बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि अब किसानों का सारा हासिल जमा करेगी और उसे एक ऐप में इकट्ठा करेगी। स्मार्ट फार्मिंग के नाम पर केंद्र की मोदी सरकार ने पतंजलि को ऐसा करार किया है जिससे रामदेव की कंपनी को किसानों की जनसांख्यिकीय जानकारिया (डेमोग्राफिक डिटेल्स), उनकी जमीनों और उसमें उगने वाली फसलों, जमीनों की गुणवत्ता आदि के अधिकार मिल गए हैं। नेशनल हेराल्ड को मिले दस्तावेजों से सिद्ध होता है कि केंद्र के कृषि मंत्रालय और पतंजलि के बीच इस समझौते पर पहली जून, 2021 को हस्ताक्षर हुए हैं।
Published: 30 Jun 2021, 11:19 AM IST
बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि ऑर्गेनिक रिसर्च इंस्टीट्यूट प्राइवेट लिमिटेड (पोरी) और केंद्र सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के बीच इस समौझते को किसानों के लिए एक बड़ा और बेहतर इकोसिस्टम बनाने की पहल के तौर पर बताया गया है।
एमओयू पर अतिरिक्त कृषि सचिव विवेक अग्रवाल और पतंजिल की कंपनी पोरी के हेड श्रीनिवास मादभूषि के दस्तखत हैं। यह समझौता 23 मार्च 2023 तक वैध रहेगा और इसके तहत केंद्र सरकार और पतंजलि दोनों को किसानों की सारी सूचनाएं गोपनीय आधार पर साझा करने का अधिकार होगा।
Published: 30 Jun 2021, 11:19 AM IST
सरकार के प्रेस सूचना ब्यूरो पहली जून को इस समझौते के मकसद को रेखांकित करते हुए कहा था कि, “किसानों के एकीकृत डेटाबेस से किसानों को दिए जाने वाले लाभ और सहायता उपलब्ध कराने में आसानी होगी और उन्हें केंद्र और राज्य सरकारों की विभिन्न योजनाओं का लाभ मिल सकेगा। इसके लिए किसानों की सारी सूचनाएं एक ही जगह जमा करना जरूरी है।” यहां गौरतलब है कि बाबा रामदेव की कंपनी को डेटा कलेक्शन और डेटा प्रोसेसिंग और एनालिसिस का कोई अनुभव नहीं है।
किसान आंदोलन से जुड़े एक डेटा एक्टिविस्ट ने इस समझौते पर सवाल उठाते हुए कहा है कि, “रामदेव की कंपनी को डेटा टेक्नालॉजी में जीरो अनुभव है, फिर भी उसे यह काम सौंपा गया है।” इस एक्टिविस्ट का कहना है पतंजलि को यह काम सिर्फ उसके राजनीतिक संपर्कों के आधार पर मिला है और इससे मोदी सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान का भी प्रचार होता है।
Published: 30 Jun 2021, 11:19 AM IST
गौर करने वाली बात है कि कृषि मंत्रालय अभी तक करीब 5 करोड़ किसानों का डेटा पहले ही तैयार कर चुका है। सरकार के पास पीएम किसान, सोआइल हेल्थ कार्ड और पीएम फसल बीमा योजना के तहत पहले से किसानों का डेटा है।
एक्टिविस्ट का कहना है कि, “सरकार ने माइक्रोसॉफ्ट और अमेजन जैसी कंपनियों के साथ भी समझौता किया है, लेकिन अन्य कारणों से इन कंपनियों के साथ डेटा शेयरिंग पर प्रश्नचिह्न लगते रहे हैं, फिर डेटा तकनीक के क्षेत्र में इन कंपनियों के अनुभव पर कोई उंगली नहीं उठाई जा सकती। लेकन पतंजलि के पास तो इस क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं है, ऐसे में उसे यह काम सौंपा जाना संदेह पैदा करता है।
Published: 30 Jun 2021, 11:19 AM IST
इस समझौते के सिलसिले में नेशनल हेराल्ड ने पोरी को कई मेल भेजे और उपलब्ध नंबरों पर फोन किए, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। इस बारे में बाबा रामदेव के प्रवक्ता एस के तिजारावाला से भी संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन उन्होंने भी कोई जवाब नहीं दिया।
इस समझौते पर आशा (अलाएंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर) की कविता कुरुगांति ने भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि, “सवाल यह नहीं है कि सरकार के पास किसानों का डेटा है और उनके लिए इकोसिस्टम बनाया जा रहा है, सवाल है कि आखिर किसानों की जरूरत क्या है और इसके लिए क्या किसानों की सहमति ली गई है।” कविता ने इस समझौते के सिलसिले में सरकार के सामने एक विस्तृत प्रेजेंटेशन भी भेजा है। कविता का कहना है कि, “आखिर पतंजिल आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस के बारे में जानती ही क्या है?”
Published: 30 Jun 2021, 11:19 AM IST
कविता ने इस समझौते को रद्द करने की मांग की है। उनका कहना है कि, “पूरी प्रक्रिया ही गलत है। जब भी सरकार ऐसा कुछ करती है तो तो कुछ वैज्ञानिक टूल इस्तेमाल करने लगती है, और उसे लगता है कि किसानों को इसकी जरूरत है। लेकिन यहां सवाल किसानों की अपनी जरूरत का है जिसके बारे में सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं हुई है।”
Published: 30 Jun 2021, 11:19 AM IST
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Published: 30 Jun 2021, 11:19 AM IST