हालात

लॉकडाउनः गरीबों तक सरकारी मदद पहुंचना आसान नहीं, लोग मदद के लिए नहीं बढ़ा रहे होते हाथ तो जाने क्या होता हाल

लाॅकडाउन का दंश सबसे अधिक गरीब भुगत रहे हैं। उनकी मदद में सरकार तो कम ही है, लेकिन लोगों का स्वतःस्फूर्त प्रयास हर जगह दिख रहा है। केंद्र से लेकर राज्य सरकारों ने घोषणाएं तो कीं लेकिन यह नहीं सोचा कि जरूरतमंदों तक पहुंचने का इन्फ्रास्ट्रक्चर तो है ही नहीं।

फोटोः बिपिन
फोटोः बिपिन 

कहते हैं, किसी भी विपदा का मुकाबला समाज मिलकर ही कर सकता है। देश-समाज पर विपदा का मुकाबला कोई अकेला कर ही नहीं सकता। लॉकडाउन के दौरान भी यह बात सच नजर आ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रात में टीवी पर आकर लाॅकडाउन की घोषणा करते हुए समाज के गरीब तबके की मदद की बात कह तो दी, लेकिन कोई सरकारी कदम न उठते देखकर ही महानगरों से असंगठित क्षेत्र के लोग अपने गांवों की ओर भागने लगे।

ऐसे में, जाने-अनजाने स्वयंसेवी समूहों के साथ सामूहिक-पारिवारिक प्रयासों के अनगिनत हाथों ने आम लोगों के हाथ थाम लिए हैं। इन गरीबों की मदद में सरकार तो कम ही नजर आ रही, लोगों का स्वतःस्फूर्त प्रयास हर जगह नजर आ रहा है। ऐसे न होता, तो लोग कोरोना से तो बाद में काल के गाल समाते, भुखमरी उन्हें पहले जकड़ लेती।

अचानक लॉकडाउन के बाद यहां-वहां से लोग जब अपने गांवों की ओर भागने लगे, तो उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने कई लोक लुभावन घोषणाएं कीं लेकिन इसका लाभ मार्च बीतने के बावजूद 50 फीसदी जरूरतमंदों तक भी पहुंचता नहीं दिख रहा। सरकार का दावा 35 लाख मजदूरों के खाते में एक-एक हजार डालने का है। सिस्टम की चूक और अफसरों की लापरवाही के चलते आधे लोगों को भी अब तक मदद नहीं पहुंची है।

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श्रम विभाग में पंजीकृत प्रदेश भर के 19.90 लाख मजदूरों के खाते में 1,000-1,000 रुपये भेजा जाना है। इनमें से सिर्फ 8.42 लाख मजदूरों के बैंक अकाउंट ही अपडेट हैं। करीब 62 हजार लाभार्थी ऐसे हैं जिनके बैंक डीटेल में कुछ-न-कुछ त्रुटि है। ऐसे में, विभाग सिर्फ 7.81 लाख मजदूरों के खाते में सहायता राशि डालने की स्थिति में है। यही हाल पंजीकृत रेहड़ी कारोबारियों का है। प्रदेश के 17 नगर निगमों में 1.25 लाख के आसपास रेहड़ी वाले पंजीकृत हैं। इन्हें भी 1,000-1,000 रुपये की मदद का दावा है।

योगी के अपने शहर गोरखपुर की हकीकत प्रदेश की तस्वीर बयां करती है। गोरखपुर नगर निगम में 7,888 रेहड़ी वाले पंजीकृत हैं। निगम में 12 कर्मचारी रेहड़ी वालों के बैंक अकाउंट की डीटेल जुटा रहे हैं। मार्च बीतने तक बमुश्किल 140 की डीटेल ही लखनऊ भेजी जा सकी है। अपर नगर आयुक्त डीके सिन्हा कहते हैं कि अकांउट नंबर पूछने पर रेहड़ी वाले जालसाज होने की बात कहते हुए फोन काट दे रहे हैं।

वैसे, बीते 30 मार्च को 27.5 लाख मजदूरों के खाते में 611 करोड़ के बकाये का भुगतान एक क्लिक में किया गया। मुख्यमंत्री ने अप्रैल से जून महीने के बीच उज्जवला योजना के करीब 22 लाभार्थियों को 3 सिलिंडर फ्री में देने की घोषणा की है। सरकार की तरफ से अभी गाइड लाइन नहीं आई है लेकिन माना जा रहा है कि सिलिंडर रिफिल कराने के लिए गरीबों को पहले वर्तमान मूल्य- 865 रुपये, का भुगतान करना होगा, बाद में पूरी रकम खाते में ट्रांसफर होगी। सवाल उठता है कि इस मुश्किल वक्त में गरीब कहां से नकदी लाएंगे।

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वैसे, सरकार कुछ अन्य कोशिशें भी करती दिख रही है, भले ही यह ऊंट के मुंह में जीरे की तरह हो। लखनऊ में जिला प्रशासन, लखनऊ विकास प्राधिकरण और नगर निगम के बेस किचेन से रोज 1.10 लाख से अधिक लोगों को लंच पैकेट मुहैया कराने का दावा है। लखनऊ के मंडलायुक्त मुकेश मेश्राम ने अक्षय पात्रा फाउंडेशन को भी इस काम में लगाया है। संस्था द्वारा रोज 50 हजार लंच पैकेट तैयार किया जा रहा है।

लेकिन इस लॉकडाउन में असली काम तो स्वयंसेवी संस्थाएं कर रही हैं। दिहाड़ी मजदूर, ठेके के मजदूरों, रिक्शेवालों के साथ भिखारी आदि को दो वक्त की रोटी देने में उनके प्रयास दिख भी रहे हैं। कुछ जगहों पर बर्बरता दिखाने वाली पुलिस का मानवीय चेहरा भी दिख रहा है। अयोध्या में कोतवाली प्रभारी इंस्पेक्टर नितीश श्रीवास्तव सरीखे पुलिसकर्मियों ने नोएडा और गाजियाबाद आदि से पैदल या फिर रोडवेज बसों में आए भूखे लोगों को भरपूर मदद की।

इंस्पेक्टर नितीश बताते हैं कि ‘आम नागरिकों के सहयोग से घर लौट रहे 6 हजार से अधिक मजदूरों को लंच पैकेट मुहैया कराया गया।’ अयोध्या के रौनाही थाने पर पुलिस ने जरूरतमंदों के लिए अस्थायी राहत कैंप चालू कर रखा है, जहां रोज 1,000 से अधिक लोगों को भोजन कराया जा रहा है। लखनऊ, वाराणसी से लेकर गोरखपुर तक कम्युनिटी किचेन की भरमार हो गई है। प्रदेश भर में 1,000 से अधिक कम्युनिटी किचेन से हजारों लोगों की भूख मिटाने की व्यवस्था हो रही है।

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तमाम युवा सोशल मीडिया पर फोन नंबर सार्वजनिक कर मदद को तत्पर दिख रहे हैं। लखनऊ में आठ पार्षदों ने मिलकर छावनी परिषद में भोजन बैंक बनाया है, जहां से 1,000 लोगों तक भोजन का पैकेज पहुंचाया जा रहा है। राजधानी की रोटी बैंक संस्था अस्पतालों से लेकर छत्तीसगढ़ राज्य के फंसे मजदूर तक भोजन का पैकेट पहुंचा रही है। वाराणसी के दुर्गाकुंड स्थित श्रीहनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विश्वविद्यालय में भोजन का पैकेट बनाने के लिए 70 लोग लगातार काम कर रहे हैं। तमाम लोग ऐसे भी हैं जो बिना प्रचार-प्रसार के आर्थिक मदद को आगे आ रहे हैं।

सरकार की तरफ से सिर्फ आश्वासन

हरियाणा में भी ऐसा ही हाल है। दिहाड़ी मजदूर और गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले बेहद कमजोर तबके के लोगों को मदद करने की मनोहरलाल खट्टर सरकार ने घोषणाएं तो खूब कर दीं, लेकिन इसे अमली जामा न पहनते देखकर स्वयंसेवी संस्थाओं को उतरना पड़ा। वे सक्रिय न होते, तो हालात और बिगड़ते। खट्टर ने खुद यकीन दिलाया था कि रोज कमाने-खाने वाले तबके के लिए भोजन और दैनिक जीवन से जुड़ी चीजों की आपूर्ति सुनिश्चित करना उनकी सरकार की जिम्मेदारी होगी।

इसके लिए कोविड रिलीफ फंड की स्थापना की गई और सक्षम लोगों से मदद की अपील की गई। सरकार के प्रवक्ता के मुताबिक, गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों को अप्रैल महीने का राशन फ्री दिया जाएगा। इसमें उन्हें मिलने वाला चावल या गेहूं, सरसों का तेल और एक किलो चीनी शामिल होगा। मुख्यमंत्री परिवार समृद्धि योजना के तहत रजिस्टर्ड परिवारों को तत्काल 4,000 रुपये देने की घोषणा की गई थी। शेष 2,000 रुपये प्रति परिवार 31 मार्च से पहले देने की बात थी।

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अब इसकी हालत देखिये। 12.38 लाख परिवार मुख्यमंत्री परिवार समृद्धि योजना के तहत रजिस्टर्ड हैं, जबकि राज्य में ऐसे कुल परिवारों की संख्या 16 लाख से ज्यादा बताई जाती है। जो जरूरतमंद मुख्यमंत्री परिवार समृद्धि योजना के तहत रजिस्टर्ड न होकर हरियाणा बिल्डिंग और अन्य कन्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड के तहत रजिस्टर्ड हैं, उन्हें सरकार साप्ताहिक आधार पर प्रतिमाह 4,500 रुपये देगी जिसकी गणना 30 मार्च से की जाएगी। यह पैसा इन परिवारों के बैंक अकाउंट में सीधे ट्रांसफर किया जाएगा। यह किसी ने नहीं सोचा कि अकाउंट में पैसे आने तक ये लोग करेंगे क्या।

एक सवाल और है। राज्य में लाखों मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करता है। फक्ट्रियों में मजदूरी से लेकर मंडियों और सड़क किनारे रेहड़ी और फड़ी लगाकर जीवन चलाने वाले तबके का कहीं रजिस्ट्रेशन नहीं है। केवल पंचकुला में पांच हजार से अधिक रेहड़ी वाले बताए जाते हैं जिनका रोजगार लॉकडाउन में तबाह हो चुका है। मतलब साफ है कि इस तबके को सरकारी मदद के नाम पर सिफर मिला है।

जमीनी स्थिति का अंदाजा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा को है और इसीलिए उन्होंने मुख्यमंत्री खट्टर को पत्र लिखकर कहा है कि गांवों, शहरी बस्तियों और छोटे कस्बों तक लोगों को खाने का सामान और मास्क समेत अन्य जरूरी चीजें मार्च के अंत तक भी मुहैया नहीं करवाई गई हैं। इस वजह से लोगों के लिए खाने का संकट पैदा हो गया है। दलित बस्तियों और मोहल्लों में यह सबसे ज्यादा है।

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पंजाब सार्थक कर रहा अपना नाम

किसी भी गाढ़े वक्त में पंजाब और पंजाब के लोग किस तरह एकजुट हो जाते हैं और कहीं किसी को कभी भूखा न सोने देने की पुख्ता व्यवस्था करते हैं, इस कहावत को इस वक्त भी समाज में उतरता देखा जा सकता है। रोज की कमाई से रोटी का जुगाड़ करने वाले लोगों की मदद के लिए पंजाब की बेशुमार समाजसेवी और धार्मिक संस्थाएं तथा एनजीओ ने दिन-रात एक कर रखा है। सूबे के कोने-कोने में खाने और दूध के लंगर जरूरतमंदों तक पहुंचाए जा रहे हैं।

श्री अकाल तख्त साहिब, राधा स्वामी डेरा ब्यास, निरंकारी मिशन, दिव्य जागृति संस्थान नूरमहल, डेरा बल्लां, खालसा एड, दुख निवारण गुरुद्वारा- जैसी बड़ी धार्मिक संस्थाओं के साथ एनजीओ- सहारा और भाई कन्हैया सोसायटी भी इस काम में लगे हैं। होशियारपुर जिले के तमाम हिस्सों में भूखे पेटों तक अनाज पहुंचाने वाली धन गुरु रामदास साहिब लंगर सेवा सोसायटी, पूरहीरां के मुखिया बाबा मनजीत सिंह ने बताया कि उनकी ओर से रोजाना 50 हजार लोगों तक लंगर पहुंचाया जा रहा है।

खालसा एड के प्रमुख रवि सिंह के मुताबिक, उनकी संस्था जालंधर, कपूरथला, नवांशहर, फिल्लौर जिलों के एक लाख से ज्यादा जरूरतमंदों तक खाना-दूध पहुंचा रही है। वह कहते हैं कि ऐसे संकट काल में धार्मिक प्रवचनों की बजाए जरूरतमंदों की खिदमत सबसे बड़ा धर्म है। लुधियाना के भैणी साहिब के सेवादार भी महानगर की मजदूर बस्तियों में लंगर सेवा कर रहे हैं। कई जगह लंगर पुलिस की सहायता से वितरित किया जा रहा है।

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इस तरह के काम में लगी अधिकतर संस्थाओं में खाना अत्याधुनिक मशीनों और पूरी साफ-सफाई से तैयार किया जा रहा है। कई एनजीओ लोगों के घरों तक आवश्यक सामान पहुंचाने के लिए अपनी गाड़ियों द्वारा सेवा कर रहे हैं। सीमावर्ती कस्बे फाजिल्का में यह सेवा ई-रिक्शा के जरिये की जा रही है।

सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह कहते हैं कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं और इस वक्त सबकी चिंता भूखों तक रोटी पहुंचाने की होनी चाहिए। बीजेपी शासित राज्यों से इतर यहां सरकार भी अपने तौर पर जरूरतमंद लोगों तक खाना पहुंचा रही है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुताबिक, प्रतिदिन कम-से-कम 10 लाख खाने के पैकेट बांटे जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त दूध और राशन भी सरकार की ओर से गरीबी रेखा के दायरे में आने वाले लोगों के बीच सप्लाई किया जा रहा है।

असम में लोग आगे, सरकार रह गई पीछे

असम में, एक वाक्य में कहें तो, गरीबों की मदद में लोग आगे-आगे हैं, जबकि कई मामलों में सरकार पीछे है। लोग खुद ही कमजोर लोगों की मदद कर रहे हैं। लॉकडाउन के तीसरे दिन से रोजाना कमाने और सामान खरीदकर खाने वाले परिवारों की स्थिति बिगड़ने लगी। तब सरकार का सारा ध्यान लॉकडाउन लागू करवाने और स्वास्थ्य सुविधाओं को संभालने में लगा हुआ था। वैसे में विभिन्न सामाजिक संगठनों और आमलोगों ने गरीब परिवारों की मदद का जिम्मा उठाया।

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कई जगहों पर जरूरतमंदों के बीच राशन तो कहीं खाने के पैकेट बांटे जा रहे हैं। वैसे, राज्य सरकार ने गरीबों की मदद के लिए निःशुल्क खाद्य सामग्रियां बांटने की घोषणा लॉकडाउन लागू होने के एक दिन पहले ही कर दी थी, लेकिन इसका अमल आंशिक स्तर पर छठे दिन ही आरंभ हो पाया। मार्च बीतने के बाद भी एक बड़ी आबादी तक जरूरत का सामान नहीं पहुंच पा रहा है। ऐसे में, कुछ लोगों और विभिन्न संगठनों की सामाजिक सेवा ही लोगों के काम आ रही है।

शहरी इलाके में झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को विभिन्न संस्थाओं की मदद आराम से मिल रही है लेकिन असली समस्या दूरदराज में फंसे लोगों की है। यहां तक कि जिनके पास खरीदने की क्षमता है, वे भी सामान नहीं खरीद पा रहे हैं। अखिल असम भोजपुर परिषद के अध्यक्ष कैलास कुमार गुप्ता ने बताया कि अरुणाचल से सटे असम के सीमावर्ती इलाके में लोग घर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। जब पता चला कि उनके पास खाने को कुछ नहीं है, तो उनके संगठन की ओर से जरूरतमंदों के बीच राशन बांटे जाने की व्यवस्था की गई।

तिनसुकिया की सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती हीरा देवी ने अपने भाड़ेदारों का भाड़ा तो माफ किया ही, चैती छठ करने वाली गरीब महिलाओं के बीच फलों का वितरण किया ताकि किसी का भी सूप सूना नहीं रहे। वह शिकायत करती हैं कि राशन सूची वितरण में भी राजनीति हो रही है। प्रशासन ने बीजेपी की बूथ समिति को राशन पाने वालो की सूची बनाने को कहा था। वे लोग उन्हीं का नाम सूची में डाल रहे थे जिनके नाम मतदाता सूची में हैं। इस पर उन्होंने विरोध किया। उसके बाद सभी गरीबों के नाम सूची में डाले गए।

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गुवाहाटी में रॉयल ग्रुप ने भी बड़े पैमाने पर राहत अभियान चलाया है। लोग समझ गए हैं कि कोरोना महामारी का मुकाबला मिलकर ही किया जा सकता है, वरना लोग कोरोना से बाद में मरेंगे, इसके पहले भुखमरी से मर जाएंगे।

आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में सरकार भी अतिसक्रिय है और साथ में कई एनजीओ और व्यक्तिगत प्रयासों ने स्थिति सामान्य बना रखी है। बस्तर जिले की ग्राम पंचायतों में सरपंच, उपसरंपच, ग्राम पंचायत सचिवों, रोजगार सहायक और मितानिन के जरिये गांव के जरूरतमंदों और निःशक्तजनों के लिए दाल, चावल, सब्जी आदि का वितरण किया जा रहा है। शहरी क्षेत्रों- रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, भिलाई, रायगढ़ में प्रशासन ने भी भिक्षुओं, बेसहारा, जरूरतमंद, दिहाड़ी मजदूरों, मंदबुद्धि, निराश्रित और रोजी-रोटी के लिए बाहर नहीं जा पा रहे लोगों और परिवारों के लिए भोजन पहुंचाने का बड़ा नेटवर्क तैयार किया है। रायपुर में बनाए गए स्पेशल फूड सेल को विभिन्न संगठन मदद कर रहे हैं। मुख्य सचिव आरपी मंडल ने बताया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप राज्य भर में स्वास्थ्य सेवाओं के अलावा कोरोना संक्रमण से निपटने के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।

(रविशंकर रवि, पूर्णिमा श्रीवास्तव, अमरीक, धीरेन्द्र अवस्थी और यशवंत धोटे के इनपुट के साथ)

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