देश में जारी कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान पिछले महीने उत्तर प्रदेश की नदियों में कोविड संक्रमित शवों के तैरते पाए जाने के बाद प्रयागराज, लखनऊ और कानपुर में मछली कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। कोरोना मामले कम होने के बाद लॉकडाउन हटने के बाद भी लोग मछली खरीदना नहीं चाह रहे हैं।
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लखनऊ के नरही बाजार के एक मछली विक्रेता प्रशांत कुमार ने कहा, "हमने कोरोना कर्फ्यू हटने के बाद दो दिन पहले कारोबार फिर से शुरू किया, लेकिन लोग मछली खरीदने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। यहां तक कि हमारे नियमित ग्राहकों ने भी मछली खरीदना बंद कर दिया है। जब हमने पूछताछ की, तो उन्होंने कहा कि वे मछली खाने से सावधानी बरत रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि हो सकता है नदियों में तैरते शवों के कारण मछली भी संक्रमित हो गई हों।
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प्रयागराज में एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी और एक नियमित मछली उपभोक्ता रवींद्र घोष ने स्वीकार किया कि उन्होंने पिछले डेढ़ महीने से मछली नहीं खरीदी, जबसे शव पानी में तैरते पाए गए हैं। उन्होंने कहा "मैंने और मेरी पत्नी ने अगले कुछ महीनों तक मछली नहीं खाने का फैसला किया है। पानी इतने सारे कोविड शवों से संक्रमित हो गया होगा और स्वाभाविक रूप से मछली भी संक्रमित हो जाएगी। हालांकि मछली हमारा मुख्य आहार है, लेकिन अभी हमने कोई भी जोखिम नहीं लेने का फैसला किया है।"
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इस बीच, राज्य मत्स्य पालन विभाग के एक अधिकारी ने कहा, "मछली की कुछ किस्में मृत जानवरों को कुतरती हैं, जिन्हें नदियों में फेंक दिया जाता है। वे एक जानवर के शव और एक मानव लाश के बीच अंतर नहीं करती हैं। यह डर पूरी तरह से निराधार नहीं है। हालांकि चिकित्सा विशेषज्ञ ही बता सकते हैं कि मछली खाना है या नहीं, अगर इस समय स्वास्थ्य के लिए खतरा है।"
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कानपुर के एक निजी चिकित्सक एस.के. मित्रा ने कहा कि इस बात पर कोई शोध नहीं हुआ है कि क्या यह वायरस शवों और लाशों का शिकार करने वाली मछलियों में फैल सकता है या नहीं। जब तक इस मुद्दे पर शोध नहीं किया जाता है, तब तक नदियों से लाई गई मछलियों को नहीं खाना सुरक्षित ही है, जहां शव फेंके गए थे। हमने एहतियात के तौर पर पिछले दो महीने से मछली नहीं खाई है।
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