बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने गुरुवार को बीजेपी का दामन थाम लिया। बीजेपी के राष्ट्रीय मुख्यालय में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने उन्हें बीजेपी की सदस्यता दिलाई। इस दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह, राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी और राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी संजय मयूख भी मौजूद रहें।
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केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह का पार्टी में स्वागत करते हुए कहा कि स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी और जॉर्ज फनार्डीस के नेतृत्व में बिहार को जंगलराज से मुक्त कर कानून का राज स्थापित करने, राज्य का विकास करने और सबको सुरक्षा देने के लिए एक गठबंधन किया गया था जिसे बीजेपी ने लंबे समय तक चलाया लेकिन अपने स्वार्थ के लिए जब नीतीश कुमार ने साथ छोड़ने का फैसला किया तो जेडीयू में रहते हुए भी आरसीपी सिंह ने उन्हें समझाने का प्रयास किया था। उन्होंने कहा कि सिंह के आने से बिहार में बीजेपी और ज्यादा मजबूत होगी।
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बीजेपी में शामिल होने के बाद आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार पर जमकर निशाना साधते हुए बिहार के हालात के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया और 2024 लोकसभा चुनाव के लिए उनके द्वारा चलाए जा रहे विपक्षी एकता की मुहिम पर भी कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार सोचिए कि आज देश कहां चला गया है और बिहार कहां खड़ा हैं? भारत दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया है।
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आरसीपी ने कहा कि नीतीश कुमार पिछले तीन दिनों से बिहार छोड़कर दूसरे राज्यों में घूम रहे हैं, विपक्षी एकता की मुहिम चला रहे हैं लेकिन यह तो बताएं कि विपक्षी गठबंधन का नेता कौन है? सिंह ने नीतीश कुमार के पीएम यानी प्रधानमंत्री बनने की इच्छा पर भी कटाक्ष करते हुए कहा कि नीतीश कुमार पीएम यानी पलटीमार थे, हैं और रहेंगे। आरजेडी के खिलाफ संघर्ष करने वाले नीतीश कुमार अब आजीवन उसी आरजेडी के साथ रहने की बात कह रहे हैं।
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यहां बता दें कि, पूर्व आईएएस अधिकारी आरसीपी सिंह एक जमाने में नीतीश कुमार के काफी करीबी माने जाते थे। नीतीश कुमार ही उन्हें राजनीति में लेकर आए और बाद में उन्हें अपनी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाया। बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के समय जेडीयू के कोटे से आरसीपी सिंह केंद्र में मंत्री भी बने थे, लेकिन बाद में नीतीश कुमार के साथ उनके संबंधों में खटास आती गई। नीतीश द्वारा उन्हें राज्यसभा में नहीं भेजने के कारण उन्हें मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा और जेडीयू भी छोड़ना पड़ा था।
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