लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कर्नाटक में भारी पराजय का सामना करना पड़ा, लेकिन देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी ने कर्नाटक स्थानीय निकाय चुनावों में अचंभित करते हुए सबसे ज्यादा सीटें जीती हैं। कांग्रेस की इस जीत के साथ ही पार्टी नेताओं ने नए सिरे से यह दावा करना शुरु कर दिया है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में कहीं न कहीं ईवीएम की कोई तो गड़बड़ी जरूर हुई है।
कर्नाटक स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस ने 56 शहरी स्थानीय निकायों की कुल 1221 सीटों में से 509 पर जीत हासिल की है। वहीं बीजेपी के हिस्से में 366 और जेडीएस के हिस्से में 174 सीटें आई हैं। 160 सीटें निर्दलीयों ने और बाकी सीटें अन्य के हिस्से में आई हैं।
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पिछले साल यानी 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनावों में 224 सदस्यों मे बीजेपी ने सबसे ज्यादा 104 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस ने 80 और जेडीएस ने 37 सीटों पर विजय हासिल की और साथ मिलकर गठबंधन की सरकार बना ली। लेकिन यहां एक और बात सामने आई है कि कांग्रेस ने इन चुनावों में 38.14 फीसदी वोट हासिल किए और जेडीएस के हिस्से में 18.3 फीसदी वोट आए। वहीं बीजेपी के खाते में 36.34 फीसदी वोट गए। ऐसे में अगर कांग्रेस और जेडीएस के वोट शेयर को जोड़ दें तो कुल 56.44 फीसदी वोट गठबंधन ने हासिल किए थे।
इस तरह लोकसभा चुनावों में जेडीएस और कांग्रेस ने साथ मिल कर मैदान में उतरने का फैसला किया और अपने सारे मुद्दों को आपसी बातचीत से सुलझा लिया। ऐसे में यह बात गले से नहीं उतरती कि लोकसभा चुनाव में मतदाता कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को खारिज कर दें और बीजेपी को राज्य की 28 में से 25 सीटों पर जीत दिला दें। और इसका सबूत यह है कि महज एक माह के भीतर हुए स्थानीय निकायों के चुनावों में मतदाताओं ने कांग्रेस और जेडीएस पर फिर से भरोसा दिखाया और इन दोनों दलों के हाथों में स्थानीय निकायों का नियंत्रण दे दिया। हालांकि इन चुनावों में कांग्रेस और जेडीएस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, फिर भी बीजेपी बहुत बड़े अंतर से तीसरे नंबर पर रही।
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स्थानीय निकाय चुनावों में भारी जीत से कर्नाटक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष दिनेश जी राव बेहद उत्साहित हैं। उनका मानना है कि कांग्रेस कर्नाटक में स्थानीय स्तर पर बेहद मजबूत है। उन्होंने संदेह जताया कि लोकसभा चुनावों में निश्तित तौर पर कोई न कोई ईवीएम का खेल हुआ है। उन्होंने कहा, “इतने कम समय में जनादेश में इतना बड़ा अंतर आता है तो इसकी जांच तो होनी ही चाहिए।”
वैसे काफी समय से चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल को लेकर विपक्षी दल सवाल उठाते रहे हैं। इनमें बीएसपी सुप्रीमो मायावती से लेकर बीजेपी के पूर्व सासंद शत्रुघ्न सिन्हा तक हैं। हाल ही में महाराष्ट्र के बारामती से एनसीपी सांसद रहीं सुप्रिया सुले ने भी ईवीएम पर सवाल उठाए हैं।
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अभी दो दि नपहले द क्विंट ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात की तरफ ध्यान आकर्षित किया था कि लोकसबा चुनाव में जितने वोट पड़े थे, गिनती में उससे कहीं अधिक वोट सामने आए। इसके जवाब में चुनाव आयोग ने एक विज्ञप्ति जारी की और दावा किया कि चुनाव में कोई गड़बड़ी नहीं हुई और कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में वोटों की गिनती के समय थोड़ा बहुत अंतर आना सामान्य बात है।
लेकिन द क्विंट की रिपोर्ट में कई ऐसी सीटों का जिक्र था जिसमें डाले गए वोट और गिने गए वोटों में काफी अंतर था। सामान्य तर्क में यह बात गले नहीं उतरती। लेकिन चुनाव आयोग ने अपने बयान में इसका कोई जिक्र नहीं किया।
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चुनाव आयोग की सफाई सामने आने के बाद न्यूजक्लिक ने इस बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की। इस रिपोर्ट में बताया गया कि उत्तर प्रदेश और बिहार की कुल 120 लोकसभा सीटों में से 119 सीटों पर चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक हज़ारों वोटों का अंतर सामने आया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि चुनाव आयोग ने एक ही सीट पर मतदान प्रतिशत के चार आंकड़े सामने रखे। रिपोर्ट में कहा गया, “जहानाबाद सीट के तीन अलग-अलग दस्तावेज सामने आए और तीनों में मतदान प्रतिशत के अलग-अलग आंकड़े दिए गए, और जब मतगणना हुई तो इनमें भी भारी अंतर पाया गया।
जहानाबांद से आरजेडी उम्मीदवार को जो दस्तावेज दिया गया उसमें मतदान प्रतिशत 51.77 फीसदी था, जबकि बिहार के चुनाव अधिकारी ने जो आंकड़े अपनी वेबसाइट पर अपलोड किए उसमें मतदान प्रतिशत 54 फीसदी दिखाया गया। इसके अलावा मतदान ऐप पर 53.67 फीसदी मतदान प्रतिशत बताया गया। वहीं जहानाबाद के फार्म 20 में मतदान प्रतिशत 52.02 फीसदी बताया गया। इसी तरह की गड़बड़ियां और अंतर बिहार के साथ ही मध्य प्रदेश की कई सीटों पर भी पाई गईं।”
न्यूजक्लिक ने इससे पहले भी एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें कहा गया था कि जितने वोट पड़े और जितने वोट गिने गए उनमें 56,64,000 वोटों का अंतर था। इतने वोट को 100 सीटों पर नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं।
इन आंकड़ों के मद्देनजर तमाम ऐसे वीडियो भी सामने आए जिनमें सैकड़ों ईवीएम बिना किसी सरकारी दस्तावेज़ों के ट्रकों, कारों, टेम्पो आदि में भर-भर कर इधर से उधर की जा रही थीं। ऐन मतगणना से पहले सामने आए इन वीडियो पर चुनाव आयोग की तरफ से सिर्फ इतना भर कहा गया कि ये अतिरिक्त और आरक्षित ईवीएम थीं। हालांकि दो पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों ने इस पर संदेह जताया था।
ऐसे में जरूरत है कि सभी विपक्षी दल इस मुद्दे पर आपस में मिलबैठ कर एक राष्ट्रीय आंदोलन की रूपरेखा तैयार करें लोगों को इस गड़बड़ी के बारे में बताएं। साथ ही विपक्षी दलों को इस मुद्दे को अदालत में भी ले जाना चाहिए ताकि चुनाव आयोग स्पष्ट तौर पर इस बारे में दलील रखे। सिर्फ झुठलाने भर से काम नहीं चलेगा।
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