केंद्र के विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन में युवाओं का भी बहुत बड़ा योगदान है। बॉर्डर पर सुरक्षा व्यवस्था देखना हो या लंगरों में सेवा करना, इन सभी जगहों पर युवाओं के अनुभव की जरूरत रही है। लेकिन युवाओं का प्रयोग अब गांव में ज्यादा किया जा रहा है। लिहाजा बॉर्डर से युवाओं को घर या गांव भेजा जा रहा है, कुछ वक्त तक दूसरी जगह रहने के बाद उन्हें फिर बुलाया जा रहा है।
जानकारी के अनुसार लगातार बॉर्डर पर बैठे रहने से युवाओं की मानसिक स्थिति पर असर हो रहा था। प्रदर्शनकारी किसानों की मानें तो लंबे समय से ज्यादा कुछ न करने से युवाओं में गुस्सा उनके चेहरे पर दिखने लगा, जिसके कारण वह अपने नेताओं से बार बार कहते थे कि हम कुछ करते क्यों नहीं, कुछ करना चाहिए। बॉर्डर पर बैठे किसान नेताओं के अनुसार युवाओं की ऊर्जा को सही जगह इस्तेमाल करने के लिए हमने उन्हें बॉर्डर से दूसरी जगहों पर भेजा है। ताकि उनके दिमाग की स्थिति सामान्य रहे।
बॉर्डर पर बैठे किसान नेता जगतार सिंह बाजवा ने कहा, "युवा लंबे समय से इस आंदोलन में शामिल हैं। अब हम प्रयास कर रहे हैं कि युवाओं का प्रयोग गांव में किया जाए। गांव में हो रही महापंचायतों में युवाओं का प्रयोग हो, जिन लोगों को आंदोलन के बारे में जानकारी नहीं है, उन तक युवाओं के जरिए बातें पहुंचाई जाए, वहीं महापंचायतों की तैयारियों में भी युवा लगे हुए हैं।"
उन्होंने बताया, "युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक जगह पर इस्तेमाल कर रहे हैं, बहुत बार ऐसा हुआ है, जब युवा इकट्ठा होकर हमसे कहते थे कि हम सोते हैं, खाना खाते हैं, भाषण सुनते हैं और फिर सो जाते हैं। तो हमें कुछ करना चाहिए। कई बार आपस में ही युवा उलझ जाते थे, जिसकी वजह से हम लोगों ने उन्हें गांव में काम पर लगाया है, हालांकि बॉर्डर पर युवाओं की हमेशा जरूरत है।"
बता दें कि केंद्र के विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले साल 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों और सरकार के बीच अब तक 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल सका है। दूसरी ओर फिर से बातचीत शुरू हो इसके लिए किसान अब भी तैयार हैं, लेकिन सरकार की ओर से केवल बयानों के अलावा अब तक कोई अगला कदम नहीं उठाया गया है।
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