अडानी समूह- हवाईअड्डों से लेकर टेलीविजन स्टेशनों तक, हर चीज में दखल रखने वाला विशालकाय समूह। समूह इसी साल शेयरों में हेराफेरी के आरोपों में फंसा था और यह कथित रूप से आधुनिक भारत के इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक घोटालों में से एक था। अब समूह एक बार फिर विवादों में है। इस बार यह जानकारी मिल रही है कि निवेश वास्तव में कहां से आया और कमाई का पैसा कहां गया।
इसी साल जनवरी में न्यूयॉर्क स्थित एक शॉर्ट सेलर द्वारा लगाए गए आरोपों के कारण अडानी के स्टॉक में भारी गिरावट आई। समूह के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए और आखिरकार भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इस पर जांच बैठा दी। लेकिन अदालत द्वारा बनाई गई विशेषज्ञ समिति घोटाले की तह तक पहुंचने में असमर्थ रही। इस प्रकरण के गंभीर राजनीतिक निहितार्थ हैं क्योंकि माना जाता है कि समूह के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से करीबी रिश्ते हैं और देश के विकास की उनकी योजना में इस समूह की केंद्रीय भूमिका है।
आरोपों का निचोड़ यह था कि अडानी समूह के कुछ बड़े ‘पब्लिक’ निवेशक दरअसल, अडानी समूह के ही इनसाइडर थे, जो भारतीय प्रतिभूति कानूनों का उल्लंघन था। लेकिन अडानी के इस कथित गड़बड़झाले की जांच करने वाली समिति ने जिन भी एजेंसियों से संपर्क किया, वे उन निवेशकों की पहचान नहीं कर सकीं क्योंकि ये निवेशक गुप्त अपतटीय शेल कंपनियों के पीछे छिपे थे।
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अब, ओसीसीआरपी द्वारा प्राप्त और द गार्जियन और फाइनेंशियल टाइम्स के साथ साझा किए गए दस्तावेज- जिसमें कई टैक्स हेवन्स, बैंक रिकॉर्ड और अडानी समूह के आंतरिक ई-मेल की फाइलें शामिल हैं- उसी मामले पर प्रकाश डालते हैं। अडानी समूह के कारोबार की सीधी जानकारी रखने वाले लोगों ने इन दस्तावेजों की पुष्टि की है और इसके साथ ही कई देशों में समूह से जुड़े सार्वजनिक रिकॉर्ड बताते हैं कि कैसे मॉरीशस के अपारदर्शी निवेश फंडों ने अडानी समूह के शेयरों में करोड़ों डॉलर का निवेश किया।
कम से कम दो मामले ऐसे हैं जब अडानी समूह के रहस्यमय निवेशक समूह के बहुसंख्यक शेयरधारकों, अडानी परिवार के करीबी पाए गए। ये हैं नासिर अली शाबान अहली और चांग चुंग लिंग। इन दोनों के अडानी परिवार के साथ लंबे समय से व्यापारिक रिश्ते हैं और उन्होंने अडानी समूह की कंपनियों और परिवार के वरिष्ठ सदस्यों में से एक विनोद अडानी से जुड़ी कंपनियों में निदेशक के तौर पर भी काम किया है।
दस्तावेजों से पता चलता है कि मॉरीशस फंड के माध्यम से इन लोगों ने सालों तक अडानी के शेयर खरीद-बेचकर मोटी कमाई की। दस्तावेज से यह भी पता चलता है कि उनके निवेश का प्रबंधन करने वाली कंपनी ने विनोद अडानी की कंपनी को उन्हें निवेश संबंधी सलाह देने के लिए भुगतान भी किया था।
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यह व्यवस्था कानून का उल्लंघन है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या अहली और चांग को अडानी के ‘प्रमोटरों’ की ओर से काम करने वाला माना जाना चाहिए? ‘प्रमोटर’ शब्द का इस्तेमाल किसी व्यवसाय होल्डिंग के बहुसंख्यक मालिकों या उनसे जुड़ी पार्टियों को संबोधित करने के लिए किया जाता है। इस हिसाब से अडानी समूह में इनसाइडर की कुल हिस्सेदारी कानून द्वारा अनुमत 75 फीसद से ज्यादा हो जाती है।
भारतीय बाजार विशेषज्ञ अरुण अग्रवाल कहते हैं, ‘जब कंपनी खुद अपने शेयर खरीदकर अपनी हिस्सेदारी 75 फीसद से ज्यादा कर लेती है तो यह न केवल अवैध है, बल्कि शेयर की कीमत में हेराफेरी है। इस तरह कंपनी कृत्रिम कमी पैदा करके अपने शेयर मूल्य को बढ़ाती है और उसका अपना बाजार पूंजीकरण भी बढ़ जाता है।’ अरुण कहते हैं, ‘इस तरह वे अपनी छवि एक ऐसे उद्यम की बना लेते हैं जो बहुत अच्छा काम कर रहा है। इससे उन्हें ऋण प्राप्त करने, कंपनियों के मूल्यांकन को नई ऊंचाई पर ले जाने और फिर नई कंपनियां बनाने में मदद मिलती है।’
जब इस खुलासे के बारे में अडानी समूह की प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई तो अडानी समूह के एक प्रतिनिधि ने कहा कि वे लोग मॉरीशस के जिन फंडों के बारे में जानकारी चाह रहे हैं, उनके बारे में ‘हिंडनबर्ग रिपोर्ट’ में पहले से ही जिक्र है। (रिपोर्ट में इन ऑफशोर कंपनियों के नाम तो बताए गए हैं, लेकिन यह खुलासा नहीं किया गया है कि अडानी के शेयरों में निवेश करने के लिए उनका उपयोग कौन कर रहा था।) अडानी के प्रतिनिधि ने सुप्रीम कोर्ट की विशेषज्ञ समिति का भी हवाला दिया, जिसने वित्तीय नियामक को मामले की तह में जाने को कहा, जो किसी भी तरह कोई सबूत नहीं है।
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अडानी के प्रतिनिधि ने लिखा, ‘इन तथ्यों के मद्देनजर ये आरोप न केवल निराधार हैं, बल्कि इनमें हिंडनबर्ग के आरोप ही दोहराए गए हैं। यह बिल्कुल साफ है कि अडानी समूह की सभी सार्वजनिक सूचीबद्ध संस्थाएं सार्वजनिक शेयर होल्डिंग से संबंधित सभी कानूनों का पालन करती हैं।’ ओसीसीआरपी ने अहली और चांग से भी उनका पक्ष जानने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया।
गार्डियन के रिपोर्टर के साथ साक्षात्कार में, चांग ने कहा कि उन्हें अडानी स्टॉक की किसी भी गुप्त खरीद के बारे में कोई जानकारी नहीं है। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि उन्होंने अडानी के शेयरों में कोई खरीदारी की या नहीं, लेकिन यह जरूर पूछा कि उन्हें उनके अन्य निवेशों में दिलचस्पी क्यों नहीं है। साक्षात्कार समाप्त होने से पहले उन्होंने कहा, ‘हमारा बड़ा सीधा कामकाज है।
विनोद अडानी से भी उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने भी कोई जवाब नहीं दिया। हालांकि अडानी समूह ने इस बात से इनकार किया है कि समूह को चलाने में उनकी कोई भूमिका है, लेकिन इसी साल मार्च में उन्होंने स्वीकार किया था कि वह अडानी समूह के ‘प्रवर्तक समूह’ का हिस्सा थे- जिसका मतलब है कि कंपनी के मामलों पर उनका नियंत्रण था और उन्हें अडानी समूह के शेयरों में होल्डिंग के बारे में सूचित किया जाता था।
वहीं, अडानी समूह के एक प्रतिनिधि ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि विनोद अडानी के शामिल होने का ‘विधिवत खुलासा’ किया गया है… वह एक ‘विदेशी नागरिक हैं जो पिछले तीन दशकों से विदेश में रह रहे हैं और अडानी की किसी भी सूचीबद्ध कंपनी अथवा उसकी सहायक कंपनियों में किसी भी प्रबंधकीय पद पर नहीं हैं।’
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अडानी समूह की वृद्धि आश्चर्यजनक रही है। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से एक साल पहले सितंबर 2013 में समूह का बाजार पूंजीकरण आठ अरब डॉलर था जो पिछले साल बढ़कर 260 अरब डॉलर हो गया। यह समूह परिवहन और लॉजिस्टिक्स, प्राकृतिक गैस वितरण, कोयला व्यापार और उत्पादन, बिजली उत्पादन और पारेषण, सड़क निर्माण, डेटा केंद्र और रियल एस्टेट सहित कई क्षेत्रों में सक्रिय है।
इसने सरकार के तमाम बड़े-बड़े ठेके पाए जिनमें भारत के कई हवाई अड्डों के संचालन या पुनर्विकास का 50 साल का अनुबंध भी शामिल है। हाल ही में, इसने देश के गिने-चुने स्वतंत्र टेलीविजन चैनलों में से एक में नियंत्रण हिस्सेदारी भी ले ली।
लेकिन अडानी का उदय बिना विवाद के नहीं रहा। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि कंपनी को सरकारी ठेके दिलाने में उसके प्रति सत्तापक्ष ने दरियादिली दिखाई। विश्लेषकों का कहना है कि इसके अध्यक्ष गौतम अडानी को भी मोदी के साथ ‘मधुर संबंधों’ का लाभ मिल रहा है। हालांकि अडानी ने इस बात से इनकार किया है कि उनके व्यापारिक साम्राज्य की सफलता के लिए मोदी या उनकी नीतियां जिम्मेदार हैं।
समूह को जनवरी के अंत में एक बड़ा झटका लगा जब न्यूयॉर्क स्थित शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह के बारे में विस्फोटक रिपोर्ट जारी की, जिसमें दावा किया गया कि समूह ने दशकों तक ‘शेयरों में हेराफेरी’ और ‘अकाउंटिंग धोखाधड़ी’ की। रिपोर्ट में दावा किया गया कि मुख्य मुद्दा यह है कि कंपनी ने भारतीय प्रतिभूति कानून का उल्लंघन किया, जो कहता है कि किसी भी सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली सूचीबद्ध कंपनी के लिए अपने 25 फीसद शेयर जनता को खरीद के लिए उपलब्ध कराना जरूरी है।
रिपोर्ट आने के बाद समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आई। गौतम अडानी को कुछ ही दिनों में 60 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ और वह दुनिया के तीसरे सबसे अमीर आदमी की ऊंचाई से गिरकर 24वें स्थान पर आ गए। जवाब में, अडानी समूह ने खंडन जारी किया। समूह ने हितधारकों को एक नोट के जरिये संबोधित किया: ‘यह केवल एक खास कंपनी पर अनुचित हमला नहीं, बल्कि भारत, उसकी संस्थाओं की स्वतंत्रता, अखंडता और गुणवत्ता, और भारत की विकास कहानी और उसकी महत्वाकांक्षा पर एक सोचा-समझा हमला है।’
ऐसा महसूस होता है कि बड़ी तादाद में निवेशकों ने अडानी समूह के इस बयान पर यकीन कर लिया और इसका नतीजा है कि अडानी समूह की प्रमुख कंपनियों के शेयरों ने अपने घाटे की काफी भरपाई कर ली है।
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इस बीच, हिंडनबर्ग रिपोर्ट के जवाब में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आरोपों की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की। इस मई में प्रकाशित समिति के नतीजों से पता चलता है कि अडानी समूह की भारतीय वित्तीय नियामक सेबी पहले ही जांच कर चुकी है। समिति के अनुसार, सेबी को वर्षों से संदेह था कि ‘(अडानी समूह के) कुछ सार्वजनिक शेयरधारक वास्तव में सार्वजनिक शेयरधारक नहीं हैं और वे प्रमोटरों के मुखौटे हो सकते हैं।’ 2020 में, इसने अडानी स्टॉक रखने वाली 13 विदेशी संस्थाओं की जांच शुरू की।
लेकिन विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी क्योंकि सेबी के जांचकर्ता निर्णायक रूप से यह निर्धारित नहीं कर सके कि निवेश के पीछे कौन है। लिहाजा, समिति ने नतीजा निकाला कि मामले में और जांच करने का प्रयास ‘बिना गंतव्य की यात्रा’ जैसा होगा क्योंकि स्टॉक के अंतिम मालिकों को छिपाने के लिए संभवत: अपारदर्शी कॉर्पोरेट स्वामित्व की कई परतों का उपयोग किया गया था। हालांकि, पत्रकारों द्वारा प्राप्त दस्तावेज 13 अपतटीय संस्थाओं में से दो के मामलों में ‘गंतव्य’ का खुलासा करते हैं जिनमें मॉरीशस-आधारित दो निवेश फंडों से पैसा आया।
बाहर से देखने पर ये फंड- ‘इमर्जिंग इंडिया फोकस फंड’ (ईआईएफएफ) और ‘ईएम रिसर्जेंट फंड’ (ईएमआरएफ)- ऑफशोर निवेश वाहन प्रतीत होते हैं, जो कई धनी निवेशकों की ओर से संचालित होते हैं। प्राप्त दस्तावेजों से पता चलता है कि पैसे का एक बड़ा हिस्सा दो विदेशी निवेशकों - ताइवान के चांग और संयुक्त अरब अमीरात के अहली- द्वारा इन फंडों में लगाया गया था। इन दोनों ने 2013 और 2018 के बीच अडानी की चार कंपनियों के शेयरों में बड़े पैमाने पर कारोबार करने के लिए इन फंडों का इस्तेमाल किया। मार्च 2017 में एक समय ऐसा भी था जब अडानी समूह के स्टॉक में 43 करोड़ डॉलर का निवेश था। निवेश की पूंछ पकड़कर इसके सिर तक पहुंचना बड़ा मुश्किल काम रहा क्योंकि इसे चार कंपनियों और बरमूडा स्थित निवेश फंड- ग्लोबल अपॉर्चुनिटीज फंड (जीओएफ)- के जरिये रूट किया गया।
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निवेश में इस्तेमाल की गई चार कंपनियां थीं- चांग के स्वामित्व वाली लिंगो इन्वेस्टमेंट लिमिटेड; अहली के स्वामित्व वाली गल्फ एरिज ट्रेडिंग एफजेडई (यूएई); मिड ईस्ट ओशन ट्रेड (मॉरीशस) जिसका लाभकारी स्वामी अहली था; और गल्फ एशिया ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट लिमिटेड जिसका ‘नियंत्रक’ अहली था। पत्रकारों द्वारा प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, इन निवेशों से पिछले कुछ वर्षों के दौरान सैकड़ों करोड़ की कमाई की गई क्योंकि ईआईएफएफ और ईएमआरएफ ने बार-बार अडानी स्टॉक को कम कीमत पर खरीदा और ज्यादा कीमत पर बेचा।
जून 2016 में अपने निवेश के चरम पर, दोनों फंडों के पास अडानी समूह की चार कंपनियों- अडानी पावर, अडानी एंटरप्राइजेज, अडानी पोर्ट्स और अडानी ट्रांसमिशन- के फ्री-फ्लोटिंग शेयर 8 से लेकर लगभग 14 प्रतिशत तक थे। चांग और अहली के अडानी परिवार से रिश्तों की बात पिछले कुछ वर्षों के दौरान सामने आई। अडानी समूह द्वारा कथित अनियमितताओं की दो अलग-अलग सरकारी जांचों में इन लोगों के अडानी परिवार से जुड़े होने की बात सामने आई थी। वैसे, दोनों ही मामले आखिरकार रद्द कर दिए गए।
पहले मामले में 2007 में वित्त मंत्रालय के तहत भारत की प्रमुख जांच एजेंसी, राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) द्वारा कथित रूप से अवैध हीरा व्यापार योजना की जांच शामिल थी। डीआरआई की एक रिपोर्ट में चांग का योजना में शामिल अडानी समूह की तीन कंपनियों के निदेशक के रूप में जिक्र किया गया था, जबकि अहली ने एक ट्रेडिंग फर्म का प्रतिनिधित्व किया था जो इसमें शामिल थी। यह पता चला कि चांग ने अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी के लो-प्रोफाइल बड़े भाई विनोद अडानी के साथ सिंगापुर का आवास साझा किया था।
दूसरा मामला एक कथित ओवर-इनवॉइसिंग घोटाला था जो 2014 की एक अन्य डीआरआई जांच में सामने आया था। एजेंसी ने दावा किया कि अडानी समूह की कंपनियां आयातित बिजली उत्पादन उपकरणों के लिए अपनी ही विदेशी सहायक कंपनी को 1 बिलियन डॉलर से अधिक का भुगतान करके अवैध रूप से भारत से बाहर पैसा भेज रही थीं।
यहां भी, चांग और अहली के नाम सामने आए। अलग-अलग समय में, ये दोनों उन दो कंपनियों के निदेशक रहे जिनका स्वामित्व बाद में विनोद अडानी के हाथ में रहा। एक कंपनी संयुक्त अरब अमीरात में थी और एक मॉरीशस में और इन दोनों ने योजना से आए पैसे का प्रबंधन किया था। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के अनुसार, चांग या तो सिंगापुर की उस कंपनी में निदेशक या शेयरधारक थे, जिसे अडानी कंपनी के खुलासे में ‘संबंधित पार्टी’ के रूप में दिखाया गया था।
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अडानी के साथ इन पिछले रिश्तों के अलावा इस बात के सबूत हैं कि अडानी स्टॉक में चांग और अहली का व्यापार परिवार के साथ तालमेल बैठाकर किया जाता था। अडानी समूह के व्यवसाय से परिचित एक सूत्र- जिनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उनके नाम का खुलासा नहीं किया जा सकता- के मुताबिक ईआईएफएफ और ईएमआरएफ में चांग और अहली के निवेश के प्रभारी फंड मैनेजरों को अडानी कंपनी से निवेश के बारे में सीधे निर्देश प्राप्त हुए।
सूत्र ने जिस कंपनी का नाम लिया, वह है एक्सेल इन्वेस्टमेंट एंड एडवाइजरी सर्विसेज लिमिटेड जो संयुक्त अरब अमीरात के एक गुप्त अपतटीय क्षेत्र में स्थित है जहां के कॉर्पोरेट रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि, पत्रकारों द्वारा प्राप्त दस्तावेज स्रोत के खाते की पुष्टि करते हैं: ईआईएफएफ और ईएमआरएफ को सलाहकार सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए एक्सेल के एक समझौते पर 2011 में खुद विनोद अडानी ने हस्ताक्षर किए थे।
वर्ष 2015 तक, एक्सेल का स्वामित्व एसेंट ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी के पास था, जिसके बारे में 2016 के एक ई-मेल में कहा गया था कि अंततः इसका स्वामित्व विनोद अडानी और उनकी पत्नी के पास था। हालांकि मॉरीशस, जहां एसेंट पंजीकृत है, के वर्तमान कॉर्पोरेट रिकॉर्ड यह नहीं दिखाते हैं कि कंपनी का मालिक कौन है, लेकिन वे बताते हैं कि विनोद अडानी इसके निदेशक मंडल में हैं।
चालान और लेनदेन रिकॉर्ड से पता चलता है कि ईआईएफएफ, ईएमआरएफ और बरमूडा स्थित जीओएफ की प्रबंधन कंपनियों ने जून 2012 और अगस्त 2014 के बीच एक्सेल को ‘सलाहकार’ शुल्क के रूप में 14 लाख डॉलर से अधिक का भुगतान किया।
एक आंतरिक ई-मेल से पता चलता है कि, आगामी ऑडिट के संबंध में, फंड मैनेजर चिंतित थे कि एक्सेल की निवेश सलाह को लेकर उनके पास पर्याप्त कागज नहीं हैं। एक ई-मेल में, एक प्रबंधक कई कर्मचारियों को ऐसे रिकॉर्ड तैयार करने का निर्देश देता है जो निवेश के पीछे के तर्क को उचित ठहरा सकें। दूसरे में, एक प्रबंधक एक्सेल से एक रिपोर्ट प्राप्त करने का अनुरोध करता है जिसमें ‘फंड ने (वास्तव में) निवेश की गई प्रतिभूतियों की संख्या से अधिक में निवेश करने की सिफारिश की है ताकि यह दिखाया जा सके कि (निवेश प्रबंधक) ने निवेश का चयन करने के लिए अपने विवेक का उपयोग किया।’
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इस बात का कोई सबूत नहीं है कि अडानी समूह के निवेश के लिए चांग और अहली का पैसा अडानी परिवार से आया था। धन का स्रोत अज्ञात है। लेकिन ओसीसीआरपी द्वारा प्राप्त दस्तावेजों से पता चलता है कि विनोद अडानी ने अपने निवेश के लिए मॉरीशस के उसी फंड में से एक का इस्तेमाल किया।
रिपोर्टर्स को 2014 का डीआरआई से सेबी को भेजा एक पत्र मिला, जिसमें डीआरआई ने कहा कि उसके पास इस बात के सबूत हैं कि जिस कथित ओवर-इनवॉइसिंग योजना की वह जांच कर रहा था, उसका पैसा मॉरीशस भेजा गया था। पत्र में उस समय डीआरआई के महानिदेशक नजीब शाह ने लिखा था, ‘ऐसे संकेत हैं कि निकाले गए पैसे का एक हिस्सा अडानी समूह में निवेश और विनिवेश के रूप में भारत के शेयर बाजारों में पहुंच गया।’
डीआरआई मामले के अनुसार, कथित योजना का पैसा इलेक्ट्रोजेन इंफ्रा एफजेडई नामक अमीरात की कंपनी को भेजा गया था। इसके बाद इस कंपनी ने लगभग 1 बिलियन डॉलर की आय को मॉरीशस स्थित एक होल्डिंग कंपनी को भेज दिया, जिसका नाम अमीरात की कंपनी जैसा ही था- इलेक्ट्रोजेन इंफ्रा होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड और जिसका स्वामित्व विनोद अडानी के पास था। रिपोर्टर इन फंडों के 10 करोड़ डॉलर से अधिक के आगे के प्रवाह का पता लगाने में कामयाब हो सके। मॉरीशस की कंपनी ने विनोद अडानी की एक अन्य कंपनी, एसेंट ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड को ‘एशियाई इक्विटी बाजार में निवेश करने के लिए’ पैसा उधार दिया था।
इलेक्ट्रोजेन इंफ्रा होल्डिंग और एसेंट दोनों के लाभकारी मालिक के रूप में विनोद अडानी ने ऋणदाता और उधारदाता, दोनों के रूप में ऋण दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। अंत में, पैसा जीओएफ में डाल दिया गया, वही मध्यस्थ जो चांग और अहली द्वारा उपयोग किया गया था, और फिर ईआईएफएफ और एशिया विजन फंड, एक अन्य मॉरीशस-आधारित निवेश वाहन, दोनों में निवेश किया गया। सेबी ने 2014 में उसे मिले पत्र के बारे में टिप्पणी के लिए संवाददाताओं के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया।
इस साल हिंडनबर्ग आरोपों के मद्देनजर, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी विशेषज्ञ समिति नियुक्त करने के अलावा सेबी को जांच करने का निर्देश दिया। इसकी रिपोर्ट अगले महीने आने वाली है।
(आनंद मंगनाले, रवि नायर और एनबीआर अर्काडियो की रिपोर्ट ओसीसीआरपी रिपोर्ट से साभार)
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