आखिरकार सरकार को घुटने टेकने पड़े, और अब तक किसानों के मामले पर लगभग चुप्पी साधे रहे प्रधानमंत्री मोदी को खुद ऐलान करना पड़ा कि उनकी सरकार उन तीनों कृषि कानूनों को वापस ले रही है, जिसे किसानों ने काले कानून की संज्ञा दी थी। लेकिन कुछ सवाल हैं जिन्हें समझना जरूरी है। क्या सरकार ने किसानों के लोकतांत्रिक तरीके से जारी आंदोलन को सम्मान दिया है? क्या सरकार बीते एक साल से दिल्ली की दहलीजों पर जारी किसान संघर्ष के दौरान उनकी तकलीफों से मर्माहत हुई है? क्या सुप्रीम कोर्ट द्वारा इन कानूनों पर रोक लगाने के कारण सरकार का मंतव्य पूरा नहीं होना वजह है? और क्या सरकार सच में किसानों को लेकर इतनी चिंतित और गंभीर है कि उसे आने वाली सर्दी में फिर से अन्नदाता को नहीं देखना था? लेकिन ये सब तो बीते करीब एक साल से जारी था। आखिर अब ऐसा क्या हुआ जो किसानों को लेकर अचानक से केंद्र की मोदी सरकार की नींद खुली है?
इसका जवाब किसानों के उस आह्वान में छिपा है जिसमें उन्होंने खुलकर ऐलान कर दिया था वे बीजेपी को वोट की चोट देने वाले हैं। किसानों ने साफ कर दिया था कि जो सरकार और पार्टी किसानों की परवाह नहीं करती, उसे चुनाव में सबक सिखाना है। इस कारण से बीजेपी की नींद उड़ गई। उड़ना भी थी क्योंकि अगले साल की शुरुआत में ही उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
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बहरहाल कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान से किसानों ने राहत की सांस ली है, लेकिन यह भी साफ कर दिया है कि अब तक कथनी और करनी में फर्क दिखाती रही सरकार की सिर्फ बातों पर विश्वास नहीं हो सकता। किसानों ने साफ कर दिया है कि जिस संसद से इन कानूनों को अलोकतांत्रिक तरीके से लाया गया था, जब तक उसी संसद में इन कानूनों की वापसी नहीं होती, तब तक किसान अपना मोर्चा नहीं छोड़ेंगे।
गाजीपुर बॉर्डर पर गाजे-बाजे, पटाखों के जश्न के साथ पकोड़े-जलेबी बांटने के साथ किसान अपनी जीत का जश्न तो मना रहे हैं, लेकिन सतर्क भी हैं। किसानों ने कहा है कि सरकार ने तो उन कानूनों को वापस लिया है जो किसानों ने मांगे ही नहीं थे। अब सिर्फ जुबानी जमा खर्च से काम नहीं चलने वाला, संसद से इस पर मुहर लगेगी तब तक हम यहीं जमे हैं। किसानों के बीच एक बैठे एक बुजुर्ग ने बात को इसके आगे भी बढ़ाया, उन्होंने कहा कि असली मुद्दा तो एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य का है। उन्होंने कहा कि इसकी मांग तो किसान बीते सात-आठ साल से कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आखिर इसका कानून बनाने में सरकार को दिक्कत क्या है। उन्होंने कहा कि एमएसपी की गांरटी वाला कानून जरूरी है।
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एक अन्य किसान ने कहा कि आंदोलन के दौरान 500 से ज्यादा किसानों की शहादत हुई है। उसके विषय में भी सरकार को बोलना होगा। उन्होंने कहा कि शहीद किसानों के परिवारों को मुआवजा दिया जाना चाहिए। वहीं एक अन्य किसान ने कहा कि हो सकता है सरकार का यह फैसला राजनीतिक हो और आने वाले विधानसभा चुनावों में वोट की फसल काटने के मकसद से लिया गया हो, लेकिन हमें राजनीति से मतलब नहीं है, हमें तो शहीद किसानों के परिवारों के साथ न्याय और एमएसपी की गारंटी चाहिए।
लेकिन सर्वाधिक मुखर जनकिसान पंचायत के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष समुंत यादव थे। उन्होंने साफ कहा कि, “सरकार का यह फैसला राजनीतिक है और विधानसभा चुनावों में फायदा उठाने के लिए किया गया है।” उन्होंने कहा कि किसानों पर जो मुकदमे दर्ज हुए हैं, उन्हें वापस लिया जाना चाहिए। सुमंत यादव ने साफ कहा, “जब एक मुख्यमंत्री अपने ही खिलाफ दर्ज मुकदमों को वापस ले सकता है तो किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लेने में क्या दिक्कत है।” उनका इशारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ था जिन्होंने सत्ता में आने के बाद खुद पर दर्ज कई मुकदमे वापस लिए हैं।
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फिलहाल किसान आंदोलन की सर्वोच्च संस्था संयुक्त किसान मोर्चा ने तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा का स्वागत किया है। किसान नेताओं बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ. दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हनान मौला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उग्राहां, शिव कुमार शर्मा 'काकाजी', युद्धवीर सिंह ने एक संयुक्त बयान में कहा है, "मोर्चा इस फैसले का स्वागत करता है और कानून की उचित प्रक्रिया के माध्यम से इस घोषणा के कार्यान्वयन का इंतजार करेगा।"
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गाजीपुर बॉर्डर का मोर्चा संभालने वाले किसान नेता राकेश टिकैत ने भी यही कहा है कि जब तक संसद से इन कानूनों को वापस नहीं लिया जाएगा, तब किसान घर नहीं लौटेंगे। यहां याद दिला दें कि जब 26 जनवरी की हिंसा के बाद एक समय आया था किसान आंदोलन ने दम तोड़ दिया है और सरकार ने सभी सीमाओं और खासतौर से गाजीपुर बॉर्डर पर भारी पुलिस और सशस्त्र बलों को तैनात कर दिया था, तो लगने लगा था कि किसानों की गिरफ्तारी होगी और आंदोलन ठंडा पड़ जाएगा। लेकिन उसी रात राकेश टिकैत के आंसुओं ने जादू कर दिया। रातोंरात हजारों किसान ट्रैक्टर – ट्रालियों में सवार होकर गाजीपुर बॉर्डर पहुंच गए थे और आंदोलन पुनर्जीवित हो उठा था।
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