शाम 6 बजे सर्दी बढ़ जाती है और किसान लिहाफ ओढ़ लेते हैं। खुले आसमान के नीचे ठंड में सिकुड़ते हुए किसानों के अंदर लावा पनप रहा है। मुजफ्फरनगर के भारतीय किसान यूनियन के नगर अध्यक्ष शाहिद आलम लिहाफ ओढ़े सड़क पर बैठे एक युवक की और इशारे करते हुए बताते हैं कि ये गौरव है, बाबा टिकैत का पोता। अंग्रेजी के स्कूल में पढ़ा है। कम्प्यूटर चलाता है। मगर यहां 5 दिन से बैठा है। यह हमसे ज्यादा पढ़ा-लिखा है,अच्छी तरह जानता है इस कानून का मतलब!
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गौरव टिकैत भारतीय किसान यूनियन के वर्तमान अध्यक्ष नरेश टिकैत के पुत्र हैं। नरेश टिकैत किसानों के खूंटागाड़ नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के बड़े बेटे हैं। नरेश कहते हैं, “जब मेरा जवान बेटा यहां पांच दिन से खुले आसमान में बैठा है और मैं इसका बाप होने के बावजूद यह सब देख रहा हूं तो आप समझ लें कि यह लड़ाई हम किसानों के लिए कितनी बड़ी है। अब सरकार को समझ लेना चाहिए या तो वो मान जाएं और इन तीनों बिल को वापस ले लें, नही तो हम मनवा लेंगे। अब झोटा, बुग्गी लेकर लाल किला पर जावेंगे और वहीं खूंटा गाड़ देंगे।”
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भारतीय किसान यूनियन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों का सबसे बड़ा संगठन है और दिल्ली में चल रहे पंजाब और हरियाणा के किसानों के आंदोलन में साथ खड़ा है। दिल्ली यूपी बोर्डर पर देर शाम मेरठ के आईजी प्रवीण कुमार त्रिपाठी पहुंचे और अपने पुरानी पहचान के दम पर भारतीय किसान यूनियन से रास्ता खोल देने की अपील की।
यूनियन के मंडलाध्यक्ष राजू अहलावत कहते हैं "अब बात बहुत बड़ी हो चुकी है। यह तो अस्तित्व का प्रश्न है। हमारे बच्चों की जिंदगी का सवाल है। मिट्टी हमारी मां होती है। हम जमीन की पूजा करते हैं। वो अडानी-अंबानी की नहीं होने देंगे हम 'हम अपना हुक्का अपनी मरोड़, जब जी मे आया तो दिया तोड़’ वाले लोग हैं। किसी और को अपने सर पर कैसे बैठा लेंगे। सरकार न्युनतम समर्थन मूल्य तय करे। यह तीनों बिल वापस ले। बस यही हमारी मांग है।”
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यहां मौजूद शामली के भूपिंदर मलिक भी इन कृषि कानूनों के विरोध पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं, “यदि यह कानून रद्द नहीं किया गया तो हम मर जाएंगे। हम अपनी समस्याओं पर बात करना और समझाना चाहते हैं, लेकिन यह सरकार अहंकारी है। वो कहते हैं, "हमने 18 नवंबर को एक बैठक की, जिसमें सरकार इस कानून को स्पष्ट करने में विफल रही। यह किसी भी तरह से हमारे लिए फायदेमंद नहीं है। यह हमारे खिलाफ है। यदि सरकार किसी भी उत्पाद जैसे विमान, जहाजों का सौदा करती है, तो यह बिचौलियों के माध्यम से भी किया जाता है। इसी तरह हमारे मामले में (बिचौलिये) हमारी फसलों को सुरक्षित रखने में हमारी मदद करते हैं, जब तक कि वह बिक नहीं जाती। क्या उन्हें कमाने का अधिकार नहीं है? उन्हें क्यों निशाना बनाया जा रहा है?”
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मुरादनगर के जितेंद्र कुमार कहते हैं कि “हम यहां लड़ने के लिए हैं और हम लड़ेंगे। हम जानते हैं कि हमें एक लंबी दौड़ लगानी पड़ सकती है, लेकिन यह हमें वापस जाने से रोक नहीं सकता है। हमारा आंदोलन आज शुरू नहीं हुआ है। यह पंजाब में शुरू होने के दो महीने बाद की स्थिति है। यह एक शुद्ध किसान आंदोलन है और किसी भी संगठन द्वारा प्रायोजित नहीं है। कुछ मीडिया चैनल नकली बताने की कोशिश कर रहे हैं। हम इससे हिम्मत नहीं हार रहे हैं।”
दौराला के 45 वर्षीय सौराज सिंह एक किसान हैं, लेकिन इन दिनों वह प्रदर्शनकारी किसानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रात में गश्त कर रहे हैं। वो बताते हैं, “मैं हर दिन-रात प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा के लिए गश्त करता हूं। मैं भी एक किसान हूं और अपना अच्छा भला समझता हूं।”
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सौराज कहते हैं किसानों को खेती में बहुत नुकसान हुआ है। लेकिन अब हम तब तक वापस नहीं जाएंगे, जब तक सरकार इस कानून को वापस नहीं करती। हम कम से कम 6 महीने के लिए तैयार हैं, क्योंकि हमने अपने जरूरी काम निपटा लिए हैं। वो कहते हैं, “सरकार हमारे इस आंदोलन को बुराड़ी मैदान में स्थानांतरित करने की योजना बनाकर विचलित करने की कोशिश कर रही है, जो एक धोखा है। हम राजमार्गों को अवरुद्ध करेंगे और हमारे अधिकारों के लिए लड़ेंगे।”
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भारतीय किसान यूनियन के नेता और पुरकाजी के चेयरमैन जहीर फारूकी भी यूपी बोर्डर पर डटे हैं। वो बताते हैं कि “किसान सिर्फ किसान है और उसकी कोई जाति-बिरादरी नहीं है। हम यहां 'किसानियत' के लिए आए हैं। किसानों की तादाद हर रोज बढ़ती जा रही है। आज 6 हजार से ज्यादा किसान थे। जबकि पहले हम सिर्फ 600 थे। पांच दिन में सर्दी बढ़ी है और हमारी तादाद दस गुना बढ़ गई है। अब यह सरकार भी समझ ले तो बेहतर है। सरकार को हर कीमत पर झुकना होगा। हम बाबा टिकैत के लोग हैं। हम धरने धर देते हैं।”
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