फ्रांस के यूरोप और विदेश मामलों के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा कि, “राफेल विमान सौदे में फ्रांस की कंपनियों ने किस भारतीय साझीदार को चुना है, या उसे चुना जाएगा, उसमें फ्रांस सरकार की कोई भूमिका नहीं है। भारत के साथ जो समझौता हुआ है उसकी प्रक्रिया के तहत फ्रांस की कंपनियां ऑफसेट प्रोजेक्ट के लिए अपनी मर्जी का भारतीय साझीदार चुनने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन उन्हें इसके लिए भारत सरकार से मंजूरी लेनी होगी।”
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बयान में आगे कहा गया है कि, “फ्रांस की कंपनियों ने इस सौदे के तहत भारत की कई फर्मों के साथ समझौते किए हैं। इनमें सरकारी और निजी दोनों कंपनियां शामिल हैं। लेकिन यह समझौते भारत सरकार की मंजूरी से ही हुए हैं।”
प्रवक्ता ने इस बात की पुष्टि की कि सितंबर 2016 में फ्रांस और भारत सरकार के बीच 36 राफेल विमानों के लिए हुए समझौते में भी इन्हीं नियमों का पालन किया गया है।
गौरतलब है कि शुक्रवार को ही फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वां ओलांद ने एक न्यूज पोर्टल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि राफेल सौदे में दसॉल्ट एविएशन को पार्टनर चुनने के लिए कोई विकल्प नहीं दिया गया था, बल्कि भारत सरकार ने अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को पार्टनर बनाने के लिए कहा था।
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इस बीच दसॉल्ट एविएशन ने एक बयान में कहा है कि, “दसॉल्ट ने रिलायंस समूह को 2016 के डिफेंस प्रोक्यूरमेंट प्रोसीजर 2016 और भारत सरकार की मेक इन इंडिया नीति के तहत पार्टनर बनाया गया।”
दसॉल्ट के इस बयान पर कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा है कि दसॉल्ट ने भले ही स्पष्टीकरण जारी किया हो, लेकिन इससे साफ लगता है कि यह किसी दबाव में जारी किया गया बयान है और इस बयान में पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वां ओलांद का जिक्र तक नहीं है।
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