महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके के 58 फीसदी किसान मानसिक रूप से बीमार हैं। यह चौंकाने वाला खुलासा इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंस (आईआईपीएस) नामक संस्था की ओर से कराए गए एक सर्वे की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट में यह स्पष्ट है कि इन किसानों और उनके परिवारों के बीमार होने के पीछे जो सबसे बड़ा कारण है वो है खेती के लिए कर्ज लेना। कर्ज के बोझ तले दबे ये किसान और उनके परिवार चिंता और अनिद्रा के शिकार हैं। संस्था की प्रियंका बोंबले ने उन 300 किसान परिवारों से बातचीत के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है जिस परिवार के किसान ने आतमहत्या की थी।
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किसानों और किसान परिवारों के बीमार होने के बारे में तत्कालीन बीजेपी सरकार को भी पता था। किसान आत्महत्या को रोकने के लिए कई सामाजिक संस्थाओं की ओर से यह मांग लगातार हो रही थी कि किसानों को मानसिक रूप से मजबूत किया जाए। इसलिए तत्कालीन देवेंद्र फडणवीस सरकार ने किसानों की काउंसिलिंग के लिए प्रेरणा प्रकल्प की शुरुआत वर्ष 2015 में की थी। लेकिन यह प्रकल्प सफल नहीं हो पाया। क्योंकि सरकार को मनोचिकित्सक ही नहीं मिले। मनोचिकित्सकों के कई पद अब भी रिक्त हैं। अब उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र विकास आघाड़ी सरकार ने सबसे पहले राज्य के कर्जदार किसानों की सुध ली और दो लाख तक कर्ज माफ करने की घोषणा के साथ राहत देने का काम किया है। किसानों के लिए महात्मा ज्योतिबा फुले शेतकरी कर्ज मुक्ति योजना इसी साल मार्च में शुरू की जाएगी।
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तत्कालीन फडणवीस सरकार के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2015 से 2018 तक 12021 किसानों ने आत्महत्या की। वहीं वर्ष 2019 में जनवरी से अप्रैल के बीच 808 किसानों ने आत्महत्या की थी। किसानों की आत्महत्या की घटनाएं सबसे ज्यादा विदर्भ से आई, जबकि फडणवीस भी विदर्भ यानी नागपुर के ही हैं। सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर इन इलाकों में किसानों की मानसिक स्थिति को लेकर चर्चा होती रही है। लेकिन इस दिशा में बीजेपी सरकार की ओर से ठोस कदम नहीं उठाए गए थे। अब आईआईपीएस संस्था की रिपोर्ट से भी यह संकेत मिलता है कि राज्य का स्वास्थ्य विभाग इन किसानों और किसान परिवारों के प्रति उदासीन रहा है। राज्य के मानिसक स्वास्थ्य विभाग के सहायक निदेशक डाक्टर दुर्योधन चव्हाण मानते हैं कि ग्रामीण इलाकों में मनोचिकित्सकों और काउंसिलिंग करने वालों की कमी है।
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आईआईपीएस की प्रियंका भी किसानों की आत्महत्या की वजह तलाशने के लिए 300 किसानों के पास गईं। क्योंकि, सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य विभाग की ओर से भी ग्रामीण इलाकों में मानसिक समस्या को नजरअंदाज किया जाता रहा है और खासकर किसान समुदाय भी उपेक्षित रहता है। यही वजह है कि उन्होंने विदर्भ का यवतमाल जिला चुना। यह राज्य का ऐसा जिला है जहां सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या करते हैं। प्रियंका और उनकी टीम ने उन किसानों से बात की जो 30 हजार, 31 हजार, 60 हजार या उससे ज्यादा के कर्ज में डूबे हैं। कर्ज की वजह से 58 फीसदी किसान मानसिक रूप से बीमार पाए गए, जिनका मनोचिकित्सकों से इलाज कराना जरूरी माना जा रहा है। मनोचिकित्सक डाक्टर सागर मुंदरा भी मानते हैं कि मानसिक तनाव की वजह से कई बार आत्महत्या की प्रवृति बढ़ती है। इसलिए ऐसे लोगों की काउंसिलिंग जरूरी है।
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तत्कालीन बीजेपी सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2015 से प्रेरणा प्रकल्प के तहत राज्य के 14 जिलों को शामिल किया गया जिसमें मराठवाडा के औरंगाबाद, बीड, जालना, हिंगोली, नांदेड, लातुर, उस्मानाबाद, परभणी और विदर्भ के अकोला, अमरावती, बुलढाणा, वाशीम, यवतमाल और वर्धा जिले हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं कि तीन सालों में 90 हजार किसानों की काउंसिलिंग की गई। लेकिन आईआईपीएस की रिपोर्ट यह संकेत देती है कि जो भी कर्जदार किसान हैं उन्हें अब भी काउंसिलिंग की जरूरत है। इस दिशा में भी महाराष्ट्र विकास आघाड़ी सरकार काम करने वाली है। इसके साथ ही उद्धव ठाकरे सरकार यह कोशिश में है कि राज्य के सारे कर्जदार किसानों को कर्ज से मुक्त कर दिया जाए। यह कैसे हो उस पर राज्य सरकार मंथन कर रही है। हालांकि, राज्य सरकार ने किसानों की समस्या को दूर करने के लिए केंद्र से मदद भी मांगी है। लेकिन केंद्र महाराष्ट्र के कर्जदार किसानों के प्रति उदासीन है। केंद्र के उदासीन रवैए के बावजूद उद्धव ठाकरे सरकार ने फैसला लिया है कि 1 अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2019 के दौरान लिए गए किसानों के दो लाख तक के कर्ज को जिसे 30 सितंबर 2019 तक चुकाया नहीं गया है माफ किया जाएगा। दो लाख से अधिक कर्ज वाले को इस योजना के दायरे से फिलहाल बाहर रखा गया है।
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