पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सबसे अधिक 104 सीटें तो जीतीं, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद 37 सीटें जीतने वाले जेडीएस ने उसके साथ सरकार बनाना कबूल नहीं किया। इसकी जगह उसने 80 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के साथ सरकार बनाई। पिछली बार जेडीएस और कांग्रेस दोनों ने अलग-अलग लोकसभा चुनाव लड़ा था और इसीलिए बीजेपी की लॉटरी खुल गई थी। इस बार दोनों पार्टियां गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ रही हैं।
यह बीजेपी के लिए शुरू से ही चिंताजनक स्थिति रही है। विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 36.34 फीसदी मत मिले थे जबकि कांग्रेस को 38.14 और जेडीएस को 18.3फीसदी। ज्यादा वोट शेयर के बावजूद कांग्रेस को कम सीटें मिली थीं, लेकिन दोनों पार्टियों का वोट शेयर जोड़ दें तो यह बीजेपी से 20 प्रतिशत अधिक है। इस दृष्टि से अधिकांश सीटों पर बीजेपी हारने के लिए ही चुनाव लड़ रही है।
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बंगलोर विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र विभाग में रहे राजनीति विज्ञानी प्रोपेसर पी एस जयरामू कहते भी हैंः कांग्रेस-जेडीएस कार्यकर्ताओं के बीच जमीन पर अच्छा तालमेल इस गठबंधन की जीत का रास्ता तय करेगा। इस गठबंधन के लिए यही चुनौती है। वैसे, बीजेपी नेता बी एस येदुरप्पा की दिक्कत यह है कि वह जब भी मुंह खोल रहे हैं, पार्टी का नुकसान ही कर रहे हैं। उन्होंने एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली कांग्रेस-जेडीएस सरकार को गिराने का जब भी षड्यंत्र रचा, वह एक्सपोज हो गया। इसे आम लोगों ने भी साम, दाम, दंड भेद- किसी भी तरीके से सत्ता हथियाने की कोशिश के तौर पर ही देखा। स्वाभाविक ही लोगों को ये उपाय अच्छे नहीं लगे।
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पिछले साल गुजर गए केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार की पत्नी तेजस्वनी अनंत कुमार को बीजेपी ने दक्षिण बेंगलुरु से टिकट क्यों नहीं दिया, यह समझना यहां पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के लिए भी अबूझ पहेली है। अनंत कुमार 1991 से यहां का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और लालकृष्ण आडवाणी के बाद नरेंद्र मोदी के वक्त भी वह पार्टी में दक्षिण के प्रमुख चेहरे के तौर पर देखे-माने जाते थे। यहां पार्टी ने युवा आरएसएस नेता तेजस्वी सूर्या को उम्मीदवार बनाया है। जेडीएस के साथ गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रही कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य बी के हरिप्रसाद को यहां से उम्मीदवार बनाया है।
बीजेपी नेता कह तो रहे हैं कि यह सीट पार्टी के लिए महफूज है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में अनंत कुमार को 51.6 फीसदी वोट मिले थे जो तब अलग-अलग लड़ने वाले कांग्रेस-जेडीएस के संयुक्त वोट शेयर से भी अधिक है। लेकिन वे यह भूल रहे हैं कि पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में आठ में से पांच सीटें बीजेपी ने जीत तो लीं लेकिन सभी सीटों में वोटों को मिलाने पर उसे सिर्फ 5401 की बढ़त मिली थी। कांग्रेस को उम्मीद है कि तेजस्वनी को टिकट नहीं मिलने से बीजेपी में अंदरूनी कलह का तो उन्हें फायदा मिलेगा ही, अल्पसंख्यकों के साथ जेडीएस की वजह से वोक्कालिगा, ओबीसी और अनु. जाति-जनजाति के वोट भी उसे मिलेंगे। वोक्कालिगा और ओबीसी वोटर इस क्षेत्र में संख्या बल की दृष्टि से मजबूत हैं।
सलमान खान की फिल्म दबंग-2 में खलनायक की भूमिका निभाने वाले प्रकाश राज बेंगलुरु सेंट्रल से निर्दलीय उम्मीदवार हैं और उनका स्लोगन हैः थिंक माडि, वोट माडि(सोचें जरूर, वोट जरूर दें)। वह उन चुनिंदा फिल्म अभिनेताओं में हैं जिन्होंने मोदी की नीतियों के खिलाफ खुलकर बोलने में जरा भी संकोच नहीं किया। वह बीजेपी के के सी मोहन और कांग्रेस के रिजवान अरशद का सामना कर रहे हैं। मोहन ने पिछला चुनाव जीता था जबकिअरशद तब दूसरे नंबर पर थे। वैसे, मोहन और अरशद- दोनों ही प्रकाश राज को अपना प्रतिद्वंद्वी मानने से इनकार करते हैं।
प्रकाश छोटी सभाएं करने में यकीन करते हैं। उन्हें सड़क किनारे या कहीं भी दो-तीन सौ लोगों को संबोधित करते देखा जा सकता है। वैसे, प्रकाश अगर जीतते हैं तो यह कर्नाटक की राजनीति का नया इतिहास ही होगा। अब तक हुए चुनावों में सिर्फ दो निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है। पहली बार 1957 में सुगंधि मुरुगप्पा सिद्दप्पा बीजापुर उत्तर से और फिर, दस साल बाद तब के मैसूर में कनारा से दिनकर देसाई ने जीत हासिल की थी। प्रकाश को यकीन है कि वह इस बार जीतेंगे।
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