मोदी सरकार जल्द ही सरकारी टेलीकॉम कंपनी बीएसएनल, एमटीएनएल और बीबीएनएल (भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क) का आपस में विलय कर एक कंपनी बनाने वाल है। सरकार की मंशा सिर्फ एक ही सरकारी टेलीकॉम कंपनी चलाने की है। लेकिन बीएसएनेल के कर्मचारियों ने सरकार की इस मंशा का विरोध किया है। कर्मचारियों ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुधवार को एक पत्र भेजकर इस विलय को रोकने के लिए दखल देने की मांग की है।
कर्मचारियों का कहना है कि विलय होने के बाद पहले से आर्थिक दिक्कतों से जूझ रहे बीएसएनएल की परेशानियां और बढ़ जाएंगी, इसलिए प्रधानमंत्री को इस बारे में जरूरी कदम उठाकर बीएसएनएल के हितों की रक्षा करना चाहिए। पत्र में कहा गया है कि, “बीएसएनएल सीएमडी का यह कहना कि एमटीएनएल आईसीयू में है और किसी भी दिन इसकी मृत्यु हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा था कि एमटीएनएल किसी बहुत बड़ी आपदा का शिकार होने वाला है।”
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बीएसएनएल कर्मचारी यूनियन के महासचिव पी अभिमन्यू ने बताया कि पत्र में आगे कहा गया है कि, “सीएमडी ने बीएसएनएल की आर्थिक स्थिति के बारे में कोई जिक्र नहीं किया। इन हालात में अगर सरकार एमटीएनएल और बीएसएनएल का विलय करती है तो हालात और खराब होंगे। विलय के बाद पहले से दिक्कतों से जूझ रही बीएसएनएल इस स्थिति में पहुंच जाएगा जहां से उसे संभालना मुश्किल होगा।”
उन्होंने कहा कि कि विलय के बजाए सरकार को एमटीएनएल पर मौजूदा 26 हजार करोड़ के कर्ज के बारे में सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर सरकार बीएसएनएल को जीवित रखना चाहती है तो उसे इस कंपनी में पैसा लगाना होगा।
रोचक है कि जहां बीएसएनएल कर्मचारी इस विलय का खुलकर विरोध कर रहे हैं, वहीं एमटीएनएल और बीबीएनएल के कर्मचारी इस मुद्दे पर खामोश हैं।
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विलय की औपचारिकताओं से वाकिफ एक सूत्र का कहना है कि, “सरकार का मानना है कि तीनों कंपनियों की बैलेंस शीट मिलाने के बाद ही उन्हें बचाया जा सकता है।”
ध्यान रहे कि दूरसंचार विभाग ने एक कैबिनेट नोट तैयार किया है जिसमें विलय की बात कही गई है। सूत्रों के मुताबिक सरकार इन कंपनियों में 1.6 ट्रिलियन रुपए डालने की योजना बना रही है जिसमें से 36,260 करोड़ रुपए से अगले तीन साल में बीएसएनएल और एमटीएनएल को नकद सहायता मिलेगी। सूत्रों के मुताबिक सरकार मानती है कि तीनों कंपनियों के विलय के बाद नई कंपनी देश भर में 4-जी वायरलैस सेवाएं, फिक्स्ड लाइन फाइबर ब्रॉडबैंड सेवा और इंटरप्राइज सेवाएं और अधिक प्रभावी तरीके से देने में सक्षम होगी।
वैसे यह पहला मौका नहीं है जब केंद्र सरकार ने टेलीकॉम कंपनियों के विलय की योजना बनाई है। 2019 में भी केंद्रीय कैबिनेट ने सरकारी टेलीकॉम कंपनियों के विलय को मंजूरी दी थी।
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