हालात

पीएम मोदी के गुजरात में किसानों पर सूखे की मार, उनके हिस्से का पानी फैक्ट्रियों को दे रही बीजेपी सरकार

गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र के किसान जहां सूखे की मार से परेशान हैं, वहीं इन इलाकों में लगी फैक्ट्रियों को भरपूर पानी मिल रहा है। इंडियास्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक यहां फैक्ट्रियों को जमकर पानी मिल रहा है, लेकिन यहां के खेत बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

देश में रिकॉर्ड सुखे की मार झेल रहे गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र क्षेत्र में जहां किसान अपने खेतों के लिए बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं, वहीं इलाके की फैक्ट्रियों को पानी की कोई कमी नहीं है। अलबत्ता इन फैक्ट्रियों को दबा के पानी दिया जा रहा है। आरोप है कि इन इलाकों में किसानों के हिस्से का पानी फैक्ट्रियों को दिया जा रहा है। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी पर आधारित इंडियास्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक इन इलाकों में फैक्ट्रियों को तो दबा के पानी दिया जा रहा है, लेकिन किसानों को अपने खेतों के लिए बूंद-बूंद के लिए तरसना पड़ रहा है।

आरटीआई में राज्य सरकार ने माना है कि 2014 से 2018 के बीच मुंद्रा और कच्छ स्थित फैक्ट्रियों को नर्मदा परियोजना से 25 एमएलडी पानी दिया गया। जबकि गुजरात सरकार ने यहां फैक्टरियों और घेरलू उपयोग के लिए पानी की सीमा 11% (3,582.17 एमएलडी) तय कर रखी है। इसी दौरान अहमदाबाद और गांधीनगर शहर को भी 75 एमएलडी पीने का पानी मुहैया कराया गया। इससे साफ पता चलता है कि फैक्ट्रियों और शहरों को सीमा से अधिक पानी मुहैया कराकर खेतों की सिंचाई के पानी को हड़पा गया है। इतने पानी से करीब 22,502 हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हो सकती थी।

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वहीं नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी के मुताबिक साल 2013 और 2016 के बीच गैर कृषि योग्य पानी का उपयोग 11 प्रतिशत से अधिक किया गया, जबकि 2016 में 18 प्रतिशत से अधिक पानी का इस्तेमाल फैक्ट्रियों और घरेलू उपयोग के लिए किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक यहां किसानों का गुस्सा इस बात पर सबसे ज्यादा है कि उनके हिस्से का पानी फैक्टरियों को क्यों दिया जा रहा है।

दरअसल गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र में सूखे की मार सबसे ज्यादा है। रिकॉर्ड सूखे की मार झेल रहे ये इलाके बारिश के पानी पर ही निर्भर हैं। लेकिन यहां बारिश की हालत बेहद खराब है। कच्छ को साल 2011-12 और 2014-15 में सूखा प्रभावित घोषित किया जा चुका है। एक बार फिर पिछले साल 17 दिसंबर को कई महीने पानी की कमी झेलने के बाद इस क्षेत्र के 16 जिलों के 51 तालुका को सूखाग्रस्त घोषित किया गया। लेकिन हद तो तब हो गई जब साल 1901 के बाद सबसे अधिक सूखे की मार झेल रहे इस क्षेत्र को ‘सूखा प्रभावित’ घोषित करने में बारिश के बाद 3 महीने से ज्यादा का वक्त लग गया।

लगातार पानी की कमी झेल रहे कच्छ की बात करें तो यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन ही है। यहां के 72 फीसदी से अधिक लोग किसान ही हैं। इंडियास्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में यहां कि अधिकांश आबादी शहरों में पलायन कर चुकी है। यहां कई गांव ऐसे हैं जहां पर लोगों की संख्या गिनती भर रह गई है।

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