अभी मुजफ्फरनगर शहर में हम दाखिल नहीं हुए थे, सोचा पहले हाईवे पर एक-एक कप चाय हो जाए। फ्लाईओवर से उतरते ही एक ढाबे पर गाड़ी रुकवा ली। इस ढाबे का नाम था गोवर्धन भोजनालय।
उत्तर प्रदेश में हाईवे किनारे इतने साफ सुथरे ढाबे कम ही होते हैं। साफ-सफाई देखकर अच्छा लगा। चाय को कहने के साथ ही हमने ढाबा मालिक से उसके ढाबे की तारीफ भी कर दी। ढाबा मालिक ने बताया कि अभी दो महीने पहले ही खोला है और यह सब उसकी ही जमीन है। हमारी तारीफ से वह इतना खुश हुआ कि उसने अपने परिवार के बारे में भी कुछ बातें हमारे साथ शेयर कीं।
इस दौरान ढाबा मालिक यही लग रहा था कि हम चारों लोग मुसलमान नहीं हैं क्योंकि हमारे ड्राइवर का नाम दिनेश था, वीडियो जर्नलिस्ट का नाम रविराज और हमारे सीनियर एडिटर उत्तम सेनगुप्ता थे। संयोग ऐसा हुआ कि बातचीत के दौरान इन तीनों के ही नाम एक-दूसरे ने लिए। यह सब बताना इसलिए जरूरी है क्योंकि आजकल लोग जब बात करते हैं तो यह ध्यान रखते हैं कि सामने वाले का धर्म क्या है, जाति क्या है और उसका राजनीतिक रुझान क्या है। इस तरह लोग सच नहीं बोलते और सामने वाले को बहलाने के लिए कुछ भी बोल देना समझदारी समझते हैं।
ढाबा मालिक का नाम सुबोध बालियान था। बात करने का उसका अंदाज़ इस इलाके के जाटों जैसा तो था, लेकिन जाटों जैसा अक्खड़पन नहीं था। बातें करते-करते हम लोकसभा चुनाव की चर्चा करने लगे। सुबोध को भी चुनावी चर्चा में मजा आने लगा। उसने कहा कि, “कल से कुछ ऐसा लगता है कि जमीन पर चुनावी सरगर्मियां शुरु हो गई हैं।” यह पूछने पर कि उसे ऐसा क्यों लगता है, तो उसका जवाब था, “यहां के सांसद संजीव बालियान मेरे नजदीकी हैं। हम दोनों छठी कक्षा तक एक साथ ही एक टाट पर बैठकर पढ़े हैं। मेरे पिता अंग्रेजी के टीचर थे और संजीव मेरा बहुत करीबी दोस्ता था। कल वह मेरे घर आया था और थोड़ा समय देने के लिए कह रहा था। उसके आने से ही लगा कि अब चुनावी सरगर्मी शुरु हो गई है।”
सुबोध की बातों की पुष्टि इलाके में घूमने के दौरान भी हुई। वैसे अखबारों, टीवी और सोशल मीडिया पर काफी समय से चुनावी सरगर्मी नजर आ रही थी, लेकिन जमीन पर ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ।
सुबोध बालियान ने अपने दोस्त संजीव बालियान को जो जवाब दिया, वह रोचक था। उसने संजीव बालियान से कहा, “भाई मैंने कभी अपने किसी काम के लिए तुझसे आजतक कुछ कहा नहीं, और एक-दो बार किसी के लिए कुछ कहा तो उस पर तूने कोई ध्यान नहीं दिया। वैसे भी चौधरी अजित सिंह हम चौधरियों का सम्मान हैं, इसलिए इस बार तो चौधरी साहब को ही जिताना है।” सुबोध की बातें संकेत दे रही थीं कि चौधरी चरण सिंह के परिवार की आज भी जाटों में बहुत इज्जत है। लेकिन यह भी हकीकत है किसंजीव बालियान के काम करने के तौर-तरीकों ने भी इस इज्जत को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है।
इलेक्शन हाईवे पर हमारा यह पहला चुनावी पड़ाव था। इस पड़ाव पर हमें आभास तो हुआ कि इस बार 2014 जैसी कोई मोदी लहर नहीं है। लोग बुनियादी मुद्दों से परेशान हैं और मोदी-बीजेपी के सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों में बहुत ज्यादा लोकप्रिय नहीं रह गए हैं। शायद इन सांसदों को भी इसका एहसास है कि मोदी के रहते अपने इलाके के वोटरों और आम लोगों का ध्यान रखना उतना जरूरी नहीं है जितना मोदी की तारीफ करना।
लेकिन मोदी की तारीफ लोगों को पसंद आई कि नहीं इसका नतीजा तो 23 मई को सामने आएगा।
(इलेक्शन हाईवे पर हमारा सफर जारी है। अगले पड़ाव के बारे में हम आपसे अगली कड़ी में बात करेंगे और जानेंगे कि आखिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनावी ऊंट किस करवट बैठता नजर आ रहा है।)
Published: 26 Mar 2019, 9:00 PM IST
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Published: 26 Mar 2019, 9:00 PM IST