हालात

पहले नोटबंदी-जीएसटी और अब कश्मीर-पाक तनाव, उद्योग-व्यापार की कमर टूटी, लाखों लोग बेरोजगार

कई व्यापारी उद्योगों की दुर्दशा के लिए नोटबंदी को मुख्य जिम्मेदार मानते हैं। व्यापारियों का कहना है कि नोटबंदी और फिर उसके बाद जीएसटी ने उनकी कमर तोड़ दी। पंजाब में तो हालत ये है कि यहां बीते 2 साल में 12 लाख से ज्यादा श्रमिक पूरी तरह से बेरोजगार हो गए हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

पंजाब की बात ट्रांसपोर्ट से शुरू करते हैं। वजह भी है। ट्रकों का पहिया जाम होने लगे, तो वह कई तरफ इशारा करते हैं। अटारी में एक एकीकृत चेक पोस्ट (आईसीपी) है। इसे करीब दो अरब रुपये की लागत से तैयार किया गया है। इस साल 14 फरवरी को पुलवामा में आतंकी हमले के बाद से ही पाकिस्तान के साथ व्यापार में रोड़े अटकने लगे। पिछले 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से तो आईसीपी वीरान ही हो गया है। क्योंकि न तो इधर से कुछ जा रहा है, न पाकिस्तान से कुछ आ रहा है।

स्वाभाविक है कि बड़ी संख्या में ट्रक ऑपरेटर, ड्राइवर, क्लीनर, और कुली बेरोजगार हो गए हैं। करीब 600 ट्रक बैंकों को वापस लौटाए जा चुके हैं क्योंकि ऑपरेटर इनके लोन की किस्तें नहीं भर पा रहे थे। कई प्राइवेट फाइनेंस कंपनियों को भी ट्रक या तो वापस किए जा चुके हैं या कंपनियां खुद उन्हें उठवा रही हैं। यह बात दूसरी है कि वाहन सरेंडर करने के बाद भी कर्ज ज्यों का त्यों रहने की वजह से ट्रक मालिक तनाव और दबाव में हैं।

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ऐसे ही एक ऑपरेटर अवतार सिंह लहौरिया ने कहा, “मुसीबतें किसी भी तरह कम नहीं हो रही हैं। व्यापार तो बंद हुआ ही, देशव्यापी मंदी के चलते पुराने ट्रकों के दाम भी बहुत ज्यादा गिर गए। फाइनेंस कंपनी पैसों की वसूली के लिए गुंडों को भेजती हैं जो हमारे घर बैठकर जलील करते हैं, गालियां बकते हैं, मारपीट पर उतर आते हैं। यह रोज का सिलसिला है। लगता है, अब खुदकुशी के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा।” कभी चार ट्रकों और छह दूसरे छोटे वाहनों के मालिक रहे जसविंदर सिंह ग्रेवाल भी गहरे डीप्रेशन में हैं। वर्ल्डवाइड मूवर्स प्राइवेट लिमिटेड के एमडी इंदरप्रीत सिंह बताते हैं कि आईसीपी अटारी से जुड़े कई ट्रक मालिकों ने किस्तें नहीं दिए जाने की वजह से खुद ही ट्रक की चाबियां बैंकों को दे दी हैं।

यहां काम करने वाले सैकड़ों कुली भी मुश्किलों में हैं। हिंद मजदूर कुली यूनियन के अध्यक्ष जसवीर सिंह के मुताबिक, “कुलियों ने बैंकों और प्राइवेट फाइनेंस कंपनियों से कर्ज लेकर बाइक वगैरह खरीदे थे जिन्हें अब वे वापस कर रहे हैं या उनके पास से इन्हें उठा लिया जा रहा है।” कुली यूनियन से जुड़े बलविंदर सिंह बूटा ने बताया कि आर्थिक दुश्वारियां के चलते कई कुलियों ने निजी स्कूलों से अपने बच्चों को निकाल लिया है। भारत-पाकिस्तान व्यापार संबंधों पर शोध करने वाले प्रो. रंजीत सिंह ने भी कहा कि दुनिया में और कहीं व्यापार इस तरह बंद नहीं किया जाता। पंजाब के विकास की एक कड़ी पाकिस्तान के साथ व्यापार से भी फलती फूलती है।

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पंजाब के दूसरे उद्योग-धंधों का भी यही हाल है। लुधियाना की हैंड टूल्स इंडस्ट्री और होजरी के डाइंग यूनिट्स की फैक्ट्रियों में पहले 24 घंटे काम चलता था, अब इनमें से अधिकांश में महज 8 घंटे काम हो रहा है। इसकी वजह यह है कि माल की मांग काफी गिर गई है। लुधियाना की साइकिल, साइकिल पार्ट्स और सिलाई मशीन इंडस्ट्री की भी धाक रही है। अब वह जबरदस्त मंदी की जद में है। उद्योगपति निरंजन थापर के अनुसार, इस बार इन सेक्टरों में ऑर्डर में 40 फीसदी से ज्यादा कटौती है। पहले से तैयार माल गोदामों में जस का तस पड़ा है। व्यापारी कर्ज की मार से दबते जा रहे हैं।

पहले लुधियाना में विभिन्न औद्योगिक सेक्टरों में 8 से 12 लाख तक प्रवासी श्रमिक लगभग स्थायी तौर पर काम करते थे। लेकिन नोटबंदी और बाद में जीएसटी लागू होने के बाद उनकी तादाद आधे से भी कम रह गई है। प्रवासी श्रमिक बेरोजगार होकर अपने मूल राज्यों को लौट गए हैं और स्थानीय श्रमिक रिक्शा चलाने तक का काम कर रहे हैं।

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पंजाब में ट्रैक्टरों की बिक्री में 19 फीसदी की गिरावट आई है। गौरतलब है कि भारत में ट्रैक्टर और खेती मशीनरी का कुल कारोबार 40,000 करोड रुपये का है जिनमें 25,000 करोड रुपये के ट्रैक्टर बिकते हैं। पंजाब में ट्रैक्टर और खेती मशीनरी का कुल कारोबार 5,000 करोड़ रुपये के करीब का है। इस लिहाज से खेती-मशीनरी राज्य में एक बड़ा उद्योग है। लेकिन चालू वित्त वर्ष में इसकी बिक्री में 19 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है। उद्योगपतियों का कहना है कि अगस्त में ज्यादा गिरावट आई। दरअसल, छोटे दर्जे के कई उद्योग बंद हो रहे हैं और लोगों के हाथ से रोजगार जा रहा है।

लुधियाना के होजरी उद्योग की कमर पहले ही टूट रही थी, कश्मीर के हालात ने उसे और ज्यादा बदतर कर दिया है। जम्मू-कश्मीर को सर्दियां शुरू होने से पहले जाने वाला होजरी का सामान ज्यों-का-त्यों पड़ा है क्योंकि अनुच्छेद-370 निरस्त करने के बाद वहां हालात नासाज हैं। पहले से दिए गए ऑर्डर के अनुसार बनाया गया माल अब बंद गोदामों में है और खरीदार नदारद। होजरी व्यापारी सतीश कुमार नंदा के मुताबिक, उनका माल कश्मीर के साथ-साथ पाकिस्तान भी जाता था, लेकिन यह सिलसिला फौरी तौर पर बंद हो गया है। चिंता इस बात की है कि अब माल कहां खपाएंगे। सस्ते सेल में बिक पाया तो ठीक, वरना कबाड़ के मोल बेचना पड़ेगा।

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अमृतसर के पावरलूम उद्योग से जुड़े जोगेंद्र मोंगा के अनुसार, उनके पास 20-20 पावर लूम्स की दो यूनिट हैं। लेकिन इनमें एक-एक शिफ्ट ही चलाए जा रहे हैं जबकि पहले इनमें दो शिफ्टों काम होता था। पहले अमृतसर में हजारों पावरलूम यूनिट थीं लेकिन अब इनकी संख्या महज कुछ सैकड़ा रह गई है। कश्मीर के हालात के कारण शॉल की बिक्री भी ठप हो गई है। उद्योगपतियों की कश्मीर के व्यापारियों से मिलने वाली धनराशि रुकी हुई है।

उद्योगपति और सीपीआई से संबंधित काॅमरेड विजय कुमार ने बताया कि मंदी ने कपड़ा उद्योग पर मारक असर किया है। अगस्त से नवंबर के महीने इस उद्योग के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इन महीनों में गरम कपड़ा कश्मीर जाता है। पर इस बार कश्मीर बंद ने समूचे व्यापार पर बेहद बुरा असर डाला है। पंजाब व्यापार मंडल के अध्यक्ष प्यारेलाल सेठ ने कहा कि देश में खेती-बाड़ी के बाद सबसे बड़ा कारोबार कपड़े का है लेकिन सरकार की कपड़ा उद्योग के प्रति अनदेखी ने इस उद्योग को तबाह कर दिया है।

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यही हाल बटाला में छोटे नट-बोल्ट, पेच, स्टील चूड़ियां, लोहा ढलाई करने और मशीन पार्ट्स बनाने वाले कैप्सटन, मीलिंग, होबिंग, लेथ मशीनों के कारोबार से जुड़े लोगों का भी है। बटाला के लेथ कारोबारी स्वरूप सिंह बिंद्रा ने बताया कि अधिकांश इंडस्ट्री पूरी तरह बंद हो चुकी है और मजदूर बेरोजगार। अमृतसर के कपड़ा, कंबल और मशीन टूल्स कारोबार और जालंधर की स्पोर्ट्स इंडस्ट्री के हालात भी जुदा नहीं हैं। एक अनुमान के मुताबिक, पंजाब में बीते 2 साल में 12 लाख से ज्यादा श्रमिक पूरी तरह से बेरोजगार हुए हैं।

स्थिति कितनी विकट है, इसका एक और उदाहरण। एशिया में अव्वल माने जाने वाली पंजाब की कपास पट्टी में एक दशक पहले 432 कपास मिलें थीं, जिनमें लगभग 50,000 श्रमिक थे। कपास मिल मालिक एसोसिएशन के प्रधान भगवानदास बंसल के अनुसार, “अब यहां महज 56 कपास मिलें हैं जिनमें करीब 5000 मजदूर रह गए हैं। फोरमैन रहे लोग चाय की रेड़ियां लगाने को मजबूर हैं।”

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आलम यह है कि जहां कभी कपास मिलें होती थीं, अब रिहायशी कॉलोनियां बनाई जा रही हैं। कपास मिलों में काम करने वाले मजदूर काम की तलाश में गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान की ओर रुख कर रहे हैं लेकिन वहां भी रोजगार की कोई पुख्ता गारंटी नहीं है। बठिंडा, बरनाला, फिरोजपुर, फरीदकोट, कोटकपूरा, अबोहर को पंजाब की नरमा (कपास) पट्टी माना जाता है। कपास की पैदावार में भी गिरावट आई है, क्योंकि इनकी मांग कम होती गई है। इस वजह से खेत मजदूर भी काम से वंचित हो रहे हैं।

चैंबर ऑफ इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल अंडरटेकिंग के अध्यक्ष उपकार सिंह आहूजा का कहना है कि नोटबंदी और फिर जीएसटी ने हमारी कमर तोड़ दी है। बैंक भी ब्याज दरें कम नहीं कर रहे हैं। इसलिए यह स्थिति बनी है। फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल ऑर्गेनाइजेशन (फिको) के टेक्सटाइल डिवीजन हेड अजीत लाकड़ा भी इन सबके लिए नोटबंदी को मुख्य जिम्मेदार मानते हैं। फेडरेशन ऑफ पंजाब स्माल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के प्रधान मनीष जिंदल के अनुसार, ऑटो इंडस्ट्री में 40 फीसदी, साईकिल उद्योग में 30 फीसदी और होजरी में 25 से 30 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है। इस बार सारे त्यौहार बेरौनक रहेंगे।

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