लखनऊ में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन की प्रमुख धुरी रहीं सुमैय्या राणा के घर के बाहर यूपी पुलिस ने एक नोटिस चस्पा किया है। मशहूर शायर मुनव्वर राणा की बेटी सुमैय्या ने घण्टा घर पर सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन का नेतृत्व किया था, जिसे लेकर सुमैय्या राणा के खिलाफ अब तक 3 मुकदमे दर्ज किए गए हैं।
सुमैय्या बताती हैं कि अब उनकी जिंदगी की हर सांस पर सरकारी निगरानी है। राजधानी में जब भी कोई धरना-प्रदर्शन जैसी हलचल होती है, पुलिस मेरे घर आकर बैठ जाती है। वह कहती हैं, “मुझे लगता है कि मेरे हर मूवमेंट पर नजर है। मेरे फोन सुने जा रहे हैं। अगर कोई महिला विधानसभा पर धरने की घोषणा कर दे तो पुलिस मेरी नजरबंदी करती है। मेरी आजादी पर पहरा है और मेरी जिंदगी सर्विलांस के घेरे में है।”
Published: 03 Dec 2020, 7:10 PM IST
सीएए प्रोटेस्ट के दौरान ही जेल भेजे गए एक अन्य युवा शान बताते हैं कि अपनी बात कहना गुनाह है। वो जो कुछ कर रहे थे वो असंवैधानिक नहीं था। अब स्थानीय पुलिस लगातार उन्हें मॉनिटर करती है। शान का कहना है कि उनकी हर हरकत पर नजर रखी जाती है।
इसके अलावा लखनऊ पुलिस 11 लोगों से 50 लाख रुपये से ज्यादा की रिकवरी में जुटी है। ये सभी वो लोग हैं जो 19 दिसंबर के लखनऊ के प्रदर्शन में कथित तौर पर शामिल थे। उस दौरान हिंसा हुई थी। पूर्व राज्यमंत्री यामीन खान बताते हैं कि इनमे एक रिक्शाचालक का भी नाम है। लखनऊ प्रशासन ने इसमें पूर्व आईजी एसआर दारापुरी, मौलाना सैफ अब्बास, मोहम्मद शुएब जैसे नाम भी शामिल किये हैं।
Published: 03 Dec 2020, 7:10 PM IST
राजधानी लखनऊ में पिछले साल दिसंबर में सीएए-एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन के बाद योगी सरकार का प्रदर्शनकारियों के खिलाफ एक्शन अब तक जारी है। उस हिंसा में सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में लखनऊ पुलिस कई लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है और जेल भेज चुकी है, वहीं कई आरोपियों की संपत्ति कुर्क करते हुए नुकसान की भरपाई की गई। इसी क्रम में कमिश्नरेट पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के जगह-जगह पोस्टर लगवाए हैं। एक प्रदर्शनकारी के पिता को हिरासत में भी लिया गया है। प्रदर्शन में शामिल रहे लोगों, जिनको हिंसा का आरोपी बनाया गया है, के घरों के बाहर डुगडुगी बजवाकर नोटिस चस्पा किये गए हैं।
पुलिस और प्रशासन द्वारा लगातार सीएए-एनआरसी विरोधियों का उत्पीड़न जारी है। कभी आधी रात को सीएए-एनआरसी विरोधियों के घर पुलिस पहुंच जाती है तो कभी आधी रात को किसी प्रदर्शनकारी के घर से उसके पिता को जबरदस्ती उठा लिया जाता है, तो कभी सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगवा दिए जाते हैं तो कभी हिंसा के आरोपी प्रदर्शनकारियों के घरों के बाहर नोटिस चस्पा किया जाता है।
Published: 03 Dec 2020, 7:10 PM IST
अभी हाल ही में सामाजिक कार्यकर्ता जैनब सिद्दीकी के पिता नईम सिद्दीकी को लखनऊ पुलिस ने गिरफ्तार किया था। जैनब सिद्दीकी ने पुलिस पर पिता के साथ मारपीट का आरोप लगाया है। जैनब ने यह भी आरोप लगाया कि जब उनके भाई और बहन पिता नईम सिद्दीकी को छुड़वाने हसनगंज थाने पहुंचे तो पुलिस ने उनके साथ भी मारपीट की। जैनब सिद्दीकी लखनऊ में एक एनजीओ में कार्यरत हैं और लखनऊ में पिछले वर्ष हुए सीएए-एनआरसी प्रदर्शन में मुख्य तौर पर शामिल रही थीं। जैनब बताती हैं कि 5 नवंबर को पुलिस द्वारा उनके घर पर छापा मारा गया और परिजनों के साथ अभद्र व्यवहार किया गया।
लखनऊ के घंटा घर प्रोटेस्ट में शामिल रही उज्मा परवीन भी सरकार की आंखों में चुभती रही हैं। उज्मा परवीन समेत उनके परिवार पर फर्जी मुकदमे किये गए, देर रात पुलिस को उनके घर पर भेजकर परेशान किया जाता रहा है। उज्मा पर भी लखनऊ हिंसा में शामिल रहने का आरोप है। उज्मा परवीन और उनके परिवार को पुलिस द्वारा कभी नजरबंद कर लिया जाता है, तो कभी देर रात उनके घर पुलिस भेजी जाती है।
Published: 03 Dec 2020, 7:10 PM IST
सदफ जाफर के साथ भी लखनऊ पुलिस का सख्त रवैया जारी है। सदफ पिछले कई साल से कांग्रेस से भी जुड़ी हुई हैं। पिछले वर्ष लखनऊ हिंसा हुई थी तो उस वक्त सदफ फेसबुक लाइव चला रही थीं और पुलिस प्रशासन को वहां की परिस्थितियों के बारे में अवगत करा रही थीं, परंतु पुलिस द्वारा सदफ जाफर को ही गिरफ्तार कर लखनऊ हिंसा का आरोप लगा दिया गया, जिसमें सदफ 19 दिन जेल में रहीं।
सदफ बताती हैं कि महिला होने के बावजूद उनको पुरुष पुलिसकर्मियों द्वारा मारा गया और प्रताड़ित किया गया। महिला पुलिस र्मी द्वारा उन्हें पाकिस्तानी भी कहा गया। दो बच्चों की मां सदफ जेल से बाहर आने के बाद भी सरकार की आंखों में चुभ रही हैं। सरकार द्वारा उनके तस्वीर के पोस्टर लखनऊ के चौराहों पर चस्पा किये गए हैं और उन्हें लखनऊ हिंसा के आरोप में घर की कुर्की का नोटिस भी थमाया गया है।
Published: 03 Dec 2020, 7:10 PM IST
इसी तरह एस आर दारापुरी 2003 में सेवानिवृत्त होने के बाद से मानवाधिकारों पर काम करते रहे हैं। दारापुरी मानवधिकार, महिला अधिकार, आदिवासी, दलितों और अल्पसंख्यकों से जुड़े समाजिक आंदोलनों का समर्थन करते रहे हैं। 19 दिसंबर को लखनऊ में हुई हिंसा के आरोप में दारापुरी को भी गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था और 19 दिन जेल में रहने के बाद दारापुरी की जमानत हुई थी। जेल से निकलने के बाद दारापुरी ने भी पुलिस पर प्रताड़ित करना का आरोप लगाया था। एस आर दारापुरी का भी लखनऊ पुलिस द्वारा पोस्टर शहर के विभिन्न चौराहों पर लगवाया गया है और उन्हें भी कुर्की का नोटिस देकर प्रताड़ित किया गया है।
वहीं, 72 साल के बुजुर्ग मोहम्मद शोएब रिहाई मंच नामक सामाजिक संगठन के अध्यक्ष हैं। मोहम्मद शोएब को 18 दिसंबर 2019 को हजरतगंज पुलिस द्वारा उनके घर से गिरफ्तार कर नजरबंद किया गया था। जिस समय लखनऊ में हिंसा हो रही थी, उस समय शोएब पुलिस द्वारा नजरबंद थे। परंतु पुलिस द्वारा उन्हें लखनऊ हिंसा में शामिल होना बताया गया और हिंसा का फर्जी आरोप लगाकर जेल भेज दिया गया।
Published: 03 Dec 2020, 7:10 PM IST
सवाल है कि जो आदमी नजरबंद हो वह हिंसा में शामिल कैसे हो सकता है। शोएब के जेल से रिहा होने के बाद भी प्रशासन द्वारा उनका उत्पीड़न जारी है। लखनऊ पुलिस द्वारा एक 72 वर्षीय बुजुर्ग का फोटो हिंसा आरोपी के तौर पर चस्पा किया गया और घर कुर्की का नोटिस थमा उत्पीड़न किया गया।
लखनऊ के सामाजिक कार्यकर्ताओं को सीएए विरोधी प्रदर्शनों के एक साल बाद भी प्रदेश की योगी सरकार द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है। सरकार ने जिन लोगों की तस्वीरें पोस्टर में लगाकर लखनऊ हिंसा का आरोप लगाया है, उनमें दिवंगत शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे सादिक के बेटे कल्बे सिब्तेन नूरी का भी नाम शामिल है।
Published: 03 Dec 2020, 7:10 PM IST
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Published: 03 Dec 2020, 7:10 PM IST