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पहले छात्र राजनीति, फिर देश की राजनीति में चमके, जानें कैसा रहा शरद यादव का सफर?

जबलपुर में छात्र राजनीति में सक्रिय हो कर शरद यादव बिहार चले गए और वहां से राष्ट्रीय फलक पर पहचान स्थापित की। वह 1989 में मंडल राजनीति का प्रमुख चेहरा बन कर उभरे। बाद में वो भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल हुए।

फोटो: Getty Images
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समाजवादी विचारधारा के शरद यादव मूलत: मध्य प्रदेश के रहने वाले थे। उनका जन्म एक जुलाई 1947 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद के बंदाई गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। शरद पढ़ने लिखने में काफी तेज थे। युवावस्था में आते ही यादव को राजनीति में दिलचस्पी होने लगी, उन्होंने जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई की। इस वक्त वो छात्र राजनीति में भी काफी सक्रिय हो गए थे, साथ ही पढ़ाई में भी टॉप किया था। शरद यादव राम मनोहर लोहिया के विचारों से काफी ज्यादा प्रभावित थे।

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जबलपुर में छात्र राजनीति में सक्रिय हो कर वह बिहार चले गए और वहां से राष्ट्रीय फलक पर पहचान स्थापित की। वह 1989 में मंडल राजनीति का प्रमुख चेहरा बन कर उभरे। बाद में वो भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल हुए। वे बिहार के मधेपुरा लोकसभा से चार बार सांसद बने। मध्यप्रदेश के जबलपुर से दो बार सांसद चुने गए। उत्तर प्रदेश के बदायूं से भी एक बार लोकसभा के लिए चुने गए। शरद यादव तीन बार राज्यसभा के भी सदस्य थे। वह 2003 में जनता दल यूनाइटेड के गठन के बाद से 2016 तक इसके अध्यक्ष रहे। बाद में जनता दल यूनाइटेड ने उन्हें संगठन विरोधी गतिविधियों के आरोप में पार्टी से निकाल दिया था और राज्यसभा की सदस्यता के लिए उनको आयोग भी करार दिया गया।

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शरद यादव 1999 से 2004 के बीच प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व वाली तत्कालीन राजग सरकार में नागर विमानन उपभोक्ता मामले खाद एवं लोक वितरण विभाग के मंत्री थे। यादव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के संयोजक भी रहे। जनता दल यूनाइटेड से निकाले जाने के बाद उन्होंने 2018 में लोकतांत्रिक जनता दल नाम से अपनी पार्टी बनाई थी। उन्होंने मार्च 2020 में उसका लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल में विलय कर दिया।

शरद यादव करीब 50 साल राजधानी के लुटियंस जोन में रहे। नयी दिल्ली के तुगलक रोड 307 नंबर कोठी लंबे समय तक उनका आवास रही, जहां वे 23 साल बिताए। उन्हें कानूनी प्रक्रिया के चलते पिछले वर्ष मई में यह सरकारी आवास खाली करना पड़ा था।

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