लेकिन अब फिर गुर्जर शब्द दूर से दिख रहा है। राजपूत समाज में इसको लेकर नाराजगी है, जिसका खामियाजा भी बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है।

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