कार्पोरेट टैक्स दरों में कटौती तो सरकार 4-5 साल पहले करना चाहती थी, लेकिन सूट-बूट की सरकार के आरोप लगने के बाद सरकार ने इस पर अमल रोक दिया था। यह खुलासा किया है प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के पूर्व प्रमुख अरविंद सुब्रह्मण्यन ने। उन्होंने आर्थिक विकास को रफ्तार देने और मांग बढ़ाने के लिए व्यक्तिगत आयकर में कमी लाने की संभावना जताई है।
अरविंद सुब्रह्मण्यन इन दिनों वॉशिंगटन स्थित पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स में सीनियर फेलो हैं, और इससे पहले वे प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष थे। उन्होंने कहा कि मौजूदा आर्थिक हालात बेहद खराब हैं और सरकार के पास इसे सुधारने का राजनीतिक मौका है, जिससे वह मुश्किल आर्थिक फैसले ले सकती है। उन्होंने कहा कि सरकार ने कार्पोरेट टैक्स में कटौती का जो फैसला लिया है वह पहले ही कार्यकाल में लिया जाना था, लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार पर ‘सूट-बूट की सरकार’ होने का आरोप लगा दिया, जिससे सरकार ने इस फैसले को टाल दिया।
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उन्होंने कहा कि सरकार में धारणा बनी थी कि पहले ही उस पर अमीरों की सरकार होने का आरोप लग रहा है, ऐसे में कार्पोरेट टैक्स में कटौती से यह आरोप और मजबूत हो जाता।
सुब्रह्मण्यन ने जीएसटी को सही कदम बताया, लेकिन इसे लागू करने की खामियों की तरफ इशारा किया।
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उधर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के वर्तमान अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने कहा है कि मौजूदा हालात में सरकार जीडीपी के 3.3 फीसदी राजकोषीय घाटा लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगी। गौरतलब है कि यह पहला मौका है जब सरकार के किसी व्यक्ति ने लक्ष्य से चूकने की बात स्वीकार की है। देबरॉय ने मौजूदा आर्थिक सुस्ती के लिए वैश्विक कारणों के साथ ही जीएसटी को भी जिम्मेदार ठहराया।
एक न्यूज वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में देबरॉय ने कहा कि कॉरपोरेट टैक्स में कटौती के मद्देनजर व्यक्तिगत आयकर में कटौती हो सकती है। उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट टैक्स में कमी आई है तो सरकार या वित्त मंत्री देर सवेर आयकर में कटौती करेंगे। उन्होंने कहा कि फरवरी में बजट की घोषणा के बाद विकास दर घटी है, जिसकी वजह से राजकोषीय घाटा बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि राजकोषीय घाटा कितना घटेगा अभी कहना मुश्किल है, लेकिन सरकार अपने लक्ष्य (3.3 फीसदी) तक नहीं पहुंच पाएगी।
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देबरॉय ने कहा कि ‘मुझे लगता है कि जीएसटी ने विकास दर को कम किया है और यह अब भी जारी है।‘ उन्होंने कहा कि नोटबंदी का प्रभाव एक तिमाही से ज्यादा नहीं रहा लेकिन जीएसटी का प्रभाव लंबे समय तक बना रहा है। उन्होंने कॉरपोरेट टैक्स में कमी से निवेश पर प्रभाव पड़ने से इनकार किया।
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