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इलेक्शन हाईवे: न जात पर, न धर्म पर, इस बार झूठे वादों और गन्ने के बकाए पर वोट करेगा मुजफ्फरनगर

इलेक्शन हाईवे पर चलते हुए हम वापस आ पहुंचे हैं मुजफ्फरनगर और हमारा पड़ाव है इस लोकसभा क्षेत्र का खतौली विधानसभा इलाका। हम यहां के गांव गदनपुरा में उस चौपाल पर हैं जहां इलाके के किसान और वोटर जमा हैं। क्या है चुनावों को लेकर इनका रुख, चलिए जानते हैं। हमने इनकी बातचीत को वीडियो में भी रिकॉर्ड किया है।

फोटो : नवजीवन
फोटो : नवजीवन 

मुजफ्फरनगर...साल 2013 में दंगों की आग में झुलसे इस लोकसभा क्षेत्र में इस बार जाट नेता चौधरी अजित सिंह खुद ताल ठोंकने मैदान में उतरे हैं और उनके सामने हैं बीजेपी के मौजूदा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान। आखिर इन दोनों नेताओं को लेकर लोगों का क्या रुख है और चुनावी मौसम क्या करवट ले रहा है, इसे जानने के लिए हमने इलाके की खतौली विधानसभा सीट के गदनपुरा गांव का रुख किया।

गदनपुरा में ज्यादातर लोगों का पेशा खेती-किसानी ही है, ऐसे में गन्ने के बकाया भुगतान की मांग और फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य इनके लिए सबसे अहम मुद्दा है। इन दोनों अहम मुद्दों पर यहां के लोगों का क्या कहना है, यह जानने से पहले हम आपको मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र के बारे में कुछ बता देते हैं।

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर अल्पसंख्यकों की कुल आबादी करीब 35 फीसदी है इनमें से 34 प्रतिशत मुसलमान हैं। यहां दलित 15 प्रतिशत हैं, जिनमें से 6 फीसदी जाटव, 5 फीसदी वाल्मीकि, एक प्रतिशत खटिक और दूसरी जातिया हैं। बाकी निचले तबकों की आबादी इस क्षेत्र में 28 फीसदी के आसपास है, जिनमें 14 फीसदी जाट, 7.5 फीसदी गूर्जर और बाकी दूसरी जातियां हैं। वहीं 21 फीसदी उच्च जातियां हैं जिनमें ठाकुर 6 फीसी, ब्राह्मण 4 फीसदी और बाकी दूसरी उच्च जातियां शामिल हैं।

गदनपुरा गांव में जमा लोगों का क्या कहना है इसे आप नीचे वीडियो में देख सकते हैं। यहां के लोगों ने बताया कि 2014 के चुनाव से पहले मुजफ्फरनगर को दंगे की आग में झोंका गया। झगड़ा किसी और बात पर था, लेकिन उसे हिंदू-मुसलमान बना दिया गया। लोगों ने बताया कि उस वक्त उन्हें लगता था कि बीजेपी को एक मौका देना चाहिए, क्योंकि उन्हें गरीबों और किसानों के लिए इस पार्टी से उम्मीद थी, लेकिन अब उनका भ्रम टूट चुका है।

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मुजफ्फरनगर के लोगों की नजर में मौजूदा सांसद संजीव बालियान ने उनके लिए कुछ नहीं किया। लोग बताते हैं कि बीजेपी हिंदू वोटों पर अपना अधिकार समझती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा, और वे सोच-समझकर वोट करेंगे। वे साफ कहते हैं, “हमने बीजेपी को खूब आजमा लिया, अब हम किसी बहकावे में नहीं आने वाले, इस बार चौधरी अजित सिंह को वोट देंगे।“

जैसा कि हमने शुरु में बताया था कि यहां लोगों के बड़े मुद्दे गन्ने का बकाया भुगतान और बेरोजगारी है। किसानों का साफ कहना है कि, “पांच साल हो गए लेकिन गन्ने के दाम नहीं बढ़ाए गए, इससे अच्छा तो मायावती और अखिलेश का शासन था जिन्हें एक बार 40 रुपए और एक बार 65 रुपए दाम बढ़ाया था।” किसान आवार पशुओं से भी परेशान हैं, उनका कहना है कि यह फसलों को बरबाद कर रहे हैं।

किसानों ने पीएम मोदी के ठाठ-बाट पर भी कटाक्ष किया। यहां के एक युवा ने मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास ‘दो बैलों की जोड़ी’ के हवाले से कहा कि, “जिस तरह हीरा-मोती को लेकर चौकीदार भागा था, वैसे ही मोदी जी भी झोला लेकर भाग जाएंगे।” इस युवा ने कहा कि, “मोदी जी कहते थे अच्छे दिन आएंगे, हमारे तो नहीं आए, हां उनके जरूर आ गए, वह अलग-अलग देशों में घूमते रहते हैं।“

मोदी सरकार की 2000 रुपए वाली योजना को यहां के किसान भीख की तरह देखते हैं। उनका कहना है कि चीनी मिलों पर लाखों-करोड़ों बकाया है और वे 2000 रुपए दे रहे हैं। उनका कहना है कि, “किसान तो अन्नदाता है, उसे भीख नहीं चाहिए। इससे अच्छा तो यह होता कि फसल का दाम बढ़ा देते।” वहीं किसानों की आमदनी दोगुनी करने के वादे पर किसान कहते हैं कि दोगुना होना तो दूर उनकी आमदनी तो अब आधी रह गई है।

पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक पर भी यहां के किसानों को विश्वास नहीं है। उनका कहना है कि यह पाकिस्तान और भारत दोनों देशों के नेताओं की मिलीभगत है। वे कहते हैं कि, “मोदी कहते हैं कि 250 मारे, योगी 300 बताते हैं, अमित शाह 500 बताते हैं। इन पर भला कैसे विश्वास करें।” यहां के किसानों को आशंका है कि पीएम मोदी चुनाव से पहले मुजफ्फरनगर या बॉर्डर पर कुछ न कुछ कराएंगे।

इस चौपाल पर हुई बातचीत से जो नतीजा निकलता है वह यह कि इलाके के जाट, दलित और मुसलमान मिलकर इस बार बीजेपी को झटका देना चाहते हैं, और यह एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन के उम्मीदवार चौधरी अजित सिंह के लिए अच्छी खबर है।

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