हालात

सरकारी लापरवाही की वजह से टिड्डी दल अभी मचाता रहेगा तबाही, पहले ही देर से मंगाई गई मशीनें जून के अंत तक आएंगी

असमय बारिश और चक्रवात की बढ़ती गतिविधयों के कारण इस साल टिड्डियों की प्रजनन क्षमता 400 गुना तक बढ़ गई है। ये न सिर्फ उपज पर गंभीर असर डालेंगी, बल्कि कोविड-19 के दौरान लाॅकडाउन की वजह से पस्तहाल अर्थव्यवस्था से जूझ रहे किसानों के लिए यह दोहरा आघात होगा।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

कोविड-19 के अलावा देश के कम-से-कम पांच राज्यों को अगले एक-डेढ़ महीने टिड्डियों के आतंक के कारण मुसीबतों और आशंकाओं में गुजारने होंगे। जिस तरह कोविड-19 को लेकर अंदाजे और अंधेरे में सारे फैसले लिए जा रहे हैं, टिड्डियों का मामला भी ऐसा ही है।

करीब 30-35 साल से इस समस्या पर शोध-अनुसंधान नहीं हो रहे हैं और पिछले छह महीने में कम-से-कम चार राज्यों के किसान इसका आक्रमण झेलकर अपना काफी फसल खो चुके हैं। फिर भी इससे बचाव के उपाय के लिए मशीनें जून के तीसरे सप्ताह तक आने की उम्मीद है, जबकि अन्य उपकरणों के जून के अंत या जुलाई तक पहुंचने की संभावना है। ऐसे में, कोविड-19 से पैदा आर्थिक संकट से निबटने में खेत-खलिहानों से उम्मीद टिकाए लोगों को वस्तुतः राम जी पर ही भरोसा रखना चाहिए।

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इस साल टिड्डी दल जनवरी-फरवरी में ही राजस्थान और गुजरात में कई हेक्टेयर खेत चट कर गए। संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ऐसा अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो टिड्डियों की गतिविधियों को माॅनिटर करता है। इसने जनवरी में ही रिपोर्ट दी थी कि टिड्डियों का खतरा टला नहीं है। इसमें कहा गया थाः दक्षिणी तटों पर जनवरी में भारी बारिश हुई है और बाढ़ आई है। यहां वयस्क और झुंड बनाकर अंडे देने वाले टिड्डी अंडे दे रहे हैं।

बीकानेर में स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक (रिसर्च) एसएस गोदारा ने भी तब ही कहा था कि टिड्डी आम तौर पर खरीफ के मौसम तक भारत में रुकते हैं, लेकिन इस बार ये गए नहीं हैं और वे रबी की फसल भी नष्ट कर रहे हैं। चूंकि पारंपरिक तौर पर भारत और पाकिस्तान इससे वर्षों से आक्रांत रहे हैं, इसलिए टिड्डियों पर नियंत्रण के लिए वे हर साल बैठकें करते रहे हैं। इस तरह की बैठक में भाग लेने वाले केंद्र सरकार के पौधा संरक्षण, क्वारंटाइन और स्टोरेज के उपनिदेशक केएल गुर्जर ने जनवरी में ही कहा था कि पाकिस्तान इस मसले पर ध्यान नहीं दे रहा है।

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फिर भी, अपना कृषि मंत्रालय सोया ही रहा। उसकी नींद खुली मई में, तब जबकि राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब में टिड्डियों का आतंक फैल गया और टिड्डियों के दल के दिल्ली पहुंच जाने का खतरा मंडराने लगा। लगता है, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को अपने गृह राज्य- मध्य प्रदेश की राजनीति से फुर्सत ही नहीं मिल रही थी और इसी कारण अफसरों की बातों पर ध्यान देने का उन्हें वक्त ही नहीं मिल पाया।

जनवरी-फरवरी से ही इसे लेकर चेतावनी दे रहे उपनिदेशक केएल गुर्जर की बात मानें, तो चूंकि इस बार टिड्डियों का हमला दो से तीन गुना होने की आशंका है, इसलिए कृषि मंत्रालय ने छिड़काव वाले 60 नए मशीनों का आदेश किया है। कुछ मशीनें ब्रिटेन से 11 या 12 जून तक आने की उम्मीद है, जबकि कुछ बाद में आ पाएंगी। सरकार ने एरियल किट्स भी मंगवाए हैं। इनके भी जून के अंत या जुलाई में आने की उम्मीद है। फिलहाल विमान और ड्रोन से कीटनाशकों के छिड़काव की तैयारी है। लेकिन अधिकारियों का कहना है कि जिन टिड्डियों का इस बार आतंक है, वे अपेक्षाकृत अधिक दूरी पर उड़ती हैं, इसलिए कहना मुश्किल है कि ड्रोन का उपयोग कितना प्रभावी हो पाएगा।

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फरीदाबाद के टिड्डी चेतावनी संगठन में संयुक्त निदेशक जेपी सिंह के अनुसार, पूर्वी अफ्रीका, पश्चिमी अरब सागर और पूर्वी हिंद महासागर में दो साल पहले आया ‘पवन साइक्लोन’ अब प्रभाव दिखा रहा है। यमन में भारी बारिश होने के चलते तब टिड्डियों ने वहां अपना ठिकाना बना लिया था। पिछले दो वर्षों में यमन में टिड्डियों का प्रजजन चक्र चलता रहा और अब वही ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रास्ते भारत आ रहे हैं। इसी वजह से ये टिड्डियां गर्मी के दिनों में आई हैं। इसे जलवायु परिवर्तन से जोड़कर भी देखा जा रहा है।

सींगों वाला यह कीट 130 से 150 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ने की क्षमता रखता है। आंधियों की मदद से यह तेजी के साथ और दूर तक फैलता है। यही वजह है कि महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल से भी टिड्डियों के हमले की खबरें आ रही हैं। जेपी सिंह का कहना है कि मई महीने तक कितना नुकसान हुआ है, अभी बताना संभव नहीं है लेकिन अधिकांश प्रभावित प्रदेशों के खेतों में अभी फसलें नहीं हैं, इसलिए नुकसान कम होने का अनुमान है। वैसे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि टिड्डियों के हमले में हरियाली को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा है।

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संकट यह है कि यमन की ओर से आए टिड्डियों ने यहां अंडे दे दिए हैं और इसलिए उनका आतंक लगातार बना रहेगा। मादा टिड्डी रेगिस्तानी इलाकों में 5 से 10 सेंटीमीटर अंदर 70 से 80 अंडे का गुच्छा रख देती हैं। एक टिड्डी दिन भर में अपने वजन के अनुसार 2 ग्राम भोजन ही खाता है। लेकिन ध्यान रहे कि एक वर्ग किलामीटर इलाके में टिड्डी दल में 4 से 8 करोड़ तक टिड्डी होती हैं और माना जाता है कि इतनी टिड्डियां एक दिन में 35 हजार लोगों तक का भोजन सफाचट कर जाती हैं।

यह विपदा कितनी बड़ी है, इसे कृषि और व्यापार नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा की बातों से समझा जा सकता है। उनका कहना है कि असमय की बारिश और साइक्लोन की बढ़ती गतिविधयों की वजह से इस साल टिड्डियों की प्रजनन क्षमता में 400 गुना तक की बढ़ोतरी हो गई है। ये न सिर्फ खाद्यान्न उपज पर गंभीर असर डालेंगी, बल्कि कोविड-19 के दौरान लाॅकडाउन की वजह से पस्तहाल अर्थव्यवस्था से जूझ रहे किसानों के लिए यह दोहरा आघात होगा। लेकिन दिक्कत यह है कि सरकार इससे निबटने के लिए कुछ भी आपातकालीन स्तर पर नहीं कर रही है।

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