उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा सीट उपचुनाव का प्रचार खत्म होने के बाद अब सिर्फ अटकलें शेष रह गयी हैं कि यह चुनाव किस करवट बैठता है। दरअसल उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल के इस पिछड़े इलाके का यह चुनाव इस बार सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के लिए प्रतिष्ठा और भविष्य के संकेत की लड़ाई बन गया है। हालांकि किसी एक विधानसभा सीट का उपचुनाव राजनीति की दशा-दिशा किस तरह प्रभावित कर सकता है, यह बहस का मुद्दा हो सकता है।
घोसी में रविवार शाम प्रचार खत्म हो गया और पांच सितंबर यानी मंगलवार को मतदान होना है। नतीजे आठ सितंबर को आएंगे। समाजवादी पार्टी ने क्षेत्र में अल्पसंख्यक मतदाताओं को धमकाए जाने और दलितों के बीच खुलकर रुपए बांटे जाने का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग से इसमें हस्तक्षेप करने की मांग की है। सपा के साथ पूरा ‘इंडिया’ आ जाने से वहां मज़बूती भले दिख रही हो, कांटे की लड़ाई में यह चुनाव क्या गुल खिलाने जा रहा, कहना आसान नहीं है।
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घोसी उपचुनाव इसलिए भी चर्चा में हैं क्योंकि इस सीट पर बीते छह वर्ष में चौथी बार चुनाव होने जा रहा है। 2017 से 2022 के बीच तीन बार के चुनावों में यहां बीजेपी को दो बार जीत मिली। मतदान से पहले अब तक खामोश रही बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर अपने ही ढंग का दांव खेलकर बड़े सियासी उलटफेर के संकेत दिए है। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को सीधा संदेश दिया है कि बासपाई मतदान के दौरान घर बैठेंगे, और अगर बूथ तक गए तो नोटा का बटन दबायेंगे। जाहिर सी बात है, नतीजे जो भी रहें अंतिम क्षण आए इस संदेश के अपने अर्थ निकाले जाने हैं और इसने मुक़ाबले को एक रोचक मोड़ तो दे ही दिया है। नब्बे हज़ार से ज़्यादा अनुसूचित जाति वाले इस चुनाव क्षेत्र में यह संदेश कुछ तो उलटफेर कर ही देगा।
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यह उपचुनाव सियासी नजरिए से इसलिए भी बेहद अहम है कि- एक तो बीएसपी और सपा को कभी मज़बूती देने वाले दारा सिंह चौहान पिछले दिनों फिर से बीजेपी के साथ चले गए और यहां से ताल ठोक रहे हैं। दूसरा यह कि लोकसभा चुनाव-2024 से पहले हो रहे यूपी के इस चुनाव को एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन की लड़ाई और उससे निकलने वाले बड़े सियासी संकेत के रूप में भी देखा जा रहा है।
कहने की जरूरत नहीं कि विपक्ष यानी इंडिया गठबंधन यहां पहली बार एक धागे में बंधा दिखा है और वह दारा सिंह चौहान के रूप में बीजेपी को हराकर भविष्य के राजनीतिक संकेत के साथ अपनी एकजुटता भी ज़ाहिर करना ही चाहेगा। सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह को कांग्रेस और आरएलडी का समर्थन मिलने से लड़ाई आमने-सामने की हो गई है। दोनों गठबंधन अच्छी तरह जानते हैं कि यह जीत बड़ा मनोवैज्ञानिक लाभ देने वाली साबित होगी। बीएसपी ने यहां अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है।
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यहां सीधा मुकाबला बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच तो है ही इंडिया गठबंधन और एनडीए गठबंधन के बीच भी है। चुनाव को लेकर दोनों गठबंधन कितने गंभीर हैं इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि न केवल दोनों दल के प्रमुख प्रचार में जुटे हैं बल्कि इनके साथ गठबंधन में शामिल दल भी पुरजोर ताकत झोंक रही है।
बीजेपी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान के पक्ष में कैबिनेट मंत्री एके शर्मा, स्वतंत्र देव सिंह, बेबीरानी मौर्य, धर्मवीर प्रजापति, सूर्यप्रताप शाही, नरेंद्र कश्यप, दयाशंकर सिंह, अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री दानिश आज़ाद, विजय लक्ष्मी गौतम, नंदगोपाल नंदी, रविन्द्र जायसवाल, गिरीश यादव, जेपीएस राठौर, दयाशंकर दयालु और अन्य कई मंत्री जुटे रहे। बीजेपी के सहयोगी दल एसबीएसपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर और निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं कैबिनेट मंत्री संजय निषाद भी यहीं जमे रहे।
सपा के महासचिव शिवपाल यादव ने भी यही डेरा डाल दिया था और सात दिन में कई चौपाल और बैठकें कीं। सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम के साथ ही सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह के पक्ष में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम अचल राजभर, रामगोपाल यादव, विधायक दुर्गा प्रसाद यादव, विधायक अखिलेश यादव, पूर्व मंत्री रामगोविंद चौधरी, पूर्व मंत्री जियाउद्दीन रिजवी, पूर्व विधायक गजाला लारी, काजल निषाद घर-घर घूमते रहे। साथ ही कांग्रेस के जिलाध्यक्ष इंतेखाब, पूर्व प्रदेश सचिव राष्ट्रकुवर सिंह, पूर्व विधायक नसीम अहमद, समाजवादी जनपरिषद के प्रदेश अध्यक्ष बिक्रमा मौर्य, आम आदमी पार्टी के नेता भी समर्थन में वोट मांगते दिखे।
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अखिलेश इस अपील के भी निहितार्थ हैं-
प्रचार खत्म होने के साथ ही समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर प्रेस नोट जारी करते हुए कार्यकर्ताओं और घोसी की जनता से चुनाव नतीजे आने तक खास तौर से चौकन्ने रहने की अपील की है। उन्होंने कहा है, “...आज से पहले पूरे देश में घोसी कभी भी इतना अधिक चर्चा में नहीं रहा...क्योंकि बीजेपी की महंगाई, भ्रष्टाचार व अत्याचार से पीड़ित देश भर की जनता को लग रहा है कि घोसी की जनता बीजेपी को हराकर पूरे देश को एक संदेश देगी कि दल-बदल करने वाले नेताओं को अब वो खुलकर हराएगी और विधायकों को खरीदने वाली बीजेपी को एक सबक सिखाएगी।”
सपा मुखिया ने कहा- “सिर्फ मतदान ही नहीं उसके बाद भी 8 तारीख को परिणाम आने तक चौकन्ने रहकर अपने डाले गए मतों की चौकसी निगरानी करें....!"
अंतिम क्षण आए अखिलेश के इस बयान को रामपुर चुनाव के दौरान हुई प्रशासनिक मनमानी और एक खास वर्ग के मतदाताओं को मतदान के लिए घर से ही न निकलने देने के आरोपों और समाजवादी पार्टी की उस पारम्परिक सीट पर आए अप्रताशित नतीजों के सबक के रूप में भी देखा जा रहा है।
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