जलवायु वैज्ञानिकों ने सोमवार को कहा कि कई राज्यों में तबाही मचाने वाला अत्यधिक भारी बारिश का दौर जारी रहने का कारण है तीन मौसम प्रणालियों का संरेखण (अलाएनमेंट)। यानी तीन मौसम प्रणालियों के एक सीध में चलना। मौसम विज्ञानी और जलवायु वैज्ञानिक दोनों ही चरम मौसम की घटनाओं में भारी वृद्धि के लिए ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते स्तर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
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पिछले कई दिनों से लगातार बारिश जारी रहने के कारण पूरे हिमाचल प्रदेश में बाढ़ के हालात हैं और कई जगह भूस्खलन हुआ है, जबकि दिल्ली में पिछले 40 वर्षों में सबसे अधिक बारिश दर्ज की गई है। यहां तक कि पंजाब के ज्यादातर जिलों के ज्यादातर इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति देखी जा रही है।
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मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन, स्काईमेट वेदर के उपाध्यक्ष महेश पलावत ने कहा, "अत्यधिक भारी बारिश का चल रहा दौर तीन मौसम प्रणालियों के संरेखण, पश्चिमी हिमालय पर पश्चिमी विक्षोभ, उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों पर चक्रवाती परिसंचरण और भारत-गंगा के मैदानी इलाकों में चलने वाली मानसून की धुरी के कारण है।"
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यह संरेखण पहली बार नहीं हो रहा है और मानसून के दौरान यह सामान्य पैटर्न है। हालांंकि, ग्लोबल वार्मिंग के कारण मानसून पैटर्न में बदलाव से फर्क पड़ा है। पलावत ने बताया, “भूमि और समुद्र दोनों के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे हवा में लंबे समय तक नमी बनाए रखने की क्षमता बढ़ गई है। इस प्रकार, भारत में बढ़ती चरम मौसम की घटनाओं में जलवायु परिवर्तन की भूमिका हर गुजरते साल के साथ मजबूत होती जा रही है।”
कई रिपोर्ट और शोध पहले ही भारतीय मानसून पैटर्न पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को स्थापित कर चुके हैं। हालाकि, यह वायुमंडलीय के साथ-साथ समुद्री घटनाओं से भी छेड़छाड़ कर रहा है, जिसने ग्लोबल वार्मिंग के निहितार्थों को और भी कई गुना बढ़ा दिया है।
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