हालात

विरोध का नया जरिया बना ग्रैफिटी, जामिया की सड़कों-दीवारों पर छात्र-कलाकार बयां कर रहे दर्द

जिस तरह गायक गीत गाकर, लेखक लिखकर, नाटककार नाटक करके अपने विरोध को व्यक्त कर रहे हैं, उसी तरह चित्रकार भी चित्रों के माध्यम से अपनी बात कर रहे हैं। इन चित्रकारों का कहना है कि सीएए बहुत ही खतरनाक कानून है जिसका देश और समाज पर बहुत खराब असर होने वाला है।

फोटोः क़ाज़ी मोहम्मद राग़िब 
फोटोः क़ाज़ी मोहम्मद राग़िब  

जब भी सत्ता आम जनता के अधिकारों का हनन करती है और क्रूरता पर उतरती है तब लोग भी अपने विभिन्न लोकतांत्रिक अधिकारों का उपयोग करते हुए उसका विरोध करने लगते हैं। इतिहास में ऐसा अनेकों बार देखा गया है। हिटलर से लेकर तमाम तानाशाहों के खिलाफ जनता ने समय- समय पर विरोध के नए-नए तरीके अख्तियार किए और तानाशाही के खिलाफ न केवल आवाज बुलंद की बल्कि पीड़ितों को आवाज प्रदान की।

कुछ ऐसा ही हाल-फिलहाल सीएए, एनआरसी, जेएनयू, जामिया, अलीगढ़ और अन्य विश्वविद्यालयों के छात्रों पर फायरिंग, प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज और गोलीबारी आदि के खिलाफ विरोध के नित नए तरीके अपनाए जा रहे हैं। इसमें से एक उल्लेखनीय काम किया है जामिया के फाइन आर्ट्स के छात्रों और अन्य चित्रकारों ने, जो ग्रैफिटी के माध्यम से पिछले करीब एक महीने से ज्यादा समय से सड़कों पर चित्र बनाकर विरोध की आवाज बुलंद कर रहे हैं। इसे काफी शोहरत भी मिल रही है।

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इस ग्रैफेटी की शुरुआत फैज की लोकप्रिय कविता ‘हम देखेंगे’ से की गई थी। इन कलाकारों का कहना है कि देश का हर व्यक्ति सीएए और एनआरसी का विरोध कर रहा है। लोग परेशान हैं। उनकी आवाज को मजबूती प्रदान करने के लिए उन्होंने चित्रों को जरिया बनाया है। जिस तरह गायक गीत गाकर, लेखक लिखकर, नाटककार नाटक करके अपने विरोध को व्यक्त कर रहे हैं उसी तरह चित्रकार भी चित्रों के माध्यम से अपनी बात कर रहे हैं। ये चित्रकार अपनी पहचान नहीं बताना चाहते पर चाहते हैं कि उनकी बात लोगों तक पहुंचे।

इन चित्रकारों का कहना है कि सीएए बहुत ही खतरनाक कानून है, जिसका देश और समाज पर बहुत खराब असर होने वाला है। एक खास तरह का भेदभाव वाला माहौल निर्मित किया जा रहा है। इसका विरोध किया जाता है तो सरकार द्वारा बर्बरता की जाती है। जामिया में लाइब्रेरी में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं को बेरहमी से पीटा गया, फायरिंग की गई। पूरे देश में विरोध करने वालों का तरह-तरह से दमन किया जा रहा है। इस सबके खिलाफ हम ग्रेफिटी बना रहे हैं। यह सरकार जामिया और जेएनयू जैसे तमाम शिक्षण संस्थानों को खत्म करना चाहती है। ऐसे में हम चित्रों के जरिये लोगों को सच्चाई से रूबरू करना चाहते हैं। इनमें से एक चित्रकार छात्र का कहना है की विजुअल एक्सप्रेशन से आसानी से आम आदमी को समझाया जा सकता है। हम कलाकार हैं। इसलिए हमने कला का माध्यम अपनाया है।

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एक चित्रकार ने बताया कि उसने अपनी ग्रैफेटी की शुरुआत 30 जनवरी के उस दृश्य से की है जिसमें एक गोपाल नाम के लड़के ने प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग की थी और एक छात्र घायल हो गया था। इस दौरान पुलिस मूकदर्शक बनकर खड़ी रही थी। उन्होंने कहा कि हमने इसे दिखाने की कोशिश की ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक यह बात पहुंच सके। एक और छात्रा का कहना है कि हमारे विजुअल का इंपैक्ट पड़ा है। लोग पूरी दिल्ली से हमारे चित्रों को देखने आ रहे हैं। अपने बच्चों को साथ ला रहे हैं।

इन कलाकार छात्रों का कहना है कि हम यह बताने में सफल हो रहे हैं कि इस काले कानून का देश और समाज पर क्या असर होने वाला है। इन छात्र-छात्राओं को कहना है कि इसे बनाने में जो भी रंगों का इस्तेमाल और खर्च हो रहा है, वह सब अपने आप कर रहे हैं। कोई बाहर से ऐसी कोई फंडिंग नहीं है। अपने खर्चे बचाकर देश के हालात को चित्रित कर रहे हैं। चित्रों के अलावा कुछ कलाकारों ने उर्दू-हिंदी कैलीग्राफी के माध्यम से भी विचारों को दर्शाया है।

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जामिया की छात्र फरहा जमाल ने ‘स्टैंड युनाइटेड ग्रुप’ बनाया और इसके बैनर तले सभी कलाकार अपने रूपों/ विचारों को चित्रित कर रहे हैं। उनका कहना था कि वे सब मिलकर चित्रों के जरिये अपने विचार लोगों के सामने रख रहे हैं। वह चाहती हैं कि सरकार छात्रों और आम लोगों पर दमन बंद करे और काले कानून वापस ले।

इस ग्रैफिटी को समाज के अन्य लोगों का भी समर्थन मिल रहा है। कुछ लोग टीचर हैं। वे अपनी नौकरी से 3:00 बजे के बाद आकर चित्र बनाते हैं। कुछ कलाकार नौकरी करते हैं। वह अपने ऑफिस के बाद यहां आकर इस काले कानून के खिलाफ चित्रों के माध्यम से अपने विचार प्रकट करते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि उनके स्कूल से, उनके ऑफिस से उनको कहा गया है कि या तो आप जामिया पर चित्र बनाओ और या स्कूल में पढ़ाओ, वरना हम आपको नौकरी से निकाल देंगे। जामिया के छात्र और बाहर के लोगों ने मिलकर यह बहुत अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसकी बहुत प्रशंसा की जा रही है।

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