जस्टिस कूरियन जोसेफ ने पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई के राज्यसभा की सदस्यता स्वीकार करने पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के रवैये पर सरेआम प्रेस कांफ्रेंस करने का जिक्र किया। इस प्रेस कांफ्रेंस में जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कूरियन जोसेफ शामिल हुए थे। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि उस प्रेस कांफ्रेंस में हमने कहा था कि देश की न्यायिक व्यवस्था की नींव को खतरा है और अब लगता है कि यह खतरा टला नहीं है। उन्होंने कहा कि, “यही वजह है कि मैंने रिटायरमेंट के बाद कोई भी पद न लेने का फैसला किया था।”
ध्यान रहे कि जनवरी 2018 में जस्टिस रंजन गोगोई, जे चेलामेश्वर, मदन बी लोकुर और कूरियन जोसेफ ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर ततकालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के कामकाज और तौरतरीकों पर सवाल उठाए थे। उन्होंने उस पत्र को भी सार्वजनिक किया था जो जस्टिस दीपक मिश्रा को कई महीने पहले इन जजों ने लिखा था।
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जस्टिस कूरयिन जोसेफ ने कहा कि, “हम तीन जजों के साथ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि ऐसा कर हम राष्ट्र का कर्ज उतार रहे हैं। मुझे आश्चर्य है कि कभी इतना न्यायपालिका की स्वतंत्रता की वकालत का साहस दिखाने वाले जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने आदर्शों और सिद्धांतों से कैसे समझौता कर लिया जिससे न्यायपालिका की निष्पक्षता पर ही प्रश्न लग गया।“
जस्टिस जोसेफ को विश्वास है कि देश की बुनियाद अब भी संवैधानिक मूल्यों पर खड़ी है क्योंकि न्यायपालिका स्वतंत्रता से काम करती रही। उन्होंने कहा कि, “जैसे ही लोगों का यह विश्वास हिलेगा कि कुछ जजों के फैसले पक्षपातपूर्ण हैं, तो संवैधानिक मूल्यों की बुनियाद हिल जाएगी।” उन्होंने कहा कि इस बुनियाद की रक्षा के लिए ही 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने कोलीजियम सिस्टम शुरु किया था ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनी रहे।
गौरतलब है कि जस्टिस जोसेफ उस संविधान पीठ के सदस्य थे जिसने कोलीजियम के स्थान पर नेशनल ज्यूडिशियल अपाइंटमेंट कमीशन स्थापित करने वाले संविधान में किए गए 99वें संशोधन को खारिज किया था।
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वहीं सुप्रीम कोर्ट के एक और पूर्व जज जस्टिस ए के पटनायक ने कहा है कि न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने के लिए किसी भी सीजेआई को न तो चुनाव लड़ना चाहिए और न ही उन्हें राज्यसभा आदि के लिए नामित होना चाहिए। उन्होंने कहा, “मुझे समझ नहीं आ रहा है कि पूर्व सीजेआई को राज्यसभा के लिए नामांकन क्यों स्वीकार करना चाहिए या चुना जाना चाहिए। उसकी वहां कोई भूमिका नहीं है। न तो किसी राष्ट्रपति को पूर्व सीजेआई को नियुक्त करना चाहिए और न ही उसे स्वीकार करना चाहिए। इस तरह से संस्थानों को बचाया जाता है और एक जज को गरिमा के साथ रिटायर होना चाहिए।”
जस्टिस पटनायक ने कहा कि, “हमें संस्थानों की स्वतंत्रता और शुद्धता बनाए रखना है। कोई इनका घालमेल नहीं कर सकता। यदि सरकार को किसी कानूनविद की जरूरत थी तो बहुत से लोग हैं जो इस काम को कर सकते थे। कई वकील और कानूनी शिक्षाविद हैं, जिन पर विचार किया जाना चाहिए था।“ जस्टिस पटनायक ने पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई के खिलाफ दायर यौन उत्पीड़न मामले की जांच करने वाले पैनल की अध्यक्षता की थी।
पटनायक ने कहा कि “गोगोई ने न्यायपालिका को चुना था ताकि वे गरिमा और सम्मान के साथ सेवानिवृत्त हो सकें। अगर वे नेता ही बनना चाहते थे तो उन्हें अपना करियर पहले से तयकरना चाहिए अगर वह एक राजनेता बनना चाहते थे। राज्यसभा के सदस्यों की एक महान भूमिका होती है, लेकिन न्यायपालिका की भी अपनी भूमिका है।“
(ऐशलिन मैथ्यू के इनपुट के साथ)
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