अतुल्य बागराबोंड उत्तरी कर्नाटक के एक किसानस के बेटे हैं। इस साल फरवरी तक उन्होंने मैंगलोर में एक बीपीओ ऑपरेशंस सेंटर में काम किया जहां वह महीने में 24,000 रुपये कमा लेते थे। लॉकडाउन में नौकरी जाती रही। अतुल्य पिछले तीन महीने से दोबारा किसी बीपीओ में नौकरी पाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। हताश आवाज में वह कहते हैं, “कहीं कोई नौकरी नहीं। एक ऑफर मिला भी तो वह बेंगलुरू के लिए था और वे 18,000 रुपये देने की बात कर रहे थे। इतने से आप बेंगलुरू में तो नहीं रह सकते। मेरे कई पूर्व सहयोगियों को नौकरी से निकाल दिया गया, कई के वेतन में 30-30 प्रतिशत की कटौती कर दी गई है।”
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अतुल्य की दिक्कत यह है कि उन्होंने साइड बिजनेस करने की कोशिश पहले ही की थी, पर वह सफल नहीं हो पाए। अतुल्य को कुत्तों से बड़ा प्रेम है और उन्होंने हमेशा से एक केनेल (कुत्ताघर) और कुत्ते का प्रजनन केंद्र खोलने का सपना देखा था। पिछले दो वर्षों के दौरान उन्होंने धीरे-धीरे करके इसके लिए लगभग एक लाख रुपये जमा भी कर लिए थे। उन्होंने फरवरी में आठ पिल्ले लिए और मार्च में लॉकडाउन की घोषणा होने तक वह दो पिल्लों को बेच भी चुके थे। वह कहते हैं, “बता नहीं सकता कि यह सब कैसा रहा। मैंने अपनी सारी बचत पिल्लों पर तो खर्चकर ही दी, पिता से भी कुछ पैसे मांगने पड़े। 1 जून के बाद, मैंने एक पूर्व सहकर्मी से कहा कि वह हमें हमारे गांव तक छोड़ दे। तब से यहीं गांव में हूं। गांव आने से पहले मेरे दो पूर्व सहयोगियों ने मुझसे एक-एक कुत्ता खरीदा था। अब मैं चार कुत्तों के साथ अपने माता-पिता के घर ही रह रहा हूं।”
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लेकिन यह सिर्फ अतुल्य का किस्सा नहीं है। इन दिनों आप लोगों से मिलें, तो लोग घुमा-फिराकर यही सब सुनाने लगते हैं। दरअसल, आम तौर पर कम उम्र के लोग कम स्किल, कम वेतन वाली नौकरियों पर कब्जा कर लेते हैं। कंपनियां इन्हें प्रशिक्षण देने पर बहुत कम खर्च करती हैं और जब मुश्किल समय आता है तो इन्हें हटा देना उनके लिए अपेक्षाकृत आसान होता है। जॉब्स पोर्टल नौकरी डॉट कॉम के अनुसार, पिछले साल मई की तुलना में इस साल मई में पूरे देश में भर्ती आधी रह गई। होटल, रेस्तरां, यात्रा-पर्यटन और एयरलाइंस उद्योगों में तो भर्तियों में 91 फीसदी की गिरावट आई। अटलांटिक काउंसिल थिंक टैंक की रिपोर्ट के अनुसार, खुदरा, आतिथ्य और पर्यटन-जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों पर खास तौर पर इस महामारी के समय बहुत बुरा असर पड़ा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन(आईएलओ) ने मई में चेतावनी दी थी कि महामारी कई युवाओं को पीछे धकेल सकती है और उन्हें स्थायी रूप से नौकरी बाजार से बाहर कर सकती है। साथ ही आगाह किया था कि वायरस की विरासत अब हमारे साथ दशकों तक रहने वाली है।
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आईएलओ का अनुमान है कि महामारी के बाद से दुनिया भर में हर छह में से एक व्यक्ति ने अपनी नौकरी खो दी है। भारत में हम इस बात को अपनी ताकत बताते हैं जिसमें काम करने वाले युवाओं की आबादी काफी अधिक है लेकिन महामारी के इस काल का दुष्प्रभाव भी इसी तबके पर सबसे ज्यादा पड़ा है। सीएमआईई की रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल में 20-30 साल के बीच के 2.7 करोड़ लोगों की नौकरी चली गई। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 15 से 29 साल के 41 फीसदी लोगों के पास इस साल मई में काम नहीं था जबकि 2018-19 में इसी आयु वर्ग के केवल 17.3 प्रतिशत लोग काम से बाहर थे।
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भारत में आईटी कंपनियों में भी जोर-शोर से छंटनी हो रही है, हालांकि यह मोटे तौर पर खराब प्रदर्शन से जुड़ी हुई है। कुछ को इसलिए हटा दिया गया कि कंपनी के पास प्रोजेक्ट नहीं रहा। पुणे में आईटी और आईटीईएस मैन पावर फर्म चलाने वाले प्रभात द्विवेदी ने कहा, “खास तौर पर आईबीएम और कॉग्निजेंट में जो छंटनी का दौर चला है, उसका कारण अनिश्चित कारोबारी माहौल में काम करने वालों की संख्या को न्यूनतम कर देना है।” टाटा समूह के एक सूत्र ने कहा कि उनके यहां भी ऑटोमोबाइल, विमानन, एयरोस्पेस और खुदरा डिवीजनों में काम करने वालों की संख्या को कम करने की योजना तैयार की जा रही है।
मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 30 अप्रैल को ही तेल और गैस डिवीजन के शीर्ष कर्मचारियों के वेतन में 50 प्रतिशत तक की कटौती की घोषणा कर दी। प्रति वर्ष 15 लाख रुपये से अधिक कमाने वाले कर्मचारियों को 10 फीसदी कटौती का सामना करना पड़ा जबकि वरिष्ठ अधिकारियों के वेतन में 30 से 50 प्रतिशत तक कटौती की गई। भारत में छंटनी करने वाली अन्य प्रमुख कंपनियां हैंः कैब चलाने वाली ओला और उबेर, फूड डिलीवरी क्षेत्र की अग्रणी कंपनियां- स्विगी और जोमाटो और अंतरराष्ट्रीय कार्य क्षेत्र शेयरिंग फर्म- वेवकोर इत्यादि।
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भारतीय मीडिया में भी बड़ी संख्या में लोगों को निकालने, वेतन में कटौती-जैसे कदम उठाए गए। कोविड-19 के प्रभाव पर द इकोनॉमिक टाइम्स द्वारा कराए गए ऑनलाइन सर्वेक्षण के अनुसार, 3,074 लोगों में से 39 प्रतिशत ने कहा कि उनके वेतन में कटौती हो गई है जबकि 15 फीसदी ने बताया कि उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया है। छंटनी और वेतन कटौती का दौर ऐसी अर्थव्यवस्था में चल रहा है जो पहले से ही मंदी की मार झेल रही थी, इसलिए जाहिर है इसका असर तो और बुरा होने जा रहा है। अब मांग में और कमी आएगी क्योंकि प्रभावित होने वाले घर न्यूनतम जरूरी सामान ही खरीद रहे हैं।
सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि भारत सरकार भी स्थिति को बेहतर बनाने में मदद नहीं कर रही है। एयर इंडिया में कर्मचारियों के वेतन में कटौती की घोषणा हुई। इसके बाद, भारत में सबसे अधिक नौकरियां देने वाले भारतीय रेलवे ने अब देश भर में कोई भी नई भर्ती नहीं करने का फैसला किया है। पिछले नवंबर में रेल मंत्री पीयूषगोयल ने घोषणा की थी कि रेलवे ने लगभग 2.93 लाख पदों को भरने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है। लेकिन लॉकडाउन के बाद खर्चे को कम करने की रणनीति के तहत रेलवे बोर्ड ने अब जोनल रेलवे और उत्पादन इकाइयों को अगले आदेश तक सुरक्षा श्रेणी को छोड़कर नए पद सृजित करने से मना कर दिया है। इतना ही नहीं, जोनल रेलवे को यह भी कहा गया है कि वे पिछले दो वर्षों के दौरान सृजित पदों की भी समीक्षा करें और अगर किन्हीं पदों पर अभी नियुक्ति नहीं हुई है तो उसे रोक दें। इसके अलावा, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल और सिग्नल और दूरसंचार विभागों सहित गैर-सुरक्षा श्रेणियों में मौजूदा रिक्तियों को भी 50 प्रतिशत कम करने को कहा गया है। रेलवे कर्मचारी संघ के एक पदाधिकारी ने कहा, “कई महत्वपूर्णपद जो पिछले कुछ महीनों में सेवानिवृत्त कर्मचारियों से भरे गए थे, वे लॉकडाउन के दौरान पदों से मुक्त हो जाने के बाद खाली हो गए हैं। रेलवे को जल्द-से-जल्द रिक्तियों को भरने की कोशिश करनी चाहिए।”
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केंद्र सरकार के कर्मचारी संघ से जुड़े हुए भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हमें पता है कि शीर्ष स्तर पर हुई बैठक के बाद केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वेतन में फिलहाल 35 प्रतिशत की कमी करने का प्रस्ताव है। सरकार का कहना है कि उसके पास अभी पैसे नहीं हैं और जब भी सरकार के राजस्व की स्थिति सुधरेगी, कर्मचारियों का कटा हुआ वेतन एरियर के तौर पर उन्हें वापस दे दिया जाएगा। हम सेल, गेल, एलआईसी, ऑयल इंडिया लिमिटेड, ओएनजीसी, एनटीपीसी और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों के लोगों के साथ बातचीत कर रहे हैं कि अगर सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी तो हम कैसे-क्या करेंगे”।
ऐसे समय सरकार को रोजगार सृजन योजनाओं में सरकारी खर्च में अच्छी-खासी वृद्धि करनी चाहिए, सरकारी पदों को भरना चाहिए और मांग को बढ़ाने के लिए मनरेगा के आवंटन में भी भारी वृद्धि करनी चाहिए। यही एकमात्र उपाय है। लेकिन लगता है कि नरेंद्र मोदी सरकार मौजूदा संकट से निकलने के लिए हरसंभव गलत उपाय ही कर रही है। ऐसे समयमें वह क्रेडिट रेटिंग के बारे में ज्यादा परेशान दिखती है जब उसका फोकस अर्थव्यवस्था में पैसे के प्रवाह और आर्थिक गतिविधियों को वापस पटरी पर लाने पर होना चाहिए था। इसका खामियाजा देश की श्रम शक्ति को उठाना पड़ रहा है और हर बीतते दिन के साथ स्थिति और खराब होती जा रही है।
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यह बात बिल्कुल साफ नजर आ रही है कि बढ़ती बेरोजगारी और आर्थिक मंदी से निपटने का कोई रोडमैप सरकार के पास नहीं है। वह अंधेरे में तलवार चलाकर सबका नुकसान करने पर आमादा है
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