आखिरकार मोदी सरकार को सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड को बेचने से कदम पीछे खींचने पड़े हैं। नेशनल हेरल्ड ने कल ही खबर दी थी कि केंद्र सरकार सरकारी कंपनी सीईएल को निजी हाथों में सौंपने वाली है। लेकिन अब सरकार ने सामरिक महत्व की इस कंपनी को बेचने का इरादा फिलहाल टाल दिया है।
डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट के सचिव तुहिन कांत पांडेय ने मीडिया को बताया कि सीईएल की सौ फीसदी हिस्सेदारी निजी हाथों में सौंपने के लिए फाइनांस एंड लीजिंग का लेटर ऑफ इन्टेंट नांडल फिलहाल रोक दिया गया है।
सूत्रों ने नेशनल हेरल्ड को बताया कि इस कंपनी के निजीकरण का चुनावों पर असर पड़ सकता था क्योंकि कंपनी के कर्मचारियों ने इस निजीकरण का बहिष्कार करने का ऐलान कर दिया था। सूत्रों के मुताबिक सरकार को ऐसी भी आशंका थी कि अगर इस निजीकरण पर सरकार आगे बढ़ती है तो कर्मचारी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकते थे।
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सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण से कंपनी के कर्मचारियों ने इस मामले में जनहित याचिका दायर करने के लिए संपर्क किया था ताकि इस निजीकरण को रोकने का कोर्ट से आग्रह किया जा सके। कर्मचारियों का कहना था कि यह मुनाफे वाली कंपनी है और इसे इसे निजी हाथों में कौड़ियों को दामों में सौंपा जा रहा है।
गौरतलब है कि कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कर्मचारियों की तरफ से इस मामले मं 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट में एक अपील फाइल करते हुए निजीकरण पर सवाल उठाए थे। हाल ही में यह केस दोबारा खुला है।
सूत्रों को मुताबिक किसाने नेता राकेश टिकैत ने भी साहिबाबाद में प्रदर्शनकारी कर्मचारियों को संबोधित किया था। इसके बाद ही सरकार को लगा कि चुनाव मौसम में औद्योगिक कामगारों को नाराज करना मुश्किलें खड़ी कर सकता है। हालांकि इस मामले में भारतीय किसान यूनियन बहुत ज्यादा मुखर नहीं रही, लेकिन आंदोलन कर रहे कर्मचारियों को उसके समर्थन ने सरकार के कान खडे कर दिए।
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ध्यान रहे कि मोदी सरकार ने नियमों की अनदेखी करते हुए इस सरकारी कंपनी को ऐसी फर्म के हवाले करने की प्रक्रिया शुरु की थी जिसे रेडार सिस्टम में लगने वाले इलेक्ट्रॉनिक कल-पुर्जे बनाने और डिफेंस टेक्नालॉजी का रत्ती भी अनुभव नहीं है। सीईएल के कर्मचारियों का दावा है कि “सीईऐल की कीमत करीब 957 करोड़ रुपए आंकी गई थी, लेकिन इसका रिजर्व प्राइस (न्यूनतम मूल्य) इतना कम रखा गया कि कोई भी इसे आसानी से खरीद ले।” इसके बाद सीईएल को नांडल फाइनांस एंड लीजिंग निलिमिटेड को सिर्फ 260 करोड़ रुपए में बेचने का फैसला कर लिया गया था। ध्यान रहे कि सीईएल के पास जो अपनी जमीन है उसी की कीमत कम से कम 450 करोड़ रुपए हैं। एक अनुमान के मुताबिक सीईएल की कीमत 1000 से 1500 करोड़ के बीच होनी चाहिए थी।
कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ इस सरकारी डील पर काफी मुखर रहे हैं। उन्होंने पिछले माह प्रेस कांफ्रेस कर इस कंपनी को बेचने का विरोध किया था। अब सौदा रद्द होने पर उन्होंने ट्वीट कर लिखा है ‘सत्यमेव जयते..’
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वहीं कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला भी ने ट्वीट कर लिखा है:
कौन कहता है आसमाँ में सुराख़ नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो उछाल कर देखो यारो !
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