दिल्ली में कोरोना संक्रमण के मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। बीते 24 घंटों के दौरान दिल्ली में 7,546 नए मामले सामने आए और 98 लोगों की मौत हुई। अभी दो दिन पहले ही दिल्ली में एक दिन में मौतों का रिकॉर्ड टूटा था जब एक दिन में 131 लोगों की जान गई थी। दिल्ली में अब तक कोरोना संक्रमण के 5.03 मामले आ चुके हैं। महामारी विशेषज्ञों का कहना है कि इस सबके बावजूद दिल्ली सरकार एक तरह से हाथ पर हाथ धरे बैठी है।
दिल्ली सरकार ने मंगलवार को ऐलान किया कि वह कुछ खास बाजारों को बंद कर सकती है। लेकिन अगले ही दिन डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री ने इस योजना का खंडन किया। साथ ही उन्होंने दुकानदारों से अपील की कि कोरोना संक्रमण रोकने में मदद करें।
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अभी कल ही यानी गुरुवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया कि मास्क न पहनने पर अब चार गुना जुर्माना लगेगा। पहले यह 500 रुपए था जिसे बढ़ाकर अब 2000 रुपए कर दिया गया है। लेकिन इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च में महामारी रोगों को हेड डॉ ललित कांत इस फैसले के पीछे के तर्कों पर सवाल उठाते हैं।
उनका कहना है कि, “आखिर इसके पीछे क्या सोच है कि अब मास्क न पहनने पर 500 के बजाए 2000 रुपए जुर्माना लगेगा? इससे भी लोग नहीं डरेंगे। आखिर इसे लागू कैसे करेंगे। यह सब आंख में धूल झोंकने वाले नुस्खे हैं। आज हर कोई अस्पताल में बेड और वेंटिलेटर की बातें कर रहा है, लेकिन सवाल है कि आखिर शुरु में ही संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए कदम क्यों नहीं उठाए गए।”
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विशेषज्ञों का कहना है कि संक्रमण को मामलों में तेजी कम से कम 4 सप्ताह तक जारी रहने की आशंका है, क्योंकि ये वे लोग हैं जो एक दूसरे के संपर्क में रहे हैं, और अब दूसरों को संक्रमित कर रहे हैं। डॉ कांत ने बताया कि, “मौजूदा ट्रेंड अगले एक माह तक जारी रह सकता है। अभी जो जरूरी है वह यह कि लोगों के मूवमेंट पर रोक लगाई जाए और संक्रमण का प्रसार रोका जाए। यह तभी हो सकता है जब संक्रमित लोगों और स्वस्थ लोगों के बीच कोई बैरियर लगाया जाए।”
लेकिन सरकार को लगता है कि लोगों को एक बार फिर लॉकडाउन में लाना सही नहीं होगा, पर डॉ कांत जोर देते हैं कि कम समय के लिए लॉकडाउन के अलावा दूसरा उपाय नहीं है। उन्होंने कहा, “दिल्ली सरकार को दूसरे देशों और शहरों की गलतियों से सबक लेना चाहिए, जिन्होंने वक्त से पहले लॉकडाउन खत्म कर दिया। और, अब वे फिर से लॉकडाउन में जा रहे हैं। यूरोप की ही मिसाल लें तो उन्होंने काफी पहले लॉकडाउन खोल दिया, लोग छुट्टियां मनाने निकल पड़े और वापस अपने देश संक्रमण लेकर आए।”
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जहां संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है, वहीं संसाधनों की मांग में भी बढ़ोत्तरी हो रही है। जॉर्ज इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ के सीनियर रिसर्च फेलो डॉ ओमेन जॉन कहते हैं, “संसाधनों में बहुत मिसमैच है। बेड और वेंटिलेटर की संख्या एक समान नहीं है। ऐसे लोग जिन्हें तुरंत उपचार की जरूरत है वे इंतजार करते रह जाते हैं और इससे उनकी हालत बिगड़ती है।”
दरअसल सरकार को चाहिए कि वह शुरुआती लक्षणों में ही संक्रमित लोगों की पहचान करे ताकि उन्हें बचाया जा सके। डॉ जॉन बताते हैं, “इसके लिए बहुआयामी नजरिए की जरूरत है। पूरे सिस्टम की क्षमता और उसका संस्थागत इस्तेमाल न होने से मौतें की संख्या में इजाफा होता है। हमें ऐसी प्रक्रिया विकसित करनी होगी ताकि इस इस असमानता को खत्म किया जा सके। लेकिन यह सब कई सप्ताह पहले करना चाहिए था।”
ऐसे लोग जिन्हें तुरंत उपचार की जरूरत है उन्हें बेड के लिए इंतजार नहीं करना पड़े, ऐसी व्यवस्था बनानी होगी। डॉ जॉन के मुताबिक, “एक तरीका तो यह हो सकता है कि एक केंद्रीकृत सिस्टम बनाया जाए, जिससे मोबाईल टीम द्वारा किए गए क्लीनिकल असेसमेंट के आधार पर लोगों को अस्पताल में दाखिल कराया जा सके। इसके बाद केंद्रीयकृत सिस्टम से मरीज को उस अस्पताल में भेजा जे जहां बेड उपलब्ध है। अस्पताल के बेड पर नियंत्रण का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए।”
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जॉन आगे कहते हैं कि तीसरी और सबसे अहम बात यह है कि लोग अभी तक कोरोना को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। ऐसा तब है जबकि बड़ी तादाद में लोग बीमार हो रहे हैं और मौतें भी हो रही हैं। वे कहते हैं, “लोगों के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं है, लोग भारी तादाद में घरों से निकल रहे हैं और कोई एहतियात नहीं बरत रहे हैं।”
डॉ जॉन कहते हैं कि सरकार को इस सिलसिले में व्यवहार का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों की मदद लेनी चाहिए ताकि समझा जा सके कि आखिर लोगों के दिमाग में कोरोना को लेकर चल क्या रहा है। इसके बाद लोगों को व्यवहार में बदलाव के लिए समझाया जा सकता है। वे कहते हैं कि कोरोना के शुरुआती लक्षणों को लोग बदलते मौसम का कारण मानकर अनदेखा कर रहे हैं, ऐसे में वे खुद के साथ ही कई लोगों को संक्रमित कर रहे हैं। असल में लोगों को डर है कि कहीं उन पर संक्रमित होने का ठप्पा न लग जाए।
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डॉ कांत की राय है कि, “अलग-अलग सेवाओं के समय में बदलाव करना होगा। मसलन बसों को पूरी क्षमता से चलाना समझदारी नहीं है। सरकार ने अब शादियों में मेहमानों की संख्या कम की है, जबकि यह कदम पहले ही उठाना चाहिए था। सरकार को तय करना है कि उसके लिए लोगों की जान ज्यादा अहम है या राजस्व कमाना।”
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