बिहार में बकरीद को लेकर कई स्थानों पर बकरे की मंडियां भले ही सज गई हैं, लेकिन कोरोना काल को देखते हुए इस बार सोशल मडिया पर भी बकरे की बिक्री हो रही है। इसके लिए विक्रेताओं ने व्हाट्सएप ग्रुप तक बना लिए गए हैं तो कई बकरे की पसंद करने के लिए मंडी के दुकानदारों को वीडियो कॉल कर रहे हैं।
पटना के फुलवारी शरीफ के रहने वाले बाबूद्दीन कहते हैं कि बकरीद में बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा है। कोरोना काल में परंपरा भी निभानी है और कोरोना से लड़ाई भी जीतनी है। ऐसे में इस साल ऑनलाइन बकरे की तलाश की जा रही है।
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उन्होंने कहा कि शहर की अपेक्षा सस्ते और बेहतर बकरे ग्रामीण क्षेत्रों में मिल जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के लोग भी सोशल साइटों के जरिए बकरे बेच रहे हैं। उन्होंने कहा कि व्हाट्सएप के जरिए कुछ विक्रेताओं से बकरे की तस्वीर मंगा कर देखी है।
इधर, मुजफ्फरपुर में भी बकरे की खरीददारी सोशल मीडिया पर खूब हो रही है। जेल चैक के रहने वाले मोहम्मद आफताब कहते हैं, "कोरोना को लेकर विक्रेता और क्रेता दोनों सतर्कता बरत रहे हैं। जो विक्रेता बकरा लेकर मंडियों में जाने में असमर्थ है वह अपने जान पहचान वालों से संपर्क कर वीडियो कॉल या व्हाट्सएप से बकरे को दिखा रहे है, जिसे पसंद हो रहा है, वह ऑनलाइन राशि का भुगतान कर रहे हैं।" वे आगे कहते हैं, " ऐसे में केवल बकरे को लाने की ही परेशानी है। मंडियों में घूम-घूमकर बकरे पसंद करने से तो लेाग बच रहे हैं।" कई लोग तो बकरे को पसंद कर बकरीद के दो दिन पहले तक विक्रेता को ही पालने की गुजारिश कर रहे हैं, जिसके लिए पैसा भी भुगतान कर रहे हैं।
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फुलवारी में कई व्यापारी तो ऑनलाइन बकरे की बिक्री कर रहे हैं। ये व्यापारी कई व्हाट्सएप ग्रुप बना लिए हैं और उसमें बकरे की तस्वीर केा अपलोड कर अलग-अलग नस्लों के हिसाब से मूल्य अंकित कर रखे हैं। ग्राहक भी बकरे को पंसद कर रहे हैं। एक व्यपारी ने बताया कि इस कार्य में व्यापारी दूसरे की मदद भी कर रहे हैं।
वैसे, इस साल महंगाई का असर बकरों की मंडी में देखने को मिल रहा है। पटना में लगी मंडियों में बिहार के अलावा अन्य राज्यों के व्यापारी भी अलग-अलग नस्ल के बकरे लेकर पहुंचे हैं।
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पटना के जगदेवपथ स्थित बकरी बाजार में आठ हजार से लेकर 75 से 80 हजार तक के बकरे बिक रहे हैं। लोग कहते हैं कि इस साल बकरों की कीमतों पर भी महंगाई का असर दिख रहा है। व्यापारी भी कहते हैं, "इस साल बकरों को यहां मंडियों में लाने के लिए अधिक भाड़ा खर्च करना पड़ा है। आखिर हमलोग तो बकरे की कीमतों में ही खचरे को जोड़कर दाम रखेंगे।"
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