कृषि बिलों ने फिर यह बात सामने लाई है कि नरेंद्र मोदी सरकार किस तरह राज्य-केंद्र व्यवस्था को कमजोर कर रही है। राज्य सरकारों, विभिन्न राजनीतिक दलों, यहां तक कि किसान संगठनों से विचार-विमर्श किए बिना ही केंद्र सरकार ने खेती-किसानी से संबंधित पहले अध्यादेश जारी किए और बाद में संसद में विपक्ष का मुंह बंद कर कानून पास करवा लिए। लेकिन यह दांव उलटा पड़ गया लगता है। पंजाब और हरियाणा के किसानों के आंदोलन से केंद्र की सांस अटक गई है। इन दोनों राज्यों को ‘भारत का फूड बास्केट’ भी कहा जाता है।
पंजाब सरकार ने इन कानूनों को अपने राज्य में लागू नहीं करने से संबंधित कानून बनाने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा की है। हरियाणा में बीजेपी के नेतृत्व वाली मनोहर लाल खट्टर सरकार इस तरह का कदम तो नहीं उठा रही है, लेकिन सहयोगी दल- जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) में जिस तरह इस मसले पर उहापोह है, उससे बीजेपी नेतृत्व आशंकित है। जेजेपी विधायकों को किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। हरियाणा की भारतीय किसान यूनियन ने इस बार दशहरे में प्रधानमंत्री मोदी का पुतला फूंकने की घोषणा की है।
Published: undefined
पंजाब और हरियाणा खाद्यान्न के केंद्रीय पूल के सबसे बड़े भागीदार हैं। इन दोनों राज्यों का हिस्सा करीब 70 प्रतिशत है। केंद्र सरकार विभिन्न कल्याण योजनाओं में इस खाद्यान्न का उपयोग करती है। इतना सब होने के बावजूद यह बात जरूर है कि सरकार के पास इस खाद्यान्न के रखरखाव के इंतजाम नहीं हैं। पंजाब में हर साल 220 से 250 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न की पैदावार होती है, लेकिन यहां 150 लाख मीट्रिक टन भंडारण की क्षमता ही है। करीब 111 मीट्रिक टन अनाज लगभग खुले में ही रखे जाते हैं।
इसी का फायदा उठाकर अडानी और रिलायंस ने भंडारण के लिए यहां निवेश किया हुआ है। अडानी समूह के अडानी एग्रि लॉजिस्टिक्स (एएएल) ने पंजाब के मोगा और हरियाणा के कैथल में 2-2 लाख मीट्रिक टन की क्षमता वाले ताप नियंत्रित भंडार (साइलो) का निर्माण किया हुआ है। इसका भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) से करार है। मोगा के पास डगरू गांव वाले मेन डिपो का चेन्नई, कोयम्बटूर और बेंगलुरु के फील्ड डिपो तक और कैथल के डिपो का नवी मुंबई और हुगली के फील्ड डिपो तक कार्यक्षेत्र है। मेन डिपो में रखे जाने वाले गेहूं की सप्लाई इन फील्ड डिपो तक होती है और वहां से आगे वितरण किया जाता है।
Published: undefined
इनकी सफलता के मद्देनजर ही अडानी की एएएल ने मोगा के डिपो के विस्तार की तो योजना बनाई ही है, इसने पंजाब के मनसा, नकोदर और बरनाला तथा हरियाणा के पानीपत में भी हर जगह करीब 50,000 मीट्रिक टन क्षमता वाले भंडार बनाने की पेशकश की है। लेकिन नए कृषि कानूनों की वजह से किसान इन सबको बंद करने या सरकार द्वारा इनके अधिग्रहण की मांग कर रहे हैं।
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) नेता बालौर सिंह का कहना है कि निजी खरीद एजेंसी का बहिष्कार हमारा मुख्य लक्ष्य है, क्योंकि इस तरह की व्यवस्था में हमें अपनी उपज को सस्ती दरों पर बेचना होगा, जबकि ये एजेंसियां उनका भंडारण कर मनमानी कीमतों पर इन्हें बेचेंगी। मोगा में भाकियू के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरी का कहना है कि यह सब कुछ सरकार और बड़े कॉरपोरेट घरानों के बीच गठबंधन बन जाने से हो रहा है- ये कॉरपोरेट कुछ खास दलों को भारी चंदा देते हैं और बदले में खेती-किसानी पर कब्जा करने की जुगत में हैं। इसी वजह से दोनों ही राज्यों में किसान निर्णायक लड़ाई लड़ने के मूड में है।
Published: undefined
पंजाब के किसानों ने बरनाला, लुधियाना और मुल्लनपुर में एक तरह से रिलायंस के पेट्रोल पंपों पर कब्जा कर लिया है। वहीं लुधियाना में रिलायंस के एक स्टोर को बंद करा दिया है। उधर, हरियाणा में किसानों को समझाने के लिए निकाली गई बीजेपी की ट्रैक्टर यात्रा का काले झंडों से स्वागत हुआ। किसानों ने 5 नवंबर को पूरे देश में हाईवे जाम करने का फैसला किया है। उससे पहले किसान दशहरे पर प्रधानमंत्री के पुतले जलाने वाले हैं।
इस मामले पर भाकियू, हरियाणा के अध्यक्ष गुरुनाम सिंह चढ़ूनी पर केस दर्ज करने का फैसला भी सरकार के लिए उल्टा पड़ता दिख रहा है। चढ़ूनी के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के आरोप में यह मामला दर्ज किया गया है। कुरुक्षेत्र के पीपली में भी प्रदर्शन को लेकर सरकार ने किसानों पर 20-22 मुकदमे दर्ज किए हैं। भाकियू का कहना है कि जितनी मर्जी केस दर्ज कर लो, दशहरे वाले दिन पीएम के पुतले जलाने से हमें कोई रोक नहीं सकता।
Published: undefined
इसके साथ ही कुरुक्षेत्र में देश के कई राज्यों से जुटे 24 किसान संगठनों ने 5 नवंबर को पूरे देश में हाईवे जाम करने का भी फैसला किया है। पहले यह 3 नवंबर को होना था, लेकिन विधानसभा उपचुनाव के लिए मतदान की तारीख होने के चलते किसान संगठनों ने इसे 5 नवंबर कर दिया।
हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा का कहना है कि मंडियों में फसल की सरकारी खरीद नहीं हो रही है और फसल की न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी कम दामों में खरीद हो रही है। जिस पीआर धान का एमएसपी 1,888 और 1,868 रुपये प्रति क्विंटल है, किसान उसे 1,100 से 1,200 रुपये प्रति क्विंटल में बेचने को मजबूर हैं। वहीं, जिस कपास का एमएसपी 5,825 रुपये निर्धारित किया हुआ है, उस पर किसानों को 1,000 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान उठाना पड़ रहा है। कपास किसानों को 4,70 से 4,800 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बेचनी पड़ रही है। ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन में भी जमकर फर्जीवाड़ा हो रहा है। किसानों की फसल में नमी बताकर खरीद करने से इनकार किया जा रहा है।
(नवजीवन के लिए बिपिन भारद्वाज और धीरेंद्र अवस्थी की रिपोर्ट)
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined