उत्तर प्रदेश में चुनावी नतीजों को लेकर सर्वाधिक चिंता प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे से ही नजर आ रही है, यही कारण है कि विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण में उन्होंने बीजेपी का किला बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है। वजह भी है, क्योंकि यहां के नतीजे उनके राजनीतिक भविष्य के साथ ही 2024 में बीजेपी की संभावनाओं की दिशा भी तय कर देंगे।
यूपी चुनाव के आखिरी और सातवें चरण का प्रचार शनिवार को खत्म हो रहा है, और मोदी किसी भी तरह देश के इस राजनीतिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण राज्य को जीतना चाहते हैं। रैलियों और रोड शो के अलावा मोदी ने बीते दिनों के अपने वाराणसी प्रवास में जगह-जगह रुक कर लोगों से बीजेपी को वेट देने के लिए अपनी झोली फैलाई है।
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इस दौरान जिस जगह सबसे ज्यादा ध्यान लोगों का गया है वह बनारस का मशहूर पप्पू टी स्टाल। कौमरों की चमक-दमक और अपने सुरक्षा लाव-लश्कर के बीच मोदी ने यहां रुक कर चाय की चुस्कियां लीं। पप्पू टी स्टाल का जिक्र तो साहित्यकार काशीनाथ सिंह के मशहूर उपन्यास काशी का अस्सी में भी है।
वैसे अस्सी बनारस का मशहूर घाट है, और यहीं पप्पू टी स्टाल है। बनारस के लोगों का कहना है कि यूं तो वाराणसी में 80 घाट हैं और अस्सी घाट सबसे आखिरी घाट है इसीलिए इसका नाम ही अस्सी घाट पड़ा है। इसी अस्सी घाट पर मोदी ने रुककर कुल्हड़ में चाय पी।
बनारसी तो अपने अंदाज़ में चुटकियां ले रहे हैं कि “एक चायवाला दूसरे चाय वाले के पास पहुंचा ताकि बुलडोजर बाबा की सत्ता बची रहे…”
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परंपरा है कि बुद्धिजीवी, पत्रकार, लेखक और एक्टिविस्ट पप्पू चाय वाले की दुकान पर सुबह-शाम जमावड़ा लगाते हैं। दरअसल पप्पू टी स्टाल एक चाय की दुकान कम और ताजा हालात पर बहस-मुबाहिसे का अड्डा अधिक है। यहां घंटों तक कभी खत्म न होने वाली बहसें और किस्सागोइयां होती रहती हैं।
बनारसियों का कहना है कि यह शायद पहला मौका है कि प्रधानमंत्री के स्तर का कोई नेता पप्पू टी स्टाल पर इस तरह पहुंचा हो। एक स्थानीय निवासी और इतिहासकार का कहना था कि, “जो भी नेता पप्पू की चाय पीता है, वह चुनाव हार जाता है....।”
चाय ही नहीं, अपने रोड शो के दौरान मोदी पान की दुकान पर भी रुके। राजनीतिक टिप्पणीकारों का कहना है कि अपने इस अंदाज़ से वह जताना चाहते हैं कि वे सिर्फ वाराणसी से सांसद ही नहीं हैं. बल्कि यहां की संस्कृति और जीवनशैली से भी घुले मिले हैं और यह शहर उन्हें अपना ही शहर लगता है।
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बीती रात अचानक मोदी वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन जा पहुंचे थे। स्टेशन का इलाका वाराणसी कैंट विधानसभा सीट का हिस्सा है। यहां मोदी ने स्टेशन के आसपास दुकानें-खोमचे लगाने वालों से बातचीत की। वैसे राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी कैंट सीट हार सकती है क्योंकि कांग्रेस उम्मीदवार राजेश मिश्रा की हवा यहां बह रही है।
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ध्यान रहे कि 2017 के चुनाव में बीजेपी ने वाराणसी की कुल 8 में से 6 सीटों पर जीत हासिल की थी, एक सीट उसकी सहयोगी अपना दल (एस) को मिली थी और एक राजभर की पार्टी एसबीएसपी के हिस्से में आई थी। राजभर तब बीजेपी के साथ थे, लेकिन इस बार उनका अखिलेश यादव की सपा से गठबंधन है।
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मोदी के तामझाम के अलावा विपक्षी दलों का जमावड़ा भी बनारस में है। इसीलिए काशी इन दिनों यूपी चुनाव के ग्रैंड फिनाले जैसा माहौल दिखा रही है। विपक्षी नेताओँ में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी यहां कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए प्रचार में हिस्सा लिया। प्रियंका गांधी तो शहर के कबीर मठ में ही रुकी हैं, और वाराणसी में सियासी आबो-हवा पर नजर रखने वाले कहते हैं कि इससे एक अलग किस्म का संदेश लोगों के बीच जा रहा है।
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गुरुवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शहर में थी और वे अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के साथ सपा गठबंधन के पक्ष में प्रचार करती दिखीं। पहले कहा जाता था कि सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव भी पड़ोसी जिले जौनपुर में मल्हानी विधानसभा सीट पर लकी यादव के पक्ष में प्रचार करने आएंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। लकी यादव मुलायम के नजदीकी रहे परसनाथ यादव के पुत्र हैं। बताया जाता है कि स्वास्थ्य कारणों से वे प्रचार मैदान में नहीं कूदे।
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सातवें चरण में कुल 54 सीटों पर 7 मार्च को वोटिंग हैं जिनमें आजमगढ़, मऊ, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही और सोनभद्र जिलों की सीटें शामिल हैं।
लेकिन चर्चा जब मोदी के ही प्रचार की हो तो ऐसे में वाराणसी के रहने वाले इतिहासकार आरिफ खान कहते हं कि 2019 के मुकाबले मोदी के प्रचार में वह चमक नहीं दिखी। उनका कहना है कि, “मैंने एक बात नोट की, मोदी के शो में बहुत से लोग बनारस के बाहर के थे, इसके अलावा मोदी मैजिक भी हाल के दिनों में धुंधला पड़ा है, यही कारण है कि मोदी के रोड शो आदि में स्थानीय लोगों की मौजूदगी कम हुई है।”
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