अभी मोदी सरकार ने जो क्रिमिनल आइडेंटिटीफिकेशन बिल पास किया है उसको लेकर विपक्षी खेमे में जबरदस्त विरोध है जबकि सरकार का कहना है कि इससे अपराध नियंत्रण में सहायता मिलेगी. आपका क्या कहना है?
मैं तो इसका विरोध करता हूं। सरकार ने बिल के दो लक्ष्य बताए हैं - पहला कि इससे अपराध को पहले ही रोक सकेंगे यानि प्रिवेंशन और दूसरा कि अपराधियों को सज़ा दिलाने में मदद मिलेगी यानि कन्विक्शन की रेट अच्छी होगी।
बिल को ठीक से देखें तो समझ आएगा कि इसमें प्रिवेंशन ऑफ क्राइम का कोई प्रोविजन तो है नहीं। आईडेंटिटीफिकेशन तो क्राइम के बाद होता है। उसके बाद ही सारी पहचान मसलन अंगूठे की छाप आदि इकट्ठी की जाती है। अब रही बात इनवेस्टिगेशन की तो तो उसमें थोड़ी मदद मिल सकती है लेकिन कन्विक्शन में कोई मदद नहीं मिलेगी।
कन्विक्शन इस आधार पर नहीं होता कि आपके पास डेटा है, कन्विक्शन इस आधार पर होता है कि आप उस डेटा को अपराधी से रिकॉर्ड से मैच करा पाते हैं या नहीं। यह प्रक्रिया इस बिल के आने से पहले भी अपनाई जाती थी।
कहा जा रहा है इस बिल के जरिए पुलिस को विशेषाधिकार दिये गए हैं उसका दुरुपयोग होने की आशंका ज्यादा है। भारतीय राज्य क्या पुलिस स्टेट में तब्दील होता जा रहा है?
आशंका बिल्कुल जायज है। दुरुपयोग होगा क्योंकि आप इस कानून के जरिए कर क्या रहे हैं। आप अथॉरिटी को शक्तिशाली बना रहे हैं। देश की जनता को, नागरिकों को शक्तिशाली नहीं बनया जा रहा है इस बिल के जरिए जो कि पास हो चुका है और अब कानून बन जाएगा।
दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि यह केवल इसी ऐक्ट के साथ नहीं हो रहा है बल्कि यह हर लॉ की समस्या है। यहां तक कि जो अधिकार संबंधित कानून भी बनाए गए वो सब भी अथॉरिटी को मजबूत करने वाले बनाए गए हैं।
मान लीजिए मैं अथॉरिटी हूं। इस ऐक्ट के आधार पर यह मेरी मर्जी पर निर्भर करेगा कि मैं आपको कब पकड़ सकता हूं। सत्ता मेरे हाथ में होगी। जहां तक बात भारतीय राज्य की है तो वो आधा पुलिस स्टेट तो पहले से ही था अब पूरा पुलिस स्टेट बन जाएगा।
मोदी सरकार जिस तरह से देश को हिंदू राष्ट्र बनाने पर आमादा है उससे यह कहा जा रहा है कि इसका दुरुपयोग खासतौर से अल्पसंख्यकों के के खिलाफ किया जाएगा।
ऐसा है कि जब भी अथॉरिटी को सत्ता दी जाती है तो उसका दुरुपयोग होता ही है। अब दुरुपयोग का क्या ऑब्जेक्ट होगा यह सत्ता तय करेगी। यह सरकार है तो अल्पसंख्यकों के खिलाफ दुरुपयोग कर सकती है। दूसरी सरकार होगी तो किसी और रूप में दुरुपयोग करेगी। बात यह है कि सत्ता के दुरुपयोग को और बढ़ाने के लिए पुलिस को एक और यंत्र मिल गया है।
अगर इस सरकार की कार्यपद्धति की बात करें तो कानून बनाने से पहले स्टेकहोल्डर्स से बात नहीं करती। हाल फिलहाल कृषि कानूनों के संदर्भ में हमने ऐसा देखा है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन सच है कि यह सरकार कानून बनाने से पहले कोई राय मशविरा नहीं करती। स्टेकहोल्डर्स से कोई बात नहीं की जाती है। विचार विमर्श का कोई मैकेनिज्म नहीं है। यह सरकार पहले तय कर लेती है फिर बाद में सार्वजनिक करती है। दिखाने के लिए कहीं कोई विज्ञापन कर दिया जाता है कि आपके विचार आमंत्रित हैं लेकिन उसको लेकर संजीदगी नहीं होती।
हालांकि पहले भी ऐसा होता था कि बहुमत के दम पर सरकारें अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए कानून बना देती हैं। लेकिन इस सरकार ने इन्होंने इस प्रवृत्ति को इंश्टीट्यूशनलाइज कर दिया है।
समस्या यह है कि लोकतंत्र में नागरिकों को शक्तिशाली नहीं बनाया जा रहा है जबकि होना यह चाहिए कि कोई भी कानून जनता को ध्यान में रखकर बनाया जाना चाहिए। यह सरकार इस दिशा में बिल्कुल काम नहीं कर रही है।
दिल्ली से लेकर खरगौन तक आज पुलिस की मौजूदगी में भड़काऊ यात्राएं निकाली जा रही हैं। दंगे भी हो रहे हैं। क्या आपको लगता है कि इसमें पुलिस भी शामिल है?
पुलिस एकदम शामिल है।
पुलिस पहले ऐसी परिस्थिति तैयार होने देती है। जो तनाव फैलाने वाले लोग हैं उनको छूट दी जाती है। फिर जब तनाव फैल जाता है तब पुलिस ऐक्शन में आती है। साफ है कि पुलिस इसमें शामिल होती है।
पुलिस का काम सिर्फ अपराध रोकना नहीं है। प्रिवेंशन भी पुलिस की बहुत बड़ी ड्यूटी है लेकिन इस पर पुलिस का ध्यान बिल्कुल नहीं होता। जब पानी सर से ऊपर निकल जाता है तब पुलिस जागती है. उसके पहले सोती रहती है।
दिल्ली पुलिस गृहमंत्रालय के अधीन आती है। गृह मंत्रालय अमित शाह के अधीन है। बतौर गृह मंत्री अमित शाह का कैसे आंकलन करते हैं?
दिल्ली दंगों में भी और जहांगीरपुरी में हुए दंगों में गृहमंत्री अमित शाह बुरी तरह फेल हुए हैं। इसमें कोई दो राय नहीं। कुछ लोग ऐसे हैं जो मांग कर रहे हैं कि दिल्ली में योगी जैसा मुख्यमंत्री चाहिए लेकिन ऐसा भी नहीं कि कानून व्यवस्था के मुद्दे पर योगी बहुत सफल रहे हैं।
वो सफल इसी अर्थ में दिखते हैं कि उससे पहले जो अखिलेश यादव का शासन था वह और खराब था। वह व्यवस्था और भी घटिया थी। अखिलेश राज में माफिया को भी संरक्षण प्राप्त था। अगर आप एक खास जाति या समुदाय से ताल्लुक रखते हैं तो कार्रवाई नहीं होती थी।
अखिलेश के राज में कानून व्यवस्था बहुत कमजोर थी। योगी राज में बिजनेस क्लास को थोड़ी राहत नज़र आ रही है। बुलडोजर से कूड़ाकरकट हटा सकते हैं। उसमें गरीब सबसे ज्यादा पिसता है। तो मेरे हिसाब से योगी अमित शाह का विकल्प नहीं लेकिन अमित शाह भी इस मोर्चे पर पूरी तरह से फेल हैं क्योंकि उनकी नीयत खराब है।
अब कहते हैं कि हिंदू खतरे में है। हिंदू कहां से खतरे में आ जाएगा। सवाल है कि ऐसा क्या कर दिया मोदी सरकार ने कि मोदी खतर में आ गया। ये मोदी सरकार को बताना चाहिए। पहले तो हिंदू खतरे में नहीं था।
ये जो सब हो रहा है दिल्ली से लेकर खरगोन और बिहार तक सब बाई डिजाइन हो रहा है। एक योजना के तहत हो रहा है। एक खास राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने के लिए यह सब प्रोपगंडा किया जा रहा है और कुछ नहीं।
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