गोवर्धन भोजनालय पर हमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चुनावी हवा का कुछ-कुछ अंदाज़ा लगने लगा था। अब हम सहारनपुर में वोटरों के रुख जानने की कोशिश करने निकल पड़े थे। सहारनपुर के लिए रवाना होने से पहले हमने वहां के चुनावी उम्मीदवारों से बात करने का फैसला किया।
सबसे पहले हमारी बात हुई कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद से। उन्होंने बताया कि वे सहारनपुर निर्वाचन क्षेत्र में गूर्जरों की आबादी वाले एक छोटे से गांव भांकला पहुंचने वाले हैं, जहां उनकी एक चुनावी सभा है। हमने भी सोचा कि अच्छा मौका है वोटरों को समझने-सुनने का।
जब हम भांकला गांव पहुंचे तो इमरान मसूद पहले से पहुंच चुके थे और लोगों की एक छोटी सी भीड़ को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने सीधे-सीधे जोशीले अंदाज़ में भाषण दिया। उन्होंने कहा, “आप सब मेरे समर्थन की बात कर रहे हैं और तारीफें भी कर रहे हैं, लेकिन वोटिंग से 24 घंटे पहले क्या होगा और आप किसको वोट दोगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है।”
Published: 27 Mar 2019, 11:41 AM IST
इस चुनावी सभा का आयोजन एक स्थानीय गूर्जर नेता नवीन चौधरी ने किया था। नवीन चौधरी पूर्व में इमरान मसूद के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। चुनाव में हार के बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए।
इमरान मसूद सहारनपुर में बहुत लोकप्रिय हैं। नवीन चौधरी ही नहीं, पूरे निर्वाचन क्षेत्र में एक भी राजनीतिक नेता ऐसा नहीं है जो इमरान मसूद को नजरंदाज़ करे। उनके बारे में उनके राजनीतिक प्रतिद्धंदियों की राय भी यही है कि वे बिना किसी भेदभाव के लोगों के काम आते हैं और उनके काम करते हैं। इमरान मसूद के बारे में मशहूर है कि अगर कोई उन्हें किसी काम के लिए फोन करे तो वे काम पूरा किए बिना चैन से नहीं बैठते।
सहारनपुर संसदीय सीट के एक बुजुर्ग शहरी गालिब मजाक-मजाक में बहुत गंभीर बात कह जाते हैं। गालिब यूं तो गठबंधन की तरफ से बीएसपी उम्मीदवार फजलुर्रहमान के समर्थक हैं, लेकिन उनका मानना है कि इमरान मसूद से अच्छा नेता सहारनपुर में नहीं है। गालिब कहते हैं, “इमरान सबके काम करता है, बहुत लोकप्रिय है, लेकिन अच्छे लोगों के लिए जगह कहां है राजनीति में...”
भांकला गांव से शहर होते हुए हम अब सहारनपुर के एक गांव नया गांव रामनगर पहुंचे हैं। नया गांव रामनगर में दलितों की बहुलता है और इस गांव में भीम आर्मी नेता चंद्रशेखर समर्थक बड़ी तादाद में हैं। इस गांव में रहने वाले फैय्याज़ का कहना है कि, “बीते पांच साल में एक चीज़ के अलावा सबकुछ नीचे आया है, और वह है नफरत। सिर्फ नफरत ही बीते पांच साल में सबसे ज्यादा बढ़ी है। नफरत की खाई गहरी हुई है और इसे पाटने की सख्त जरूरत है।” इस गांव में रहने वाले दलितों की मोदी सरकार से नाराजगी बेहद मुखर है, वहीं युवा बेरोजगारी से परेशान हैं।
Published: 27 Mar 2019, 11:41 AM IST
सहारनपुर लोकसभा सीट के लिए करीब 17 लाख वोटर है, इनमें सबसे ज्यादा तादाद मुस्लिम वोटरों की हैं जो करीब 38 फीसदी हैं। इस सीट पर ईसाई और दूसरे अल्पसंख्यकों को मिला लें तो यहां करीब 40 फीसदी अल्पसंख्यक वोटर हैं। इसके अलावा दलितों की आबादी भी करीब 24 फीसदी है, जिसमें सबसे ज्यादा जाटव, 20 फीसदी, वाल्मीकि 3 फीसदी और बाकी दूसरी जातियां हैं। बाकी निचली जातियों भी 20 फीसदी हैं इनमें 5 फीसदी गूर्जर, 2 फीसदी जाट और करीब एक फीसदी यादव हैं। इस सीट पर करीब 14 फीसदी उच्च जातियां हैं, इनमें 6 फीसदी ठाकुर, 4 फीसदी ब्राह्मण, 3 फीसदी वैश्य और अन्य उच्च जातियां हैं। सहारनपुर में आमदनी का मुख्य स्त्रोत कारोबार ही है, जबकि लकड़ी और कपड़ा उद्योग के लिए भी सहारनपुर पहचाना जाता है।
इलेक्शन हाईवे के इस दूसरे पड़ाव में हमें आभास हुआ कि मोदी लहर पूरी तरह दम तोड़ चुकी है। साथ ही पुलवामा और बालाकोट स्थानीय मुद्दों के नीचे दफ्न हो चुके हैं। सहारनपुर लोकसभा क्षेत्र के लोग गन्ने के समर्थन मूल्य, गौरक्षा और छुट्टा गायों से फसलों को नुकसान, गौरक्षा के नाम पर पैदा हुए भय, बेरोजगारी और नोटबंदी के बाद से शुरु हुई परेशानियों के अब तक खत्म न होने जैसे मुद्दों पर बात करना चाहते हैं।
यहां के लोगों के लिए उनके मुद्दे सबसे अहम हैं। उन्हें मोदी से कोई उम्मीद नहीं है।
(इलेक्शन हाईवे पर हमारा अगला पड़ाव फिर से मुजफ्फरनगर होगा, जहां हम सिर्फ बाहरी इलाके में सुबोध बालियान से बात करके सहारनपुर चले गए थे।)
Published: 27 Mar 2019, 11:41 AM IST
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Published: 27 Mar 2019, 11:41 AM IST