देश में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान काफी उपभोक्ताओं को कई आवश्यक वस्तुओं और किराने के सामान के लिए अधिक भुगतान करना पड़ा, क्योंकि व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं ने छूट कम कर दी और साथ ही खुलकर सामान उनके निर्धारित मूल्य (एमआरपी) से अधिक दाम पर बेची गईं।
यह तथ्य लोकलसर्कल्स द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में उजागर हुआ है। यह सर्वेक्षण राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान और बाद में उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी गई जरूरी वस्तुओं को लेकर उनके अनुभवों को बयां करता है। सर्वेक्षण में भारत के 210 जिलों से 16,500 से अधिक उपभोक्ताओं ने अपने अनुभव साझा किए।
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सर्वे में कई उपभोक्ताओं ने कहा कि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन 1.0 से 4.0 के दौरान, उन्होंने बंद से पहले की तुलना में कई आवश्यक और किराने के उत्पादों के लिए अधिक भुगतान किया। इसका कारण निर्माताओं द्वारा कीमतों में वृद्धि करना नहीं रहा, बल्कि व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं ने छूट कम कर दी और एमआरपी से अधिक दाम पर भी सामान बेचा गया।
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सर्वेक्षण में यह सामने आया कि 72 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने लॉकडाउन 1.0 से लेकर 4.0 के दौरान पैकेज्ड फूड और किराने के सामान के लिए अधिक भुगतान किया। वस्तुओं पर कम छूट और एमआरपी से अधिक दाम वसूलना इसके प्रमुख कारण रहे। सर्वे में उपभोक्ताओं से पूछा गया कि 22 मार्च से पैकेट बंद खाद्य पदार्थ और किराने की वस्तुओं की खरीदारी को लेकर मूल्य के संबंध में उनके क्या अनुभव हैं।
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इस सवाल पर 25 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने कहा कि उन्होंने समान वस्तुओं के लिए राष्ट्रव्यापी बंदी से पहले के दाम पर ही खरीदारी की है, जबकि 49 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने बंद से पहले की तुलना में उसी वस्तु का अधिक दाम चुकाना पड़ा, क्योंकि अब पहले की अपेक्षा छूट कम थी। इसके अलावा 23 प्रतिशत लोगों ने कहा कि बंद से पहले की तुलना में समान वस्तुओं के लिए अधिक भुगतान करना पड़ा, क्योंकि उनसे एमआरपी से कई गुना दाम वसूले गए।
सर्वे में सामने आया कि अनलॉक 1.0 के माध्यम से बंद में मिली कुछ राहत के बावजूद, अभी भी 28 प्रतिशत उपभोक्ता अपने दरवाजे पर ही पैकिंग का खाना और किराने का सामान ले रहे हैं।बता दें कि ऑनलाइन या खुदरा स्टोर पर एमआरपी से अधिक दाम वसूलना कानूनी मेट्रोलॉजी अधिनियम का उल्लंघन है।
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