उत्तराखंड में अत्यधिक भारी बारिश के कारण तीन दर्जन लोगों की जान चली गई है और बुनियादी ढांचे को भी नुकसान पहुंचा है। हालांकि अगर अधिकारियों ने आईएमडी की शुरुआती चेतावनियों और पूर्वानुमान पर ध्यान नहीं दिया होता, तो जान-माल की हानि इससे भी कहीं अधिक होती। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के शीर्ष अधिकारी ने बुधवार को यह टिप्पणी की।
आईएमडी का सही समय पर किया गया पूर्वानुमान काफी काम आया, जिसकी वजह से राज्य सरकार को बैठक करने, बचाव दल को तैयार रखने और मूसलाधार बारिश से पहले और बाद में सहायता प्रदान करने में काफी मदद मिली।
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आईएमडी ने सभी प्रमुख मौसम की घटनाओं के लिए पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी जारी की, जिसमें भारी वर्षा, गरज, बिजली, भारी बर्फबारी, शीत लहरें, लू (गर्मियों में चलने वाली गर्म हवा) और चक्रवात शामिल है। इस प्रकार की त्वरित कार्रवाई से अधिक लोगों की जान बचाई जा सकती है और भारी चक्रवातों और लू के मामले में पूर्व चेतावनी के कारण बुनियादी ढांचे को होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है।
आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने आईएमडी के 'आजादी का अमृत महोत्सव' के हिस्से के रूप में एक विशेष व्याख्यान श्रृंखला के दौरान कहा, "चक्रवात के मामले में, आईएमडी द्वारा लैंडफॉल के स्थान के बारे में भविष्यवाणी की तुलना किसी भी अंतरराष्ट्रीय पूवार्नुमानकर्ताओं से की जा सकती है। हम किसी से पीछे नहीं हैं। पिछले पांच वर्षों के दौरान, चक्रवात के मार्ग पर नजर रखने में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है।"
1999 के ओडिशा सुपर साइक्लोन में मौतों की संख्या 10 हजार से अधिक थी और इसकी तुलना में, हाल के वर्षों में मृत्यु दर ज्यादातर मामलों में एकल अंकों में आ गई है।
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अपनी मुख्य योग्यता, वर्षा की भविष्यवाणी के लिए आईएमडी के पूवार्नुमान और चेतावनी कौशल पर, मौसम संबंधी उपखंड स्तरों पर भारी वर्षा का पता लगाने (पीओडी) की संभावना 2014 में 50 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में 24 घंटे (पहला दिन) के लिए 77 प्रतिशत हो गई; 48 घंटे (दूसरा दिन) के लिए 48 प्रतिशत से 70 प्रतिशत और 72 घंटे (तीसरा दिन) की अवधि के लिए 37 प्रतिशत से 66 प्रतिशत तक बढ़ गई है।
महापात्रा ने कहा, "2020 में पांच दिन पहले जारी किए गए भारी बारिश के पूवार्नुमान में 59 प्रतिशत की सटीकता रही, जो 2014 में केवल 24 घंटे पहले किए पूवार्नुमान के साथ 50 प्रतिशत थी।"
एक बेहतर प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के एक अन्य परिणाम के रूप में, महापात्रा ने उल्लेख किया कि कैसे आईएमडी ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के साथ मिलकर गर्मी में लू के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय दिशानिर्देश तैयार किए हैं और राज्यों के साथ हीट एक्शन प्लान तैयार करने से गर्मी से संबंधित मृत्यु दर में कमी आई है।
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महापात्रा ने मंगलवार को कहा कि गर्मी से संबंधित मृत्यु की बात करें तो 2015 में मरने वालों की संख्या 2040 थी, 2016 में यह 1111 थी, 2017 में यह घटकर 384 हो गई और 2018 तक, गर्मी से संबंधित मृत्यु दर में काफी कमी देखी गई और यह आंकड़ा महज 25 पर आ गया। इस वजह से मौतें 2019 में 226 दर्ज की गई और 2020 में सिर्फ चार मौत दर्ज की गई।
महापात्र ने बताया कि 2019 में यह संख्या 2018 की तुलना में बहुत अधिक थी, क्योंकि उस वर्ष इनमें से अधिकांश मौतें बिहार में हुईं, जो कि, दुख की बात है कि उस राज्य द्वारा हीट एक्शन प्लान यानी गर्मी कार्य योजना का अभाव देखने को मिला था।
उन्होंने कहा कि वर्षों से, आईएमडी ने गर्मी में आने वाली गर्म लहरों की भविष्यवाणी करने के लिए अपने पूवार्नुमान और चेतावनी कौशल में निवेश किया है और सुधार किया है। मौसम विज्ञान उपखंड स्तरों पर गर्मी की लहर के मामले में पता लगाने की संभावना 2014 में 67 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में 24 घंटे की अवधि के साथ 100 प्रतिशत हो गई है।
आईएमडी की समय पर की जाने वाली भविष्यवाणी न केवल लोगों की जान बचाने में महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे आर्थिक लाभ भी होता है।
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