सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को महाराष्ट्र की जेल से रिहा करने में आ रही रुकावट को हटा दिया है। जस्टिस के एम जोसेफ और हृषिकेश रॉय ने कहा: हमारे 10 नवंबर, 2022 के आदेश के संदर्भ में यह इंगित किया गया है कि याचिकाकर्ता की नजरबंदी के लिए पूर्व शर्त के रूप में सॉल्वेंसी प्रमाणपत्र लेना होगा, जिसमें कम से कम छह सप्ताह लगेंगे।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 10 नवंबर को नवलखा की बिगड़ती सेहत को देखते हुए उन्हें जेल से निकालकर घर में नजरबंद करने की अनुमति दी थी और 14 नवंबर तक उन्हें 2 लाख रुपये जमा करने को कहा था। आज कोर्ट ने अपने आदेश में कहा- हम याचिकाकर्ता नवलखा के लिए 10 नवंबर, 2022 के हमारे आदेश का लाभ उठाने के लिए सॉल्वेंसी सर्टिफिकेट की आवश्यकता को छोड़ना उचित समझते हैं। यह तदनुसार आदेश दिया गया है।
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कोर्ट ने आगे कहा, "चूंकि पासपोर्ट, आधार कार्ड और पैन कार्ड जैसे अन्य पर्याप्त सुरक्षा प्रमाण प्रदान किए गए हैं, ट्रायल कोर्ट को इस अदालत के आदेश के लाभ के लिए पहचान के अतिरिक्त प्रमाण के रूप में राशन कार्ड पर जोर नहीं देना चाहिए।" नवलखा की तरफ से पेश वकील नित्या रामकृष्णन और अधिवक्ता शादान फरासत ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि कार्यकर्ता की नजरबंदी के लिए पूर्व शर्त के रूप में जमानत के संबंध में सॉल्वेंसी सर्टिफिकेट हासिल करने में कम से कम छह सप्ताह का समय लगेगा।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने कई शर्तें लगाते हुए 70 वर्षीय नवलखा को मुंबई में एक महीने के लिए नजरबंद रखने की अनुमति दी थी। कोर्ट ने राहत देते हुए कहा था कि नवलखा की मेडिकल रिपोर्ट को अस्वीकार करने का कोई कारण नहीं है। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 13 दिसंबर की तारीख तय की है।
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इससे पहले 29 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने तलोजा जेल के अधीक्षक को नवलखा को तुरंत इलाज के लिए मुंबई के जसलोक अस्पताल में शिफ्ट करने का निर्देश दिया था। नवलखा ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया था, जहां अप्रैल में पारित फैसले में तलोजा जेल से स्थानांतरित करने की उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया था।
नवलखा को अगस्त 2018 में गिरफ्तार कर शुरू में घर में नजरबंद रखा गया था। बाद में अप्रैल 2020 में, शीर्ष अदालत के आदेश के बाद, उन्हें तलोजा केंद्रीय कारागार में भेज दिया गया था।
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