हालात

हरियाणा के गढ़ी-सांपला-किलोई से ग्राउंड रिपोर्टः भूपेंद्र सिंह हुड्डा को हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन!

परिसीमन के बाद हसनगढ़ विधानसभा सीट को किलोई सीट में मिला दिया गया था। अभी तक तीन बार 2009, 2014 और 2019 में चुनाव हो चुके हैं। तीनों ही बार भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

हरियाणा के दिग्गज पूर्व उप-प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल को लगातार 3 लोकसभा चुनाव में धूल चटाकर हाशिये पर धकेल हरियाणा की सियासत में सूर्य की तरह चमके पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा (भुप्पी) के गढ़ गढ़ी-सांपला-किलोई विस क्षेत्र में किसी भी पार्टी के लिए सेंध लगाना दिवा स्वप्न की तरह समझ आता है। इस विधानसभा क्षेत्र के हुड्डा के अभेद्य किले में तब्दील होने की कहानी कोई रहस्य नहीं है। ग्राउंड जीरो पर आकर यह बात बेहद आसानी से समझ आ जाती है। यहां के लोगों के लिए चुनाव महज औपचारिकता से ज्यादा नहीं हैं। पिछले 10 साल की उपेक्षा का दर्द लिए बैठे यहां के मतदाता चुनाव की तारीख का बड़ी शिद्दत से इंतजार कर रहे हैं।

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रोहतक जिले का गढ़ी-सांपला कोई सामान्य गांव नहीं है। इसी गांव में किसानों के मसीहा माने जाने वाले सर छोटूराम का जन्म हुआ था। हरियाणा के किसान-कामगार इस बात को मानते हैं कि आज भी यदि वह अच्छा जीवन जी रहे हैं तो इसकी वजह चौधरी छोटूराम के किए गए अविस्मरणीय सुधार हैं। यहां बना सर छोटूराम स्मारक किसान आंदोलन से लेकर हरियाणा के बड़े संघर्षों का आगाज स्थल है। इतने बड़े नाम से जुड़े गढ़ी गांव में प्रवेश करते ही पिछले 10 साल की बीजेपी सरकार में हुई यहां की उपेक्षा के साक्ष्य सामने खद-ब-खुद दिख जाते हैं। यही वजह है कि तीन स्थलों गढ़ी, सांपला और किलोई को जोड़कर बने इस विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं के लिए 2024 का चुनाव कोई सामान्य चुनाव नहीं है। एक भावी मुख्यमंत्री के सबसे बड़े दावेदार के लिए मतदान करने की बेसब्री यहां के मतदाताओं के चेहरे पर साफ दिखती है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा (यहां के लोगों के लिए भुप्पी) गढ़ी-सांपला-किलोई के लोगों के लिए सिर्फ एक नाम नहीं हैं। वह उम्मीद की एक ऐसी किरण भी हैं, जिसके साथ लोगों के सपने जुड़े हैं। गढ़ी-सांपला पहुंचते ही इस बात की तस्दीक हो जाती है।

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फोटो: धीरेंद्र अवस्थी

गढ़ी गांव के छोटे से तिराहे पर बैठे लोग पिछले 10 साल में बीजेपी की सत्ता के दौरान हुई उपेक्षा और भविष्य के सपनों का पिटारा खोल देते हैं। अमित, विनोद, देवेंदर और संजय कहते हैं कि बीजेपी सरकार में पिछले 10 साल में एक भी मंत्री यहां झांकने तक नहीं आया। गढ़ी गांव के तिराहे के साथ चौधरी छोटूराम के नाती और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह के नाम के लगे एक गौरव पट्ट की बुरी हालत को दिखाते हुए वह कहते हैं कि इसे देख कर आप खुद अंदाजा लगा लो। वह कहते हैं कि टूटे रोड में भरा पानी अपनी हालत खुद बता रहा है। बिजली 24 घंटे में 14-15 घंटे आती है, जबकि सरकार 24 घंटे बिजली सप्लाई का दावा करती है। पानी की समस्या गंभीर है। नहर (धुलेड़ा माइनर) में डेढ़-दो महीने में पानी आता है, वह भी पूरा नहीं आता। 10वीं तक लड़के और लड़कियों का एक ही स्कूल है। इसे 12वीं तक होना था। कई बार गांव के लोग सरकार के पास गए, लेकिन पिछले 10 साल में कभी सुनवाई नहीं हुई। हुड्डा के नेतृत्व वाली पिछली कांग्रेस सरकार में स्कूल 10वीं तक किया था। स्कूल में भी टीचर नहीं हैं। एक टीचर कई-कई सब्जेक्ट पढ़ाता है। गांव में पानी के निकास की व्यवस्था नहीं है।

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गढ़ी गांव के तिराहे पर ही स्थित पशुओं के अस्पताल की हालत भी दिखाई, जो जर्जर था। वह बताते हैं कि बारिश में इस अस्पताल में पानी भर जाता है। डॉक्टर कभी-कभी आता है। हुड्डा सरकार में गांव में एक छोटा स्टेडियम बना था। उसकी भी हालत ठीक नहीं है। गढ़ी गांव की बदहाली की इस फेहरिस्त को गिनाने के दौरान इस टोली में गांव के राजेश फौजी और बालकृष्ण शर्मा भी जुड़ गए। वह बताने लगे कि केंद्र सरकार में कानून मंत्री रहे हंसराज भारद्वाज भी इसी गांव के थे। वह कहते हैं कि पिछली हुड्डा सरकार में यहां तक मेट्रो के लिए सर्वे हुआ था, लेकिन पिछले 10 साल में बात उससे आगे नहीं बढ़ी। बहादुर गढ़ तक मेट्रो है, जिससे गढ़ी गांव तक की दूरी महज 16 किलोमीटर बताई। बीजेपी की 10 साल की सरकार के दिए दर्द की फेहरिस्त काफी लंबी थी। यह बताने के दौरान वह यह भी कहते रहे कि हुड्डा सरकार में यह तस्वीर नहीं थी। सरपंचों को अच्छी ग्रांट मिलती थी, जिससे काम होते थे। हालांकि, हुड्डा से उनकी कुछ नाराजगी भी थी, लेकिन वह वैसी ही थी, जैसी अपनों से होती है। रोहतक जिले के अंतिम और झज्जर जिले की सीमा पर स्थित इस गांव के तिराहे पर मौजूद इस टोली ने अंत में कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर की तरह ही इस बार यहां हुड्डा की लहर है। जीत का कोई रिकार्ड बन जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। यहां जातीय सीमाएं भी टूटती दिख रही थीं, क्योंकि इस टोली में सभी जाति के लोग शामिल थे। इतने बड़े नामों से जुड़े इस गांव की बदहाली की तस्वीर किसी आश्चर्य से कम नहीं थी। गढ़ी गांव में ही स्थित चौधरी छोटूराम स्मारक पर मिले झज्जर जिले के बापरौदा गांव के युवा सोमबीर राठी ने बेरोजगारी और अग्निवीर योजना से लेकर किसान आंदोलन तक के दौरान सरकार के रवैये की पूरी दास्तान सुना दी। सोमबीर कहते हैं कि 2016 के आरक्षण आंदोलन का आगाज भी इसी छोटूराम स्मारक से हुआ था, जिस पर बीजेपी सरकार के बर्ताव के जख्म भी अभी भरे नहीं हैं। गढ़ी-सांपला से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर किलोई की तस्वीर भी कुछ इसी तरह की थी। किलोई के मुख्य अड्डे पर उड़ती धूल बीजेपी सरकार की उपेक्षा की दास्तान खुद-ब-खुद सुना रही थी।

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फोटो: धीरेंद्र अवस्थी

राजपूत समाज के अनिल कहते हैं कि पिछले 10 साल में विकास के नाम पर यहां सिफर है। अस्पताल और आईटीआई समेत जो कुछ भी यहां है सब पिछली हुड्डा सरकार के समय का ही है। 10 साल में यहां एक ईंट नहीं लगी। यहीं मिले ओेबीसी समाज से आते युवा साहिल जांगड़ा ने बीजेपी सरकार की कथित यूएसपी की ही बखिया उधेड़ कर रख दी। साहिल कहते हैं कि वह सरकारी नौकरी के लिए 17 फिजिकल टेस्ट अब तक दे चुके हैं, लेकिन नौकरी नहीं मिली। अब मजबूरी में एक पुरानी टैक्सी खरीद कर किलोई से रोहतक तक चलाते हैं, जिससे बमुश्किल महीने में 10-12 हजार कमा पाते हैं। साहिल दावा करते हैं कि गांव में जिस भी युवा को बीजेपी की इस सरकार में नौकरी मिली है,बिना रिश्वत के नहीं मिली। ऐसा कहते हुए वह बीजेपी सरकार की बिना पर्ची-खर्ची के नौकरी देने के दावे की धज्जियां उड़ाते हुए दिखते हैं। किलोई के अस्पताल के बाहर एक सुखद नजारा देखने के लिए मिला जब जाट बिरादरी के दलबीर सिंह हुड्डा, दलित समाज से आते विजेंदर वाल्मीकि और सुशील कुमार चमार एक ही बोतल से पानी पीते दिखे। हरियाणा में सामाजिक सद्भाव की मिसाल इस भाईचारे के बीच 2016 आरक्षण आंदोलन के बाद बीजेपी की ओर से खोदी गई खाई कम से कम किलोई में इस नजारे से खत्म होती दिखी। विजेंदर और सुशील भी किलोई में 36 बिरादरी के बीच भाईचारे को एक मिसाल बताते हैं।

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फोटो: धीरेंद्र अवस्थी

दलबीर सिंह हुड्डा कहते हैं कि हमारे किलोई में 36 बिरादरी में भाईचारा है। फिर वह अस्पताल की हालत बताने लगते हैं। वह कहते हैं कि यहां एक्सरे मशीन काफी समय से खराब पड़ी है। डॉक्टर आने का कोई समय नहीं है। दवाएं बाहर से लेने पड़ती हैं। बगल में बने गांव के जलघर के तालाब में काई जमी है। पीने लायक पानी भी नहीं है। वह कहते हैं कि हमारे भुप्पी के समय ऐसा नहीं था। अग्निवीर के बाद के हालात बयां करते हुए वह कहते हैं कि गांव के स्टेडियम से ही सेना के अधिकारी पहले अच्छे युवाओं को भर्ती के लिए ले जाते थे। अब हालात ये हैं कि कोई भी युवा सेना में जाने के लिए तैयार नहीं है। वह कहते हैं कि इस सरकार ने तो प्रापर्टी आईडी और फैमिली आईडी के चक्कर में पूरा हरियाणा कतार में खड़ा कर दिया। विधानसभा चुनाव में यह एक बड़ा मुद्दा है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पीछे पूरा गांव लामबंद होने का उदाहरण देते हुए वह दावा करते हैं कि लोकसभा चुनाव में किलोई के तकरीबन 14000-15000 वोटों में से सिर्फ 280 वोट दूसरे उम्मीदवारों को मिले थे। लोकसभा चुनाव में ही गांव के लोगों ने हुड्डा से हाथ उठाकर कह दिया था कि विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए यहां आने की जरूरत नहीं है। जनता खुद चुनाव लड़ेगी। दलबीर सिंह हुड्डा बताते हैं कि रोहतक जिले में 14 गांव हुड्डा गोत्र के हैं, जिससे दबदबे का अंदाजा लगाया जा सकता है। गांव के बाहर जानवर चराते मिले सुरेश हुड्डा कहते हैं कि इस बार तो भुप्पी ही आएगा। इस पूरी कहानी से सहज तौर पर यह समझा जा सकता है कि 1991, 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में पूर्व उप-प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल को लगातार 3 बार हराकर हरियाणा की राजनीति में बड़ा नाम बने पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ी-सांपला-किलोई अभेद्य किला क्यों है।

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गढ़ी-सांपला-किलोई के समीकरण

पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सामने बीजेपी से रोहतक जिला परिषद की चेयरपर्सन मंजू हुड्‌डा प्रत्याशी हैं। उनके पति पूर्व गैंगस्टर हैं। मंजू हुड्डा ने महज 2 साल पहले राजनीति में कदम रखा है। कांग्रेस से टिकट के लिए यहां से अकेले भूपेंद्र सिंह हुड्डा का आवेदन आया था। कुल मतदाता 2 लाख से अधिक हैं, जिसमें सबसे अधिक 1 लाख से अधिक जाट मतदाता हैं। उसके बाद तकरीबन 40 हजार एससी व 20 हजार से अधिक ब्राम्हण मतदाता हैं। गढ़ी सांपला किलोई हलके का गांव सांघी हुड्डा का पैतृक गांव है। कहा जाता है कि जसिया, रिठाल, किलोई, मकड़ौली, चमारिया, गढ़ी सांपला,  ईस्माइला, भालौठ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां हुड्डा को प्रचार करने की भी जरूरत नहीं है। वोट उन्हीं के खाते में आने की उम्मीद है। ये गांव हुड्डा के गढ़ कहे जाते हैं।

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1967 में बना किलोई विधानसभा क्षेत्र 2009 में हुए परिसीमन के बाद गढ़ी सांपला किलोई विधानसभा क्षेत्र में बदल गया। परिसीमन के बाद हसनगढ़ विधानसभा सीट को किलोई सीट में मिला दिया गया था। अभी तक तीन बार 2009, 2014 और 2019 में चुनाव हो चुके हैं। तीनों ही बार भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की है। साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बीजेपी उम्मीदवार सतीश नांदल को हराकर जीत हासिल की थी। हुड्डा को 97, 755 वोट हासिल हुए थे। वहीं दूसरे स्थान पर बीजेपी उम्मीदवार सतीश नांदल को 39,443 वोट मिले थे। हुड्डा ने सतीश को लगभग 58,312 वोट के अंतर से हराया था। तीसरे स्थान पर रहे जेजेपी के संदीप हुड्डा को महज 5437 वोट हासिल हुए थे। इस बार बीजेपी यहां किन हलकों में कांग्रेस को टक्कर देगी, यह देखना भी रोचक होगा। आम आदमी पार्टी से प्रवीण गुसखानी, जजपा-आसपा से सुशीला देशवाल और इनेलो-बसपा ने कृष्ण कौशिक को उम्मीदवार बनाया है, जिनकी उपस्थिति भी नहीं नजर आती। प्रदेश में हॉट सीट बनी गढ़ी सांपला-किलोई से लगातार हुड्डा चुनाव जीत रहे हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा यहां से 5 बार चुनाव जीत चुके हैं। 2005 में हुड्डा किलोई से उप-चुनाव जीतकर दूसरी बार विधायक बने थे। इससे पहले जब उनको हरियाणा विधानसभा में विधायक दल का नेता चुना गया, तब वे सांसद थे। श्रीकृष्ण हुड्डा ने उनके लिए सीट खाली की थी।

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