मुंबई रेलवे की हार्बर लाइन में मानखुर्द से लेकर मस्जिद स्टेशन तक अगर रात में लोकल ट्रेन से सफर करें, तो रेलवे ट्रैक के किनारे जहां थोड़ी-बहुत छुपने की जगह होती है, वहां आपको कई लोग मस्त दिखेंगे। मस्त, मतलब पहली नजर में ही लगेगा कि उन्होंने नशा किया हुआ है। पर वे शराब में टल्ली नहीं होते। शराब की बिक्री मुंबई में जिस तरह होती है, वह देश के अन्य हिस्सों से थोड़ा अलहदा है। यहां ठेकों के बगल से घरेलू महिलाएं भी बेखौफ गुजरती हैं।
लेकिन, हम जिन इलाकों का दृश्य आपको दिखा रहे हैं, वहां दिहाड़ी मजदूर, सफाई कर्मचारी, भिखारी, गर्दुले-जैसे गरीब नशेड़ी मिलते हैं। गर्दुले, मतलब वे लोग जो चरस, गांजा, अफीम वगैरह न मिलने पर इसे हासिल करने के लिए छीना-झपटी, लूटपाट तक करते हैं। इनमें से ज्यादा के कोई सगे-संबंधी, नाते-रिश्तेदार नहीं होते। ये नशेड़ी खुद को कपड़े से ढंककर धुआं लेते दिखते हैं।
वैसे तो छापे वगैरह पड़ने पर कुछ दिनों के लिए ये ठिकाना बदलते रहे हैं लेकिन कुर्ला, बांद्रा, शिवड़ी, रे रोड, सैंडहर्स्ट रोड और मस्जिद स्टेशन इनके प्रिय अड्डे रहे हैं। इन स्टेशनों के पास कुछ पुरानी और खंडहर वाली मिलें हैं और जंगल-झाड़ भी। यहां इन्हें छुपने या आम नजरों से दूर रहने में आसानी रहती है। कोरोना लॉकडाउन के दौरान इन्हें भी ‘काफी दिक्कतें’ हुईं क्योंकि इन्हें भी ‘चीजें’ मिलने में परेशानी हुई। लेकिन तब उन्हें वहां भी ये चीजें मिल जाती थीं जिन इलाकों के फुटपाथ पर ये रातें गुजारते रहे हैं।
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बांद्रा (पूर्व) में झोपड़ पट्टी और हार्बर लाइन है। उसी जगह से मुंबई के लिए पीने के पानी की सप्लाई वाली मोटी-मोटी पाइपें भी गुजरती हैं। नशेड़ियों के लिए यह सबसे सुरक्षित जगह मानी जाती है। यहां रात में पुलिस के लिए जाना आसान नहीं है। उससे सटे ही बड़ा-सा नाला है जिसका पानी समंदर में जाता है। रात में पुलिस गश्त नहीं लगाती है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के लोग भी वहां जाने से बचते हैं। कुछ एनजीओ इस इलाके में सक्रिय हैं। इनकी लत छुड़ाने के लिए वे मुंबई पुलिस की मदद भी लेते हैं। पर वे सब दिन में ही जा पाते हैं। आरपीएफ और जीआरपी के लिए इन्हें पकड़ना खतरनाक ही होता है क्योंकि पकड़े जाने पर ये पुलिस पर ब्लेड से हमला कर देते हैं और भागने में भी सफल हो जाते हैं।
शिवड़ी, रे रोड और सैंडहर्स्ट रोड इलाकों में गोदी है और मुंबई से बाहर से आने वाली ट्रकें भी दिन-रात खड़ी रहती हैं। इसलिए इन इलाकों में स्टेशन के बाहर ड्रग्स का चलता- फिरता कारोबार पनपा है। कुछ नाइजीरियन, कीनियाई और अफ्रीकी नागरिक नशे की पुड़िया टैक्सी वाले नशेड़ियों को पहुंचाने का काम करते रहे हैं। मुंबई पुलिस की एंटी नारकोटिक्स सेल (एएनसी) की टीमें जब-तब इन्हें घात लगाकर सप्लाई करते पकड़ती है। मस्जिद स्टेशन के पास भी एक ऐसा ब्रिज है जहां पर नशेड़ियों को छुपने की जगह मिल जाती है। यह डोंगड़ी इलाके से सटा हुआ है। डोंगरी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का इलाका है। पी डिमेलो रोड और भायखला में भी दाऊद के गुंडे ड्रग्स की सप्लाई करते रहे हैं। पुलिस वालों का कहना है कि डोंगरी से ही मुंबई और दक्षिण मुंबई के कई इलाकों में ड्रग्स की सप्लाई होती रही है। मगर अब दाऊद के कई गुंडों को गिरफ्त में लेकर इनके ड्रग्स के अड्डे को खत्म करने की कोशिश की गई है।
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इधर पश्चिम रेलवे की लोकल ट्रेन से अगर सफर करें, तो चर्च गेट की ओर जाते समय मुंबई सेंट्रल से पहले महालक्ष्मी नाम का एक स्टेशन है। इस स्टेशन से सटे ही एक पुरानी और खंडहर वाली शक्ति मिल है। यहां पहले रेलवे ट्रैक की ओर से मिल की तरफ दीवारें खुली हुई थीं, तो मिल में जाना आसान था। अब यह दीवार बंद कर दी गई है। इसकी भी वजह है। 22 अगस्त, 2013 को इसी जगह कुछ नशेड़ियों ने एक युवती के साथ सामूहिक बलात्कार किया था। इस मामले में चार लोगों को उम्र कैद की सजा हुई है। फिर भी, नशेड़ियों ने आसपास अपने लिए नई जगह बना ली है।
मुंबई में कई जगहों पर स्टेशनों के पास ही लगभग 36 स्कायवॉक बने हुए हैं। मुंबईकर दिन में भी इसका कम ही इस्तेमाल करते हैं और रात में तो यह सुनसान और डरावना-सा रहता है। मगर नशेड़ियों के लिए यह ऐशगाह बन गया। कुछ आपराधिक घटनाएं घटने के बाद पुलिस ने नशेड़ियों को यहां से खदेड़ने का काम किया। अब तो इस्तेमाल नहीं होने से स्कायवॉक को तोड़ने की भी योजना है। पर नशे की लत ने नशेड़ियों को सुनसान और अंधेरी वाली दूसरी जगहों की ओर खींच लिया। इस समय दक्षिण मुंबई के कफ परेड के इलाके में नशेड़ी अपनी इच्छाएं पूरी कर लेते हैं। समंदर के किनारे मूर्तिनगर से गीतानगर जाने वाले रास्ते और बैकवे डिपो के पीछे खाड़ी और समुद्री तट के पास भी नशेड़ी कपड़े से खुद को ढंककर नशा करते दिख जाते हैं।
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मैरियुआना (चरस), कोकीन, पीसीपी (फेंसीक्लाइडाइन), एमडीए, मेफेड्रोन और हशीश की पुड़िया के रूप में खुदरा बिक्री मुंबई में होती रहती है। एएनसी और एनसीबी के अधिकारी भी मानते हैं गोवा से ड्रग्स मुंबई ज्यादा आते हैं। लेकिन अब हाल के दिनों में गुजरात से भी नशे के माल ज्यादा आने लगे हैं। मुंबई में ज्यादा आबादी होने से नशे की सफेद पुड़ियों की खपत भी अधिक है और यहां दाम भी ज्यादा मिलते हैं। नशे के कारोबार के खिलाफ कार्रवाई करने के मामले में केंद्रीय एजेंसी एनसीबी की अपेक्षा मुंबई पुलिस की नशा विरोधी दस्ता- एएनसी की कार्रवाई ज्यादा पारदर्शी मानी जाती है।
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आरटीआई कार्यकर्ताअनिल गलगली ने एएनसी और एनसीबी से मादक पदार्थों की जब्ती और आरोपियों की गिरफ्तारी को लेकर तीन-तीन साल की जानकारी मांगी थी। एएनसी की ओर से तो जानकारी उपलब्ध कराई गई, मगर एनसीबी ने जानकारी देने से मना कर दिया। गलगली सवाल उठाते हैं कि एएनसी और एनसीबी की ओर से सारे जब्त मादक पदार्थों का क्या होता है? कहीं इसी में से कुछ मादक पदार्थ फिर से नशेड़ियों तक तो नहीं पहुंचते हैं? वैसे, यह सवाल सबके मन में रहता है कि एनसीबी पुड़िया खरीदने वालों को तो पकड़ लेती है और बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान-जैसे सेलिब्रिटी को पकड़कर सुर्खियों में रहती है, मगर ड्रग्स सप्लाई करने वाले असली और बड़े गुनहगार उसके हाथ क्यों नहीं लगते।
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