केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार बड़े कॉर्पोरेट को दोनों हाथ से रेवड़ियां बांट रही है। मोदी सरकार ने वेदांता-फॉक्सकॉन के 38,831 करोड़ की लागत से गुजरात में लगने वाले सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग हब और कर्नाटक में लगने वाले सिंगापुर के आईएसएमसी के 22,900 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट को 50 फीसदी सब्सिडी देने का फैसला किया है। सरकार की इन्सेंटिव स्कीम के यही दो प्रोजेक्ट पहले लाभार्थी बन गए हैं। सरकार ने बुधवार को सेमीकंडक्टर यूनिट और डिस्प्ले मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट के लिए 76,000 करोड़ रुपए की सब्सिडी का ऐलान किया। सरकार ने कहा कि यह सब्सिडी इसलिए दी जा रही है ताकि वैश्विक कंपनियां आकर्षित हों। हालांकि मौजूदा आवेदनों को पूरा फायदा मिलेगा।
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केंद्र सरकार के इस फैसले की तीखा आलोचना हो रही है। कई लोगों ने इसकी रेवड़ी संस्कृति से तुलना की है। द इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित अपने ताजा लेख में स्वामीनाथन एस अंकलेश्वर अय्यर ने लिखा है, “गुजरात में लगने वाले वेदांता सिलिकॉन फैब्रिकेशन प्लांट को दी जाने वाली 50 फीसदी सब्सिडी कुल 80,000 करोड़ की होगी। ये रकम तो मनरेगा मद में दी जाने वाले केंद्र सरकार के कुल आवंटन से भी अधिक है।”
सरकार ने बुधवार को कहा था कि कंपनियों को पहले दी जाने वाली वित्तीय मदद को संशोधित कर प्रोजेक्ट की कुल लागत के 50 फीसदी के बराबर कर दिया गया है। पहले भी यह सहायता 50 फीसदी ही थी, लेकिन उसकी अधिकतम सीमा 12,000 करोड़ थी। लेकिन अब इसपर से यह सीमा हटा दी गई है।
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सरकार के इस फैसले पर आखिर क्यों उठा रहे हैं अर्थशास्त्री सवाल? कारण है कि वेदांता-फॉक्सकॉन जैसे प्रोजेक्ट सरकार के कुल सब्सिडी प्रावधान का बड़ा हिस्सा हड़प जाएंगे और फिर अन्य के लिए कोई गुंजाइश नहीं बचेगी। एक और तर्क दिया जा रहा है कि इस तरह सरकार सिर्फ चुनिंदा कंपनियों को ही अपनी प्रोत्साहन योजनाओं का फायदा देगी।
इसी मुद्दे पर आरबीआई के पूर्व गवर्नर और अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने भी कहा है कि इससे होगा यह कि जब सब्सिडी और प्रोत्साहन वाली योजनाएं बंद हो जाएंगी तो फिर इन कंपनियों को भारत आने या यहां टिके रहने में कोई फायदा नजर नहीं आए गा और वे दूसरे देशों का रुख करेंगी। ऐसे में ये कंपनियां न सिर्फ टैक्स दरों में छूट की मांग करेंगी बल्कि सब्सिडी की सुरक्षा भी मांगेगी।
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स्वामीनाथन अय्यर ने भी इसी किस्म का सवाल उठाया है। उन्होंने अपने लेख में कहा है कि अगर वेदांता-फॉक्सकॉन की कुल लागत 20 अरब डॉलर है तो उसके हिस्से में तो भारत की 10 अरब डॉलर की कुल सब्सिडी आ जाएगी। उन्होंने पूछा है कि ऐसे में क्या होगा अगर अन्य कंपनियां भी सामने आईं तो फिर उन्हें सब्सिडी देने के लिए पैसा कहां से आएगा?
उद्योगों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि योजना तो उन कंपनियों को मदद देने की है जो सेमीकंक्टर के विभिन्न प्रकारों का भारत में निर्माण या उत्पादन करेंगे। इससे कंपनियों की निर्माण लागत कम होगी और वे नई फैक्टरियां लगाने को प्रोत्साहित होंगे। ऐसे ही एक विशेषज्ञ का कहना है कि, “इसे इस तरह देखना चाहिए कि इससे भारत एक ताकतवर सेमीकंडक्टर उत्पादक या निर्माता के तौर पर स्थापित होगा और उसकी आयात पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। लेकिन इसी किस्म की कोशिश तो भारत 2017 और 2020 में भी कर चुका है, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला था। इंटेल, सैमसंग, टीएसएमसी आदि जैसी कंपनियों ने अभी तक इस दिशा में कोई रुचि नहीं दिखाई है।”
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