“वायनाड में कभी भी इतना महत्वपूर्ण उम्मीदवार मैदान में नहीं उतरा। हमें लगता है कि इससे इलाके को फायदा होगा। मैं तो मंचीरी फॉरेस्ट एरिया का हूं, जो नीलांबर डिवीज़न के जंगलों में कई किलोमीटर अंदर है। मुझे तो मेन रोड तक पहुंचने में ही करीब 32 किलोमीटर चलना पड़ता है। इसके बाद ही हम अस्पताल जा सकते हैं। अब उम्मीद है कि हमारे इलाके में सड़कें बनेंगी, अस्पताल खुलेगा।“ केरल की चोलानाइकर आदिवासी जाति के विनोद सी से जब हमने इस बारे के चुनाव के बारे में पूछा तो उसका जवाब दिलचस्प था।
चोलानाइकर आदिवासी जाति आज भी गुफाओं में या फिर गहरे जंगलों में बनी झोंपड़ियों में रहती है। इनमें से ज्यादातर लोग नीलांबर जंगल में हैं। देश भर में अकेली यही शिकारी जाति रह गई है जिसका गुजर बसर जंगलों से मिलने वाली चीज़ों को बेचकर होता है। ये लोग शहद, लोबान और जंगली काली मिर्च आदि वन संरक्षा समिति को बेचते हैं। इनके खानपान में ज्यादातर कंद-मूल ही होता है और कभी-कभी मांस भी। लेकिन ये लोग खेती नहीं करते हैं। विनोद के माता-पिता मनालाचेलन और विजया अभी घने जंगलों में ही रहते हैं।
Published: undefined
विनोद इस आदिवासी समुदाय का पहला शख्स है जिसने अच्छे से पढ़ाई की है। उसने अंडर ग्रेजुएट किया और इन दिनों कोचीन के साइंस एंज टेक्नालॉजी विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम फिल कर रहा है। उसकी पांच बहनें हैं, जिनमें से एक की शादी हो चुकी है और बाकी अभी स्कूल जाती हैं।
विनोद का कहना है कि, “हमें सड़कों की बहुत ज्यादा जरूरत है। अभी तो हालत ऐसी है कि रास्ते पर चलना भी मुश्किल है। यह कोई बहुत बड़ी चीज नहीं मांग रहा हूं मैं। पेड़-पौधों का ध्यान रखते हुए विकास तो होना ही चाहिए। हमें स्कूल चाहिए, अस्पताल चाहिए। अभी तो अस्पताल पहुंचना ही मुश्किल है।”
Published: undefined
विनोद ने बताया कि 2006 में सरकार ने जंगलों में ही घर तो बनाए थे, लेकिन हमने उसकी मांग नहीं की थी। वह कहता है कि, “पंचायत के पास पैसे थे, तो उन्होंने बना दिए। यह घर किसी को दिए नहीं गए हैं। वैसे भी यह रहने लायक नहीं है। इससे अच्छा तो हम गुफाओं में ही हैं। जंगल में जानवर हैं, जिनमें से ज्यादातर हाथी हैं, ऐसे में इन घरों में रहना सुरक्षित भी नहीं है। यहां बहुत हाथी हैं। घर ऐसी जगह बनने चाहिए थे जो जानवरों के रास्ते में न आएं और उन्हें परेशान न करें।”
विनोद का परिवार जंगल के जिस हिस्से में रहता है वह निलांबर एलीफेंट रिजर्व एरिया में आता है। उन्हें आशंका है कि आने वाले दिनों में कहीं उन्हें भी अपनी गुफाएं न छोड़ना पड़े, क्योंकि यह इलाका सुरक्षित वनों के दायरे में आ सकता है। विनोद कहता है कि, “मेरा परिवार तो बरसों से वहां रह रहा है। वह हमारा घर है। वे अगर कहीं और रहेंगे तो बीमार हो जाएंगे। मुझे भी एलर्जी हो चुकी है। लेकिन मैं बचपन में ही पढ़ने के लिए यहां आ गया था इसलिए अब आदत हो गई है।”
Published: undefined
विनोद आईएएस बनना चाहता है। वह आदिवासी मामलों पर पीएचडी भी करना चाहता है, क्योंकि आदिवासियों के मुद्दों और उनके जीवन पर बहुत अधिक काम नहीं हुआ है। उसे लगता है कि उसकी रिसर्च से सरकार को फायदा होगा। उसने बताया कि, “हम में से सिर्फ 30 फीसदी लोग ही वोट करने जाते हैं, क्योंकि हममें से ज्यादातर लोग घने जंगलों में रहते हैं, इसलिए आना-जाना आसान नहीं है। वैसे भ इन दिनों में हाथियों की आवाजाही बहुत होती है।”
विनोद को उम्मीद है कि राहुल गांधी अगर यहां से सांसद बनते हैं तो उसके इलाके की तस्वीर बदलेगी और विकास के लिए कुछ पैसा आएगा।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined