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शंभू बार्डर पर आंदोलन के 200 दिन बाद भी किसान न टूटा है, न थका है, MSP के लिए लंबे संघर्ष की है तैयारी

किसान नेता सरदार मलकीत सिंह कहते हैं कि हमें यहां बैठे हुए 200 दिन हो गए और सरकार हमसे बात तक नहीं करना चाहती। सरकार सोचती है कि किसान थक-हार कर वापस अपने घर चले जाएंगे, लेकिन मोदी जी को यह नहीं पता कि हम बिना अपना हक लिए वापस जाने वाले नहीं हैं।

शंभू बार्डर पर आंदोलन के 200 दिन बाद भी किसान न टूटा है, न थका है, MSP के लिए लंबे संघर्ष को तैयार (फोटोः धीरेंद्र अवस्थी)
शंभू बार्डर पर आंदोलन के 200 दिन बाद भी किसान न टूटा है, न थका है, MSP के लिए लंबे संघर्ष को तैयार (फोटोः धीरेंद्र अवस्थी) फोटोः धीरेंद्र अवस्थी

हरियाणा-पंजाब का शंभू बार्डर और किसान आंदोलन के 200 दिन। यह सामान्य लफ्ज नहीं हैं। एक ताकतवर सत्ता से अन्नदाता की अपने हकों के लिए संघर्ष की दास्तान है। किसान दिल्ली जाना चाहते हैं। वह फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मांग रहे हैं। हरियाणा की बीजेपी सरकार ने पूरी ताकत झोंक कर इन किसानों का रास्ता रोक रखा है। किसानों को यहां बैठे हुए 200 दिन गुजर गए, लेकिन उनका हौसला ऐसा है जैसे आंदोलन आज ही शुरू हुआ है। राज्य और केंद्र की सत्ता की ताकत मिल कर भी इन किसानों का हौसला नहीं तोड़ पाई है।

हरियाणा-पंजाब का शंभू बार्डर किसान आंदोलन के इतिहास में वह तारीख लिख रहा है, जिसकी मिसालें सदियों तक दी जाएंगी। यहां का नजारा अद्भुत है। भारत की विविधता और सह अस्तित्व की नायाब तस्वीर के दीदार भी यहां है। मानवता और मेहमाननवाजी ऐसी है कि भारतीय दर्शन में समाहित वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना साकार होती यहां नजर आती है। लेकिन अपने हकों के लिए संघर्ष का जज्बा भी यहां साफ तौर पर दिख रहा है। शंभू बार्डर के पास तकरीबन 3-4 किलोमीटर का किसानों को एक पूरा शहर बस गया है, जिसमें विविध रंगा समाए हैं।

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फोटोः धीरेंद्र अवस्थी

अन्नदाता को यहां बैठे हुए 200 दिन गुजर चुके हैं, लेकिन उनका हौसला कायम है। बिना शंभू बार्डर जाए इस आंदोलन के विविध रंगों को महसूस करना मुश्किल है। यह बात भी बिल्कुल साफ है कि एमएसपी और कर्जा माफी की मुख्य मांग में बिना कुछ हासिल किए यह आंदोलन खत्म होने वाला नहीं है। अपने हकों को हासिल करने के संकल्प के साथ किसान अपने दिलों में बेहिसाब दर्द भी समेटे हुए हैं। इन्हें इस बात की तकलीफ है कि उन्हें केंद्र और राज्य की बीजेपी सरकारें आतंकवादी कहती हैं। उन्हें खालिस्तानी कहा जाता है। उन पर विदेशी फंडिंग से आंदोलन चलाने के आरोप लगते हैं। फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत के किसान आंदोलन को लेकर दिए गए बयान को वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शह पर दिया गया बयान मानते हैं।

आंदोलन के 200 दिन पूरे होने पर हरियाणा और पंजाब से जुटे हजारों किसानों ने सरकार के हर इल्जाम का जवाब दिया। साथ ही उन्होंने अपना दर्द भी बयां किया। किसान नेता सरदार मलकीत सिंह कहते हैं कि हमें यहां बैठे हुए 200 दिन हो गए और सरकार हमसे बात तक नहीं करना चाहती। सरकार सोचती है कि किसान थक-हार कर वापस अपने घर चले जाएंगे, लेकिन मोदी जी को यह नहीं पता कि हम बिना अपना हक लिए वापस जाने वाले नहीं हैं। वह कहते हैं कि हम पर इल्जाम लगता है कि दिल्ली जाने वाला रास्ता किसानों ने बंद कर रखा है। यह रास्ता हरियाणा सरकार ने बंद किया है और बदनाम किसानों को किया जा रहा है।

आंदोलन के 200 दिन पूरे होने पर शंभू बार्डर आई पेरिस ओलंपिक में 100 ग्राम अधिक वजन पर पदक से वंचित कर दी गई विनेश फोगाट ने एक नई उर्जा का संचार कर दिया।

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फोटोः धीरेंद्र अवस्थी

कई किसान नेताओं ने कहा कि कुछ वकीलों और एक किसान नेता के यहां पंजाब में पड़ी एनआईए (नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी) की रेड इस बात को साबित करती है कि सरकार हमसे डरी हुई है। इस बात की आशंका भी जाहिर की कि इस तरह की रेड आने वाले समय में और पड़ने वाली हैं। किसान नेताओं ने कहा कि कभी हमें देशद्रोही कह दिया जाता है तो कभी आतंकवादी। कभी यह कहा जाता है कि चीन से हमें मदद मिल रही है। अमित शाह (केंद्रीय गृह मंत्री) के बेटे जयशाह को बैट पकड़ना नहीं आता और आईसीसी (इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल) का चेयरमैन बना दिया जाता है और एक आम बच्चे के हाथ में पत्थर पकड़ा दिया जाता है।

जसवंत सिंह लोंगोवाल का कहना था कि किसानों पर जुल्म करने वालों को देश पर राज करने का हक नहीं है। सरदार दविंदर सिंह कहते हैं कि सरकार यह समझती है कि किसान बैठे रहें उसे क्या फर्क पड़ता है। हरियाणा विधानसभा के चुनाव में उसे इसका पता चल जाएगा। गुरप्रीत सिंह का कहना था कि यह सरकार तो अडानी-अंबानी के लिए काम कर रही है। हरियाणा किसान-मजदूर संघ के अध्यक्ष उम्मेद सिंह कहते हैं कि हम हरियाणा के गांव-गांव जाकर पंचायत करेंगे। हम लोगों से अपील करेंगे कि विस चुनाव में बीजेपी के खिलाफ जो भी मजबूत उम्मीदवार हो उसे अपना वोट दे दें, लेकिन बीजेपी को वोट न दें। उम्मेद सिंह ने कहा कि उन्होंने संकल्प लिया है कि यदि बीजेपी विधानसभा चुनाव में जीत गई तो वह अपनी दाढ़ी कटवा लेंगे।

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इससे साफ पता चलता है कि किसानों में बीजेपी को लेकर गहरी नाराजगी है। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चले किसान आंदोलन में उम्मेद सिंह घायल हो गए थे। उम्मेद सिंह कहते हैं कि किसानों को बदनाम करने के लिए पीएम मोदी ने ही कंगना रनौत को शह दिया है। किसान नेताओं ने कहा कि कंगना रनौत जो अन्न और सब्जी खाती हैं वह भी किसान के खेत में ही पैदा होती है।

शहीद भगत सिंह यूनियन हरियाणा के अध्यक्ष अमर जीत सिंह कहते हैं कि हम पर गोलियां चलाई गईं। युवा किसान शहीद हुआ। लेकिन किसानों ने बीजेपी की हालत ऐसी बना दी है कि हरियाणा के सीएम को चुनाव लड़ने के लिए सीट नहीं मिल रही है। उन्होंने कहा कि एमएसपी और कर्जा मुक्ति के लिए हम गांव-गांव जाकर लोगों से बात करेंगे। किसान नेताओं ने आंदोलन के लिए विदेशी फंडिंग के आरोपों का भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि इस आंदोलन को चलाने के लिए हमारी माताएं 2-2 किलो दूध और बचत के लिए रखे 10-10 रुपये हमें यहां आकर दे रही हैं। इसकी बात की तस्दीक वहां लगाई गई टेबल पर छोटा-छोटा अमाउंट दे रही महिलाएं कर रही थीं।

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एक बात बिल्कुल साफ है कि किसान लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं। किसान नेताओं ने स्पष्ट तौर पर कहा कि हम बिना एमएसपी लिए वापस जाने वाले नहीं हैं। आंदोलन के मुख्य चेहरे किसान-मजदूर संघर्ष कमेटी के प्रमुख सरवन सिंह पंढेर का स्पष्ट तौर पर कहना था कि यह आंदोलन 1 साल चले या 3 साल चले हम जीत कर ही वापस जाएंगे। कंगना के बयान और खालिस्तानी के आरोपों को वह कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। किसान नेताओं पर एनआईए की छापामारी की निंदा करते हुए उन्होंने सरकार से कहा कि वह बार्डर खाली करे, जिससे वह दिल्ली जा सकें। उन्होंने कहा कि 3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी का हिसाब लेने के लिए पूरे देश में 2 घंटे के लिए रेल जाम करेंगे। 15 सितंबर को जींद के उचाना और 22 सिंतबर को कुरुक्षेत्र के पीपली में हरियाणा विधानसभा चुनावों में रहने वाली रणनीति पर निर्णय करेंगे।

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