“देश में नौकरियों की कोई कमी नहीं है। बस नौकरियों के आंकड़ों की कमी ने विपक्ष को अपनी पसंद की तस्वीरें पेंट करने और सरकार को दोष देने का 'अवसर' दिया है।” हाल ही में स्वराज्य मैगजीन को दिए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने यह बात कही थी। उन्होंने ईपीएफओ डाटा के आधार पर हुए एक अध्ययन का हवाला देते हुए दावा किया था कि पिछले साल संगठित क्षेत्र में 70 लाख से ज्यादा नौकरियां पैदा हुई हैं। लेकिन उनके इसी दावे की हवा ईपीएफओ के आंकड़ों ने ही निकाल दी है। पिछले साल भी केंद्र सरकार ने संगठित क्षेत्र में 40 लाख नए रोजगार का दावा किया था, अब उस पर भी सवाल उठ रहे हैं।
केंद्र सरकार ने ईपीएफओ के जिस डाटा के आधार पर ये दावा किया था, अब उसी डाटा में रोजगार में गिरावट दिख रही है। सरकार ने ये दावा नीति आयोग की एक स्टडी में सामने आए आंकड़ों के आधार पर किया था। इस स्टडी को आईआईएम बेंग्लुरु के प्रोफेसर पुलक घोष और एसबीआई के चीफ इकोनॉमिस्ट सौम्य कांति घोष ने तैयार किया था। इसमें 70 लाख से ज्यादा नौकरियों की बात कही गई थी। साथ ही इनमें से 40 लाख नौकरियों का आधार कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के एनरॉलमेंट को बताया गया था।
लेकिन, 25 जून को जारी ईपीएफओ के नए आंकड़े कुछ और कहानी बता रहे हैं। सरकार ने सितंबर 2017 से मार्च 2018 के बीच लगभग 40 लाख नए एनरॉलमेंट बताए थे, जिन्हें अब ईपीएफओ ने घटाकर करीब 28 लाख कर दिया है। यानि पिछले आंकड़ों के मुकाबले हर महीने औसतन 12.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इन आंकड़ों से हो रही किरकिरी को देखते हुए अब सांख्यिकी और क्रियान्यवयन मंत्रालय ने ईपीएफओ से पूछा है कि इस गिरावट की वजह क्या है?
मनी कंट्रोल पर प्रकाशित खबर के मुताबिक ईपीएफओ में सेंन्ट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज़ के मेंबर ब्रिजेश उपाध्याय का कहना है कि एनरोलमेंट के आंकड़ों मे उतार चढ़ाव होता रहता है। वहीं एसबीआई के चीफ इकोनॉमिस्ट सौम्यकांति घोष का कहना है कि ईपीएफओ का डाटा लगातार बदलता है, लेकिन कोई निष्कर्ष निकालते वक्त पूरे डाटा को देखा जाता है। मार्च में डाटा में जो बदलाव हुआ वो सबसे ज्यादा है।
लेकिन जिस तरीके से रोजगार के दावे को सरकार ने विपक्ष के आरोपों का जवाब बनाकर पेश किया था उसी तरह अब विपक्ष सरकार के दावे पर सवाल खड़े कर रहा है। रोजगार एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा है, जिसमें आंकड़ों की कमी की वजह से आरोप-प्रत्यारोप की गुंजाइश रहती है। ऐसे में सरकार ने कहा था कि वो विश्वसनीय आंकड़ों की व्यवस्था बनाने को कोशिश कर रही है।
प्रधानमंत्री मोदी ने जिस स्टडी के आधार पर दावा किया उसमे ईपीएफओ के 8 करोड़ अकाउंट होल्डर्स से जुड़ी जानकारी जुटाने की बात कही गई थी, लेकिन जब संगठित क्षेत्र के आंकड़ों में इस तरह की गड़बड़ी हो सकती है तो असंगठित क्षेत्र जहां कोई सटीक आंकड़ा नहीं है वहां बड़ी संख्या में रोजगार पैदा होने का दावा अपने आप में एक बड़ा सवाल है।
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कांग्रेस ने ईपीएफओ के ताजा आंकड़ों और प्रधानमंत्री के दावों पर कहा है कि बीजेपी सरकार रोजगार के मामले में लगातार झूठे आंकड़े पेश करती रही है ताकि बेरोजगारी की विकराल समस्या को छिपाया जा सके।
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कांग्रेस ने इस मामले में सीधे प्रधानमंत्री से सवाल पूछा है कि, “अगर आप इन आंकड़ों के आधार पर कह रहे थे कि 70 लाख नई नौकरियाँ पैदा हुई हैं तो, इसका मतलब ये है कि इन आंकडों के आधार पर जो भारत का फॉर्मल सेक्टर है उसमें पिछले छह महीनों में बेरोजगारी बढ़ी है, घटी नहीं है। तो या तो जिन आंकड़ों का आप हवाला दे रहे थे, वो आंकड़े गलत हैं और या वो आंकड़े सही हैं तो ये साफ संकेत करते हैं कि देश में रोजगार के साधन पैदा नहीं हो रहे, देश में बेरोजगारी बढ़ रही है। जो अत्यंत ही एक चिंता का विषय है और इसका कारण बड़ा साफ है कि सामाजिक अस्थिरता और आर्थिक विकास साथ-साथ नहीं चल सकते।”
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